4 january

उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति

 

 

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अनूप कुमार भटनागर

उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग गठित करने के लिये बनाया गयाकानून और इससे संबंधित 99वां संविधान संशोधन उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ द्वारा निरस्त किये जाने के बावजूद यहअभी भी चर्चा का विषय बना हुआ है।

संसद द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन का प्रावधान करने संबंधी कानून और 99वें संविधान संशोधन कीसंवैधानिकता को न्यायमूर्ति जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अक्तूबर2015 मेंअसंवैधानिक करार दिया था।

इस संविधान संशोधन को असंवैधानिक करार देने के निर्णय के समय से ही संविधान संशोधन की वैधता जैसे मुद्दों पर सुनवाई करनेवाली संविधान पीठ में न्यायाधीशों की संख्या को लेकर दबे स्वर में चर्चा चल रही थी।

इसी बीचसंसद के शीतकालीन सत्र के दौरान आनंद शर्मा की अध्यक्षता वाली कार्मिकलोक शिकायत और विधि एवं न्याय संबंधीसंसदीय स्थायी समिति द्वारा पेश रिपोर्ट में राय व्यक्त की गयी है कि किसी भी संविधान संशोधन की वैधता से जुड़े मामलों कीसुनवाई उच्चतम न्यायालय की कम से कम 11 सदस्यीय न्यायाधीशों की पीठ को करनी चाहिए। 

संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की है कि संविधान के निर्वचन से जुड़े मामलों की सुनवाई भी उच्चतमन्यायालय के कम से कम सात न्यायाधीशों की पीठ को ही करनी चाहिए।

समिति ने रिपोर्ट में इस बात का विशेष रूप से जिक्र किया है कि 99वां संविधान संशोधन अधिनियम लोक सभा ने सर्वसम्मति सेतथा राज्यसभा ने लगभग सर्वसम्मतिएक विसम्मतिवोट से पारित किया था। इस अधिनियम को उच्चतम न्यायालय के पांचन्यायाधीशों की पीठ ने 4:1 के आधार से खारिज कर दिया।

संविधान संशोधन और संविधान निर्वचन की वैधता से संबंधित मामले की सुनवाई करने वाली उच्चतम न्यायालय की पीठ केसदस्य न्यायाधीशों की संख्या 11 और 7 करने के संबंध में समिति ने अपने तर्क भी दिये हैं।

समिति ने रिपोर्ट में इस तथ्य को नोट किया, ‘‘संविधान के अधिनियमन के दौरान उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्याकेवल सात थी और संविधान के तहत संविधान के निर्वचन से जुड़े किसी मामले के विनिर्णय अथवा अनुच्छेद 143 के तहतसंदर्भित मामले में न्यूनतम पांच न्यायाधीशों वाली न्यायपीठ का गठन होता था।‘‘ रिपोर्ट में आगे कहा गया है, ‘‘अब जबकिन्यायाधीशों की संख्या 31 हो गयी है तो समिति की राय है संविधान संशोधन की वैधता से जुड़े मामलों को उच्चतम न्यायालय केन्यूनतम 11 सदस्यीय न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुना जाना चाहिए।’’

यह सही है कि न्यायाधीशों की नियुक्तियों के लिये आयोग गठित करने संबंधी कानून और संविधान संशोधन की वैधता को चुनौतीदेने वाली याचिकाओ पर पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनवाई की थी।

इस संविधान पीठ ने न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाने के इरादे से सरकार को इससे संबंधित प्रक्रियाके लिए ज्ञापन तैयार करने का निर्देश दिया था जिसे वर्तमान प्रक्रिया में पूरक का काम करना था। यही नहीं न्यायालय ने सरकारको प्रधान न्यायाधीश की सलाह से ही न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित मौजूदा प्रक्रिया के ज्ञापन को अंतिम रूप देने का भीनिर्देश दिया था।

इसमें न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में कोलेजियम के मार्ग-निर्देशन के लिये पात्रता का आधार और न्यूनतम आयु कानिर्धारणनियुक्ति की प्रक्रिया में पारदर्शिता के बारे में सुझावसचिवालय की व्यवस्था और शिकायतों के निदान की व्यवस्थाकरना आदि शामिल थे। लेकिन सरकार द्वारा भेजे गये प्रक्रिया ज्ञापन को अभी तक अंतिम रूप नहीं दिया जा सका है।

यह प्रक्रिया ज्ञापन प्रधान न्यायाधीश के पास अगस्त से लंबित है। एक अवसर पर निर्वतमान प्रधान न्यायाधीश तीरथ सिंह ठाकुर नेगत वर्ष सितंबर में दावा किया था कि सरकार के साथ इस मामले में सारे मतभेद दो सप्ताह के भीतर सुलझा लिये जायेंगे।

समिति इस बात पर व्यथित थी, ‘‘प्रक्रिया ज्ञापन को अंतिम रूप दिये जाने के संबंध में कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीचगतिरोध बना हुआ है और इसके परिणामस्वरूप संवैधानिक न्यायालयों में रिक्त पदों को भरने में देरी हो रही है और न्याय प्रशासनबुरी तरह प्रभावित हो रहा है।‘‘

यही नहींरिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘समिति आशा करती है कि दोनों पक्ष व्यापक लोकहित के मद्देनजर जल्द ही अपने गतिरोध को दूरकर लेंगे तथा न्याय प्रशासन को इससे प्रभावित नहीं होने देंगे।‘‘

चूंकि संसदीय समिति की यह सिफारिश राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग से संबंधित 99वें संविधान संशोधन को असंवैधानिकघोषित करने के उच्चतम न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की पीठ के फैसले के संदर्भ में की हैइसलिए न्यायाधीशों की नियुक्ति केप्रकरण से जुड़े अब तक के अन्य मसलों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।

विदित हो कि न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित मुद्दे का सवाल है तो सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकार्ड एसोसिएशन बनामभारत सरकार मामले में न्यायमूर्ति एस आर पांडियन की अध्यक्षता वाली उच्चतम न्यायालय के सात न्यायाधीशों की पीठ नेअकटूबर 1993 में ही अपना फैसला सुनाया था।

इस पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति  एम अहमदी,  न्यायमूर्ति जे एस वर्मान्यायमूति एम एम पुंछीन्यायमूर्ति योगेश्वरदयालन्यायमूर्ति जी एन रे और न्यायमूर्ति डा  एस आनंद शामिल थे। इस प्रकरण में आई व्यवस्था को न्यायाधीशों की नियुक्तिके मामले में उच्चतम न्यायालय के द्वितीय निर्णय के रूप में जाना जाता है।

इस निर्णय के परिप्रेक्ष्य में तत्कालीन राष्टपति के माध्यम से सरकार ने इससे जुडे कुछ सवालों पर संविधान के अनुच्छेद 143 केतहत 23 जुलाई 1998 को उच्चतम न्यायालय से राय मांगी थी।

न्यायमूर्ति एस पी भरूचा की अध्यक्षता वाली उच्चतम न्यायालय की नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने 28 अक्तूबर1998 को इनसवालों पर अपनी राय दी थी। इस संविधान पीठ ने न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया के संबंध में नौ बिन्दुओं को प्रतिपादितकिया था।

राष्ट्पति द्वारा उच्चतम न्यायालय के पास राय के लिये भेजे गये सवालों पर विचार करके राय देने के लिये गठित इस नौ सदस्यीयसंविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एम मुखर्जीन्यायमूर्ति एस मजमूदारन्यायमूर्ति सुजाता वी मनोहरन्यायमूर्ति जीनानावतीन्यायमूर्ति एस एस अहमद,  न्यायमूर्ति के वेंकटस्वामीन्यायमूर्ति बी एन किरपाल और न्यायमूर्ति जी पटनायकशामिल थे।

इन फैसलों के परिप्रेक्ष्य में संविधान संशोधन और संविधान निर्वचन की वैधता से संबंधित मामलों की सुनवाई करने वाली संविधानपीठ के सदस्य न्यायाधीशों की संख्या के बारे में संसदीय समिति की इस रिपोर्ट में की गयी यह सिफारिश महत्वपूर्ण है।

अब देखना यह है कि संविधान संशोधन और संविधान निर्वचन की वैधता से संबंधित मामले की सुनवाई 11 न्यायाधीशों की पीठऔर सात सदस्यीय न्यायाधीशों की पीठ द्वारा करने संबंधी सिफारिश के साथ संसद में पेश संसदीय समिति की रिपोर्ट पर सरकारक्या दृष्टिकोण अपनाती है

 

7 January

प्रवासी भारतीयों ने एक लंबा सफर तय किया है

 

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* प्रियदर्शी दत्ता

प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन के 15 वें संस्करण का कर्नाटक के बैंगलुरू में 7 से 9 जनवरी 2017 में आयोजनकिया जाएगा। प्रथम वार्षिक सम्मेलन का आयोजन 9 से 11 जनवरी 2003 को किया गया था और अगस्‍त 2000 में गठित एक उच्‍च स्‍तरीय समिति की सिफारिशों के आधार पर इसे 9 जनवरी को प्रवासी भारतीय दिवस अथवा ओवरसीज इंडियन के रूप में अपनाया गया।

तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अत्‍यंत उत्‍सुकता के साथ प्रवासी भारतीयों के मुद्दे में दिलचस्पी रखते थे। पोखरण द्वितीय के बाद जब भारत प्रतिबंधों से जूझ रहा था ऐसे में 1998 में उभरते हुए भारत के प्रति अपने संबंधों में मजबूत विश्वास दिखाया। उदारीकरण के वातावरण के बाद भारतीय मूल के समुदाय अपने देश के साथ जुड़ने को तैयार थे। भारत के एक सूचना प्रौद्योगिकी क्षमता केन्‍द्र तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और परमाणु शक्ति के रूप में उभरने से प्रवासी भारतीयों में अत्‍यधिक आत्‍मविश्‍वास जगा दिया था। यह खेल के मैदान से व्यापार सम्मेलनों और अंतरराष्ट्रीय बैठकों जैसे विभिन्‍न स्‍थलों पर दिखाई भी दिया।  

प्रवासी भारतीयों की चिंताएं भारतीय नेतृत्व के मस्‍तिष्‍क में लंबे समय से थीं। ब्रिटेन  में हाऊस ऑफ कॉमन्‍स पर 1841 की शुरूआत में जितना शीघ्र हो सके मॉरीशस में भारतीय अनुबंधित श्रमिकों की दयनीय हालत की जांच के लिए दबाब डाला गया था। यह ब्रिटिश साम्राज्य में गुलामी उन्मूलन (1833) के बाद अनुबंधित व्‍यवस्‍था की शुरुआत के कुछ वर्ष के भीतर हुआ था। इसी तरह से 1894 में कांग्रेस के मद्रास सत्र में दक्षिण अफ्रीकी उपनिवेशों में भारतीयों के मताधिकार से वंचित करने के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया गया था। कांग्रेस  ने पूना (1895) कोलकाता (1896) मद्रास (1898) लाहौर (1900) कोलकाता (1901) और अहमदाबाद (1902) सत्रों में भी इसी तरह के प्रस्तावों को अपनाया। उन दिनों में प्रवासी भारतीयों से अभिप्राय अधिकांश दक्षिण और पूर्वी अफ्रीका में भारतीयों से संबंधित था। इन्‍होंने स्थानीय ब्रिटिश सरकार द्वारा उनके अधिकारों के अतिक्रमण के खिलाफ कई संघर्ष आरंभ किए थे। गांधी-स्मट्स समझौता 1914 उनके लिए एक बड़ी जीत का द्योतक है।

 

दक्षिण-पूर्व एशिया जैसे बर्मा, सिंगापुर, मलेशिया, थाइलैंड इत्यादि में प्रवासी भारतीय काफी संख्या में थे। इनमें से कइ 1940 के भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आजाद हिंद फौज में स्वयंसेवक रहे और साथ ही फंडिंग का भी इंतजाम किया। मलेशिया में जन्मी तमिल मूल की युवा लड़कियों की कहानियां भी है जिन्होंने बंदूक उठाकर कंधे से कंधा मिलाते हुए उस भारत की आजादी की लड़ाई करने का फैसला किया जिसे उन्होंने कभी देखा भी नहीं था।

 

प्रवासी भारतीय दिवस से महात्मा गांधी के 9 जनवरी 2015 को भारत आगमन की यादें भी ताजा होती हैं। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय के अधिकारों के लिए 21 साल तक लड़ाइयां लड़ी। उनके अहिंसक प्रतिरोध का रूप, जिसे उन्होंने सत्याग्रह नाम दिया, उसे लागू तो भारत में किया लेकिन उसका विकास दक्षिण अफ्रीका में हुआ था। गांधी के समय के औपनिवेशिक विश्व में प्रवासी भारतीयों की स्थिति आज की स्थिति से बेहद अलग थी। वो ऐसे दिन थे जब विदेश जाना ये विदेश में बसने को प्रतिष्ठित नहीं माना जाता था। विदेश जाने वाले ज्यादातर भारतीय फैक्ट्रियों में मजदूरी और खेती से जुड़े कार्यों में मजदूर के लिए पट्टे पर (अफ्रीका, वेस्टइंडीज, फिजी, श्रीलंका, बर्मा इत्यादि देशों में) ले जाए जाते थे। लेकिन हिंदू समाज में समुद्री यात्रा निशेध जैसे मध्यकालीन मान्यताओं को बदलने का श्रेय उन्हीं लोगो को जाता है।

औपनिवेशिक काल में नस्लभेद को औपनिवेशिक सरकारों ने राज्य की नीति की तरह स्थापित किया था। लेकिन औपनिवेशिक काल के खात्मे के बाद भी कई दूसरी तरह की समस्याएं पैदा हुई। गांधी के जीवनकाल के दौरान ही सिलॉन (श्रीलंका) और बर्मा (म्यांमार) में भारतीयों और वहां के स्थानीय लोगों के बीच तकरार होने लगी और सिलॉन और बर्मा के लोग भारतीयों से दूरी चाहने लगे।

 

डीएस सेनानायके की सरकार द्वारा पारित शुरुआती 2 प्रस्ताव में ही आजाद सिलॉन के करीब 10 लाख भारतीय मूल के नागरिकों को वहां की नागरिकता से महरूम कर दिया। हालांकि मॉरिसस में भारतीयों ने सत्ता पर पकड़ मजबूत कर ली लेकिन म्यांमार में अल्पसंख्यक बना दिए गए। इस तरह के देशों में भारतीयों को एक नए तरह के नस्लवाद का शिकार होना पड़ा।

औपनिवेशिक काल समुद्री प्रभुत्व का काल भी था। 1950 के आखिर तक पानी के जहाज ही महाद्वीपों के बीच आने जाने का सबसे भरोसेमंद साधन थे। 1960 की शुरुआत में हवाई जहाज ने लंबी दूरी के लिए पसंदीदा आवागमन के साधन के रूप में पानी के जहाज की जगह ले ली। भारत से प्रवास के स्वरूप को देखें तो मानव संसाधन की दक्षता और भारत से आवागमन पर इसकी छाप स्पष्ट देखी जा सकती है। संयोग से करीब उसी समय अमेरिका में पारित हुए अप्रवास और राष्ट्रीयता कानून, 1965 ने कौशल संपन्न पेशेवरों और छात्रों के प्रवास की राह आसान कर दी। इस ऐतिहासिक कानून ने भारतीय प्रवासी समुदाय की संख्या और साख को बदलकर रख दिया। 1960 में जहां 12000 भारतीय अमेरिका में रहते थे वही आज उनकी संख्या 25 लाख हो चुकी है। ये पढ़े लिखे और सफल प्रवासी भारतीय दुनिया भर में फैले भारतीय मूल के लोगों को भी राह दिखा रहे हैं।

 

लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू भी है। समाजवाद के दौर में जब भारत कमजोर विकास दर से जकड़ा हुआ था उस समय यहां के नागरिक विदेशों में अपनी भारतीय पहचान को उजागर होने देना नहीं चाहते थे। भारत में भी अप्रवासी भारतीयों को भगोड़े की तरह देखा जाता था। लेकिन उदारीकरण के बाद विकास दर में तेजी, आईटी पॉवर हब के रूप में भारत का उदय और वाजपेयी सरकार की विकास नीतियों ने मिलकर प्रवासी भारतीयों का हौसला बढ़ाया। सैटेलाइट टीवी, इंटरनेट के आगमन और उसके बाद 1990 के दशक में घर-घर में टीवी की पहुंच के बाद विदेशों में बसे भारतीयों को लगातार अपने देश से संपर्क का साधन मिल गया। अब प्रवासी भारतीयों के लिए भी अपनी जन्मभूमि के हित के बारे में सोचना संभव हो गया। भारतीय और अप्रवासी भारतीय मिलकर देश को दुनिया में ऊंचा स्थान दिलाने के बारे में सोच सकते हैं। इससे नए वैश्विक भारतीय की अवधारणा को बल मिला और इसी नाम के साथ कंचन बनर्जी ने 2008 में बोस्टन में एक मैगजीन भी शुरू की।

 

लेकिन अभी भी दुनिया के कई हिस्सों में भारतीय समुदाय को नस्लवाद, धार्मिक कट्टरता और कानूनी भेदभाव जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। कई मोर्चों पर अभी सफलता मिलनी बाकी है। ऐसे में महात्मा गांधी के 1890 में दक्षिण अफ्रीका में शुरू किए गए संघर्ष की लौ बुझने नहीं देनी है।

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9 January

लंबी अवधि के लिए कृषि विकास को बढ़ावा देने हेतु कदम 

विशेष लेख

भारतीय किसानों का अदम्य साहस

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                                                                *गार्गी परसाई

    वर्ष 2016 में कृषि सरकार की प्राथमिकता सूची में रहा, पर वर्ष के अंत में सरकार की विमुद्रीकरण नीति के कारण यह फीका पड़गया। गौरतलब है कि लगातार दो वर्षों का सूखा भी किसानों के अदम्य साहस को कमजोर नहीं कर पाया जिन्होंने फसल वर्ष 2015-16 के चौथे अग्रिम अनुमान को गलत साबित करते हुए 252.22 मिलियन टन खाद्यान का उत्पादन किया जो पिछले वर्ष 252.02 मिलियन टन के उत्पादन से कहीं ज्यादा है।

    मानसून की कमी के कारण इस वर्ष देश के कुछ हिस्सों में खरीफ की फसल बर्बाद हो गईजिससे धानमोटे अनाजतिलहनदलहन और कपास के उत्पादन में मामूली गिरावट दर्ज की गई। कृषि और किसान कल्याण मंत्री श्री राधा मोहन सिंह ने 29 दिसंबरको नई दिल्ली में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि हालांकि रबी में गेहूं की उपज फसल वर्ष 2015-16 में 93.5 मिलियन टनरहने का अनुमान लगाया गया था जो पिछले वर्ष 86.53 मिलियन टन था और प्राप्ति निर्धारित लक्ष्य की तुलना में कम रहा।आपूर्ति बढ़ाने और कीमतों को नियंत्रित रखने के लिए सरकार ने निजी अकाउंट में शून्य प्रतिशत की ड्यूटी पर गेहूं आयात कीअनुमति देने का निर्णय लिया है।   

    सरकार ने किसानों को आश्वस्त करते हुए कहा है कि वह सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए ज्यादा से ज्यादा खाद्यान कीखरीद करेगी और गेहूं उत्पादकों को न्यूनतम समर्थन मूल्य, जो सरकार ने फसल वर्ष 2016-17 के लिए 1625 रूपया प्रति क्विंटलतय किया है, हेतु तेजी से बाजार में हस्तक्षेप भी करेगी।

    इस तरीके से 2016 में कृषि के क्षेत्र में भी तेजी से डिजिटलीकरण का विकास हुआ है जिसके परिणामस्वरूप मोबाइल एप कीशुरूआत की गई है। कृषि मंत्रालय ने मौसम की जानकारीबाजार की कीमतों और फसल रोगों की जानकारी देने के लिए किसानसुविधाएप का शुभारंभ किया; “पूसा कृषि” एप बीज की नई किस्मों और नवीनतम तकनीक की जानकारी उपलब्ध करा रहा है; “कृषि बाजार” एप किसानों को 50 किलोमीटर के दायरे में मंडी की कीमतों के बारे में जानकारी देता है; “फसल बीमा एप फसलबीमा से संबंधित सारी जानकारी देता हैफसल को काटने संबंधित जानकारी क्रॉप कटिंग एक्सपेरिमेंट्स एप के जरिए मिलती है।लाखों किसान इन सारे एप्स को डाउनलोड कर लाभान्वित हो रहे हैं।

    इस वर्ष न सिर्फ किसानों के लिए बैंकिंग प्रणाली द्वारा कृषि क्षेत्र को ऋण देने की सीमा बढ़ाकर 9 लाख करोड़ की गई है बल्किविमुद्रीकरण के बाद सरकार ने भुगतान के लिए कैशलेस लेन-देन और प्रत्यक्ष लाभ अंतरण को प्रोत्साहित करने हेतु भी कई पहलकी हैं। यदि ऐसा होता है तो मंडी संचालन में मीडिल मैन/कमीशन एजेंटों से किसानों को मुक्ति मिलेगी जिससे इन्हें अपनी फसलका न्यूनतम समर्थन मूल्य प्राप्त करने में सुविधा होगी जो इन सब किसानों के लिए बड़ा कदम होगा।          

     जैसा हमने देखा कि वर्ष 2016 में सरकार ने कृषि क्षेत्र को उच्च प्राथमिकता दीताकि उर्वरकों के असंतुलित इस्तेमाल से प्रभावितहो रहे क्षेत्रों जैसे मृदा स्वास्थ्य (मृदा स्वास्थ्य कार्डनीम लेपित यूरिया और जैविक खेती), जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों सेकिसानों की आय के प्रभाव को कम करने के लिए (फसल बीमा योजना), निर्बाध व्यापार के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक मंच (राष्ट्रीयकृषि ई-मार्केट) तथा ज्यादा-से-ज्यादा भूमि को सिंचित खेती के तहत लाने के लिए (प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना) कदम उठायेगये। इसके साथ ही अन्य संबंधित क्षेत्रों जैसे दलहनतिलहनबागवानीमत्स्यपशुपालनदुग्धकृषि वानिकीमधुमक्खी पालनकृषि शिक्षाअनुसंधान और विस्तार पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है।

    वर्ष 2021 तक किसानों की आय को दोगुना करने की सरकार की प्रतिबद्धता के तहत वित्त मंत्री श्री अरूण जेटली ने लंबी अवधिके उपायों की घोषणा की है और कृषि परिव्यय जो वित्तीय वर्ष 2015-16 के बजट में 15809 करोड़ रूपये था उसे बढ़ाकर 39884 करोड़ रूपये किया। अंतरिम बजट में कृषि कल्याण उपकर के जरिए भी इस क्षेत्र को 5000 करोड़ रूपये की अतिरिक्त राशि मिलेगी।   

     इसके अलावे नाबार्ड के सहयोग से 20000 करोड़ रूपये की  राशि का एक अतिरिक्त कोष भी प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना केतहत बनाया गया है जिसके तहत हर खेत को पानी देने का उद्देश्य रखा गया है। इसके तहत वर्ष 2019 तक 76.03 लाख हेक्टेयर क्षेत्रको सिंचाई के तहत लाया जाना प्रस्तावित है।  

    किसानों को मानसून के प्रभाव से बचाने में सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से सरकार ने इस वर्ष से 5500 करोड़ रूपये की राशि केप्रावधान के साथ प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की शुरूआत की है। इस योजना के तहत राज्य और केन्द्र सरकार मिलकरप्रीमियम की 90 प्रतिशत राशि का वहन करेंगे। इस खरीफ वर्ष में 21 राज्यों के 366.64 लाख किसानों को इसके दायरे में लाया गयाहै।  

    किसानों को उनकी उपज के विपणन और लाभकारी मूल्य प्राप्त करना सबसे बड़ा चिंता का विषय रहा है जिसके लिए सरकार ने 10 राज्यों के 250 से अधिक मंडियों को बेहतर कीमत वसूली और व्यापक पहुँच के लिए ई-एनएएन (राष्ट्रीय कृषि बाजार) पोर्टल केतहत एकीकृत किया है। पिछले सप्ताह तक इस इलेक्ट्रोनिक प्लेटफार्म के जरिए 713.21 करोड़ रूपये का लेन-देन सम्पादित कियागया है जिसे विपणन के क्षेत्र में पारदर्शिता लाने की दिशा में एक बड़े कदम के रूप में देखा जा रहा है।   

    दाल की कीमतों को नियंत्रण में रखने के लिए सरकार ने आयात और घरेलू आपूर्ति के जरिए 2 मिलियन टन का बफर स्टॉकबनाया है। इसी समय राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत सरकार ने दालों के लिए ज्यादा आवंटन किया है और उत्पादन बढ़ाने केलिए भी कई उपाय किए हैं।  सरकार ने अगले वर्ष 20.75 मिलियन टन दाल के उत्पादन का लक्ष्य रखा है जबकि पिछले वर्षउत्पादन 16.47 मिलियन टन रहा था। इसके साथ ही गन्ना किसानों के बकाये का भी तेजी से भुगतान किया जा रहा है।    .   

    मानसून के प्रभाव का डर किसानों को हमेशा लगा रहता है। सरकार ने किसानों की फसलों को सूखा, बाढ़ और ओलों इत्यादि सेहोने वाले नुकसान से बचाने के लिए मुआवजे के मानदंडों में संशोधन किया है। फसल क्षति ग्रस्त होने पर किसान 33 प्रतिशत केबजाय 50 प्रतिशत मुआवजे के पात्र होंगे। पिछले दो वर्षों में राष्ट्रीय आपदा राहत कोष के तहत राज्यों को 24556 करोड़ रूपये खर्चकरने के लिए दिया गया है। क्षतिग्रस्त फसलों की तस्वीरें अपलोड करने के लिए स्मार्ट फोन और इसके आकलन के लिए ड्रोन जैसीअत्याधुनिक तकनीकों का भी इस्‍तेमाल  किया जा रहा है।

      पूर्वी और उत्तर पूर्वी राज्यों में बढ़ती जनसंख्या की खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए दूसरी हरित क्रांति पर नएउत्साह के साथ ध्यान केंद्रित किया गया है। समग्र अर्थव्यवस्था के विकास के लिए इस क्षेत्र का विकास महत्वपूर्ण है। उम्मीद है किइस वर्ष कृषि की विकास दर पिछले वर्ष की तुलना में 1.1 प्रतिशत अधिक होगा।

9 January

युवाओं को परिवर्तन की मुख्‍यधारा में लाना 


विशेष लेख

राष्ट्रीय युवा दिवस, 12 जनवरी

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सुधीरेन्द्र  शर्मा 

युवाओं की उद्यमी महत्वाकांक्षा और उपभोक्तावादी इच्छाओं को उनके दृष्टिकोण और विवेकपूर्ण कार्यों में नैतिकता और नैतिकमूल्यों को विकसित करने हेतु विवेकानंद का जन् दिवस 12 जनवरी देश के युवाओं को समर्पित है। आज के युवा बाजार संचालितउपभोक्तावादी संस्कृति के त्यधिक दिखावे से सम्मोहित हैं।

वृद्ध कार्यशक्ति के जोखिम का सामना करने वाली अन् उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के विपरीत भारत वर्ष 2020 तक कार्यआयुवर्ग में अपनी जनसंख्या के 64 प्रतिशत के साथ देश का सबसे युवा राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है। यह जनसांख्यिकीयलाभांश’ देश के लिए एक महान अवसर प्रदान करता है। सिर्फ संख्या में ही नहीं अपितु देश की सकल राष्ट्रीय आय में भी युवा 34 प्रतिशत योगदान करते हैं।

2020 तक 28 वर्ष की औसत आयु के साथ भारत की जनसंख्या के 1.3 बिलियन से अधिक होने की संभावना हैजो चीन औरजापान की औसत आयु की तुलना में काफी कम है। चीन के (776 मिलियनके बाद भारत की कामकाजी जनसंख्या में 2020 तक 592 मिलियन तक वृद्धि की संभावना है। यह इस तथ् की ओर संकेत देती है कि युवा देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्णयोगदान देंगे।

हालांकि एक आभासीय दुनिया से अत्यधिक घनिष् रूप से जुड़े होने के कारण इस आकांक्षा वर्ग को राष्ट्र निर्माण के प्रयासों मेंयोगदान करने के लिए निर्देशों की आवश्यकता होती है। उत्पादकता सुधार में उनकी श्रम सहभागिता को बढ़ाना ही उनकी ऊर्जा कोसाधने का अंग होगा। चूंकि उनकी विचारधारा प्रौद्योगिकी के द्वारा प्रति स्थापित हो चुकी हैइसलिये युवा शायद ही कभी अपनेको इस दुनिया से परे देखते हैं।

इस तरह के पीढ़ी परिवर्तन ने पहले की किसी भी पीढ़ी से एक बेहद अलग पीढ़ी का निर्माण किया है। युवा स्वयं को स्वतंत्रता केपश्चात् की समयावधि की राष्ट्र निर्माण गाथा से दूर महसूस करते है और अपने को एक ऐसी दुनिया का प्राणी समझते हैजोआशाप्रेम और दिव् आशावाद के रूप में बढ़ रही है। इस प्रकार राष्ट्रीय युवा दिवस देश के लोकाचार को युवाओं से जोड़ने का एकअवसर है।

हालांकि 12 जनवरी को 1985 से प्रति वर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता हैजिसका उद्देश् सरकार की युवा लक्षितयोजनाओं और कार्यक्रमों को राष्ट्रीय युवा नीति 2014 के द्वारा निर्देशित करना हैजिसके तहत राष्ट्रों के समुदाय में अपना सहीस्थान प्राप् करने के लिए सक्षम भारत के माध्यम से उनकी पूर्ण क्षमता को प्राप् करने हेतू देश के युवाओं को सशक् बनाना है।

भारत सरकार वर्तमान में युवा लक्षित (उच् शिक्षाकौशल विकासस्वास्थ् देखभाल के लिए 37 हजार करोड़ रूपयेगैर लक्षित (खाद्य सब्सिडीरोजगार के लिए 55 हजार करोड़ रूपयेके कार्यक्रमों के माध्यम से प्रति वर्ष युवा विकास कार्यक्रमों पर 92 हजारकरोड़ रूपये और प्रत्येक युवा पर व्यक्तिगत तौर से करीब 2710 रूपये से अधिक का निवेश करती है।

इसके अलावा राज् सरकारें और अन् बहुत से हितधारक युवा विकास और उत्पादक युवा भागीदारी को सक्षम बनाने की दिशा मेंसहायता के लिए कार्य कर रहे हैहालांकि गैर-सरकारी क्षेत्र में युवा मुद्दों पर कार्य कर रहे व्यक्िगत संगठन छोटे और बंटे हुए हैंऔर विभिन् हितधारकों के बीच समन्वय बढ़ाए जाने की आवश्यकता है।

हालाकि यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि सभी इतिहासों में युवा परिवर्तन राष्ट्रों के लिए स्वतंत्रता प्राप्ति से लेकर नईप्रौद्योगिकियों के सृजन में अग्रदूत रहे हैं जिन्होंने कलासंगीत और संस्कृति के नए स्वरूपों का भी सृजन किया। इसलिए युवाओंके विकास में सहायता और प्रोत्साहन सभी क्षेत्रों और हितधारकों में सबसे महत्वपूर्ण प्राथमिकता है।

 

युवा को एक कैडर के रूप में निर्मित करने की चुनौती स्वयं की छोटी सोच से परे कार्य करने और सोचने का मार्ग तय करती है। येकार्य उन्हें उपभोग की विचारधारा से ऊपर उठनेव्यापक सांस्कृतिक विविधता की सराहना करने के लिए विचार करने और एकऐसा बहु-आयामी परिवेश तैयार करने में मदद करती हैजहां वे सहजता से धर्मयौन अभिविन्यास और जातियों में भेद किये बिनाएक दूसरे को गले लगाने को तैयार हैं।    

युवाओं को दार्शनिक दिशा-निर्देश देने के मामले में स्वामी विवेकनंद से बेहतर कौन हो सकता हैजिनके 1893 में विश्व धर्म संसद मेंदिए गए संभाषण ने उन्हें पश्चिमी दुनिया के लिए भारतीय ज्ञान का दूत के रूप में प्रसिद्ध किया था। स्वामी विवेकनंद का माननाथा कि एक देश का भविष्य उसके युवाओं पर निर्भर करता है और इसीलिए उनकी शिक्षाएं युवाओं के विकास पर केंद्रित थीं।

पिछली पीढ़ियों की तुलना में एक वैचारिक समानता से लगाव को देखते हुए देश का युवा इन शिक्षाओं को ग्रहण करने के लिए बेहतरस्थिति में है और वर्तमान पीढ़ी के द्वारा इन्हें आसानी से इन्हें आत्मसात किया जा सकता है। ये नई पीढ़ी एक बड़ी बाधा भी होसकती है क्योंकि इन्होंने अपने आप को राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों से दूर कर लिया है।

हालांकि जे वाल्टर थॉम्पसन का एक अध्ययन आशा कि किरण लेकर आता है उनके अनुसार आज का युवा ने उपभोग का दूसरापहलु देखा है और वह बेयौन्स की तुलना में मलाला से अधिक प्रेरित है। इस पीढ़ी को नैतिक उपभोग आदतोंस्वदेशी डिजिटलप्रौद्योगिकी के उपयोगउद्यशीलता महत्वकांक्षा और प्रगतिशील विचारों की विशेषता से चित्रित किया जा सकता है। वास्तव मेंउन्हें सही दिशा के लिए दार्शनिक मार्ग दर्शन की आवश्यकता है और राष्ट्रीय युवा दिवस इस मामले में युवाओं को परिवर्तन कीमुख्यधारा में लाने के लिए एक सबसे उचित मंच है।   

 

 

डॉसुधीरेन्द्र शर्मा विकास मुद्दों पर शोध और लेखन करते हैं। इस लेख में व्यक्त विचार स्वयं लेखक के हैं।

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16 January

स्वच्छ भारत मिशन: आगे की राह

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                                                                                                                                                                                                                                                                                                                          उमाकांत लखेड़ा

महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका में बिताए वर्षों में दो घटनाएं साफ तौर पर प्रभावित करती हैं। पहली, वह नस्लीय भेदभाव जिसका उन्हें ट्रेन के प्रथम श्रेणी के डिब्बे में सामना करना पड़ा, जब उन्‍हें एक असभ्य यूरोपियन नागरिक द्वारा उनके सवालों से तंग आकर पीटरमैरिट्सबर्ग स्टेशन पर ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया था।

 

और, दूसरी घटना साफ-सफाई और स्वच्छता से संबंधित है। जब गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका के गरीब काले पुरुषों को दूसरों के शौचालय की सफाई और उनके मलमूत्र को सिर पर बाल्टी में ले जाते देखा तो उन्हें आंतरिक दु:ख हुआ। इस छोटी सी घटना ने उनकी अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया। इसी दिन गांधी जी ने प्रतिज्ञा की कि वे अपने शौचालय की सफाई खुद करेंगे। उन्होंने अपने व्रत को मन में दोहराते हुए प्रतिज्ञा की, यदि हम अपने शरीर को खुद साफ नहीं रख सकते तो हमें अपने स्वराज से बेईमानी एक दुर्गंध की तरह होगा।

 

गांधी जी के इन्हीं साफ-सफाई से संबंधित आदर्शों को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने गांधी जी की जयंती 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत मिशन ” की शुरूआत करने के लिए चुना। प्रधानमंत्री जी का स्वच्छ भारत के प्रति दृष्टिकोण और विचार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के दुर्गंध-मुक्त स्वराज  के प्रति ही बढ़ा एक और कदम है।

 

यह मिशन, जो केंद्र सरकार के विशालतम स्वच्छता कार्यक्रम का हिस्सा है, को शहरी तथा ग्रामीण घटकों में विभाजित किया गया है। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य महात्मा गांधी की 150वीं जयंती 2 अक्टूबर 2019 तक भारत को स्वच्छ बनाना है।

 

स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) की कमान शहरी विकास मंत्रालय को दी गई है और 4041 वैधानिक कस्बों में रहने वाले 377 लाख व्‍यक्तियों तक स्वच्छता हेतु घर में शौचालय की सुविधा प्रदान करने का काम सौंपा गया है। इसमें पांच वर्षों में करीब 62009 करोड़ रूपये व्यय का अनुमान है जिसमें केन्द्र सरकार 14623 करोड़ रूपये की राशि सहायता के तौर पर उपलब्ध करायेगी। इस मिशन के अंतर्गत 1.04 करोड़ घरों को लाना है जिसके तहत 2.5 लाख सामुदायिक शौचालय सीटें उपलब्ध कराना, 2.6 लाख सार्वजनिक शौचालय सीटें उपलब्ध कराना तथा सभी शहरों में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की सुविधा मुहैया करना है।

इस मिशन के 6 प्रमुख घटक हैं-

1. व्यक्तिगत घरेलू शौचालय;

2. सामुदायिक शौचालय;

3. सार्वजनिक शौचालय;

4. नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन;

5. सूचना और शिक्षित संचार (आईईसी) और सार्वजनिक जागरूकता;

6. क्षमता निर्माण  

शहरी मिशन के तहत खुले में शौच को समाप्त करनाअस्वास्थ्यकर शौचालयों को फ्लश शौचालयों में परिवर्तित करना; और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की सुविधा का विकास करना है। इस मिशन के तहत लोगों को खुले में शौच के हानिकारक प्रभावों, बिखरे कचरे से पर्यावरण को होने वाले खतरों आदि के बारे में शिक्षित कर उनके व्यवहार में परिवर्तन लाने पर विशेष जोर दिया जाता है। इन उद्देश्यों को पूरा करने में शहरी स्थानीय निकायों का बेहतरीन तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है तथा साथ ही इसमें निजी क्षेत्र की भी भागीदारी ली जा सकती है।          

 

ग्रामीण मिशन, जिसे स्वच्छ भारत ग्रामीण के नाम से जाना जाता है, का उद्देश्य 2 अक्टूबर 2019 तक खुले में शौच से ग्राम पंचायतों को मुक्त करना है। इस मिशन की सफलता के लिए गांवों में व्यक्तिगत शौचालयों के निर्माण को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ सार्वजनिक-निजी भागीदारी से क्लस्टर और सामुदायिक शौचालयों का निर्माण करना भी है।

 

 

गांव के स्कूलों में गन्दगी और मैली की स्थिति को देखते हुएइस कार्यक्रम के तहत स्कूलों में बुनियादी स्वच्छता सुविधाओं के साथ शौचालयों के निर्माण पर विशेष जोर दिया जाता है। सभी

ग्राम पंचायतों में आंगनबाड़ी शौचालय और ठोस तथा तरल कचरे का प्रबंधन इस मिशन की प्रमुख विषय-वस्तु है। नोडल एजेंसियां ग्राम पंचायत और घरेलू स्तर पर शौचालय के निर्माण और उपयोग की निगरानी करेंगी। ग्रामीण मिशन के तहत 134000 करोड़ रूपये की लागत से 11.11 करोड़ शौचालयों का निर्माण किया जा रहा है।

 

 

व्यक्तिगत घरेलू शौचालय के प्रावधान के तहत, बीपीएल और एपीएल वर्ग के ग्रामीणों को केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा प्रत्येक शौचालय के लिए क्रमश: 9000 रुपये और 3000 रुपये का प्रोत्साहन -निर्माण और उपयोग के बाद- दिया जाता है। उत्तर-पूर्व के राज्यों, जम्मू-कश्मीर तथा विशेष श्रेणी के क्षेत्रों के लिए यह प्रोत्साहन राशि क्रमश: 10800 रुपये और 1200 रुपये है।

 

 

कार्यान्वयन की नियमित रूप से समीक्षा की जा रही है, परिणाम उम्मीद से अधिक हैं। आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2014-15 में 5854987 शौचालयों का निर्माण किया गया जबकि लक्ष्य 50 लाख शौचालयों का ही था। इसमें लक्ष्य के 117 प्रतिशत तक सफलता हासिल हुआ है। 2015-16 में 127.41 लाख शौचालयों का निर्माण किया गया है जो लक्ष्य 120 लाख से ज्यादा है। 2016-17 में लक्ष्य 1.5 करोड़ रखा गया और इसमें 1 अगस्त 2016 तक 3319451 शौचालयों का निर्माण पूरा कर लिया गया है तथा बाकी के लिए भी तेजी से काम चल रहा है।

 

 

ग्रामीण मिशन के तहत 1 अक्टूबर 2014 से 1 अगस्त 2016 तक 210.09 लाख शौचालयों का निर्माण किया गया है। इसी अवधि में स्वच्छता का दायरा 42.05 प्रतिशत से बढ़कर 53.60 प्रतिशत तक पहुंच गया है।

 

 

हालांकि, अंत में, स्वच्छता की कार्यप्रणाली में क्या व्यवहारिक परिवर्तन हुआ है यही मायने रखता है। यह जिलाधिकारियोंसीईओजिला पंचायत तथा जिला पंचायत के अध्यक्षों के संयुक्त प्रयासों का प्रतिफल होता है। इस सफाई अभियान से संबंधित राज्य स्तरीय कार्यशालाओं द्वारा अलग-अलग राज्यों में कार्य किया जा रहा है।

 

 

अंत में यह कि प्रधानमंत्री भी स्वच्छ भारत मिशन की सफलता के लिए मजबूती से इसके पीछे खड़े हैं। केन्द्र और राज्यों के बीच समन्वय उसके प्रतिनिधियों के राज्यों का दौरा करने और समन्वय बैठकों में भाग लेने से बढ़ा है। अंतत: हम कह सकते हैं कि स्वच्छ भारत मिशन सही रास्ते पर अग्रसर है।

 

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 16 jan

स्वच्छ भारत मिशन: आगे की राह

http://pibphoto.nic.in/documents/rlink/2017/jan/i201711303.jpg

उमाकांत लखेड़ा

महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका में बिताए वर्षों में दो घटनाएं साफ तौर पर प्रभावित करती हैं। पहली, वह नस्लीय भेदभाव जिसका उन्हें ट्रेन के प्रथम श्रेणी के डिब्बे में सामना करना पड़ा, जब उन्‍हें एक असभ्य यूरोपियन नागरिक द्वारा उनके सवालों से तंग आकर पीटरमैरिट्सबर्ग स्टेशन पर ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया था।

 

और, दूसरी घटना साफ-सफाई और स्वच्छता से संबंधित है। जब गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका के गरीब काले पुरुषों को दूसरों के शौचालय की सफाई और उनके मलमूत्र को सिर पर बाल्टी में ले जाते देखा तो उन्हें आंतरिक दु:ख हुआ। इस छोटी सी घटना ने उनकी अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया। इसी दिन गांधी जी ने प्रतिज्ञा की कि वे अपने शौचालय की सफाई खुद करेंगे। उन्होंने अपने व्रत को मन में दोहराते हुए प्रतिज्ञा की, यदि हम अपने शरीर को खुद साफ नहीं रख सकते तो हमें अपने स्वराज से बेईमानी एक दुर्गंध की तरह होगा।

 

गांधी जी के इन्हीं साफ-सफाई से संबंधित आदर्शों को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने गांधी जी की जयंती 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत मिशन ” की शुरूआत करने के लिए चुना। प्रधानमंत्री जी का स्वच्छ भारत के प्रति दृष्टिकोण और विचार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के दुर्गंध-मुक्त स्वराज  के प्रति ही बढ़ा एक और कदम है।

 

यह मिशन, जो केंद्र सरकार के विशालतम स्वच्छता कार्यक्रम का हिस्सा है, को शहरी तथा ग्रामीण घटकों में विभाजित किया गया है। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य महात्मा गांधी की 150वीं जयंती 2 अक्टूबर 2019 तक भारत को स्वच्छ बनाना है।

 

स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) की कमान शहरी विकास मंत्रालय को दी गई है और 4041 वैधानिक कस्बों में रहने वाले 377 लाख व्‍यक्तियों तक स्वच्छता हेतु घर में शौचालय की सुविधा प्रदान करने का काम सौंपा गया है। इसमें पांच वर्षों में करीब 62009 करोड़ रूपये व्यय का अनुमान है जिसमें केन्द्र सरकार 14623 करोड़ रूपये की राशि सहायता के तौर पर उपलब्ध करायेगी। इस मिशन के अंतर्गत 1.04 करोड़ घरों को लाना है जिसके तहत 2.5 लाख सामुदायिक शौचालय सीटें उपलब्ध कराना, 2.6 लाख सार्वजनिक शौचालय सीटें उपलब्ध कराना तथा सभी शहरों में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की सुविधा मुहैया करना है।

इस मिशन के 6 प्रमुख घटक हैं-

1. व्यक्तिगत घरेलू शौचालय;

2. सामुदायिक शौचालय;

3. सार्वजनिक शौचालय;

4. नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन;

5. सूचना और शिक्षित संचार (आईईसी) और सार्वजनिक जागरूकता;

6. क्षमता निर्माण

शहरी मिशन के तहत खुले में शौच को समाप्त करनाअस्वास्थ्यकर शौचालयों को फ्लश शौचालयों में परिवर्तित करना; और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की सुविधा का विकास करना है। इस मिशन के तहत लोगों को खुले में शौच के हानिकारक प्रभावों, बिखरे कचरे से पर्यावरण को होने वाले खतरों आदि के बारे में शिक्षित कर उनके व्यवहार में परिवर्तन लाने पर विशेष जोर दिया जाता है। इन उद्देश्यों को पूरा करने में शहरी स्थानीय निकायों का बेहतरीन तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है तथा साथ ही इसमें निजी क्षेत्र की भी भागीदारी ली जा सकती है।

 

ग्रामीण मिशन, जिसे स्वच्छ भारत ग्रामीण के नाम से जाना जाता है, का उद्देश्य 2 अक्टूबर 2019 तक खुले में शौच से ग्राम पंचायतों को मुक्त करना है। इस मिशन की सफलता के लिए गांवों में व्यक्तिगत शौचालयों के निर्माण को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ सार्वजनिक-निजी भागीदारी से क्लस्टर और सामुदायिक शौचालयों का निर्माण करना भी है।

 

 

गांव के स्कूलों में गन्दगी और मैली की स्थिति को देखते हुएइस कार्यक्रम के तहत स्कूलों में बुनियादी स्वच्छता सुविधाओं के साथ शौचालयों के निर्माण पर विशेष जोर दिया जाता है। सभी

ग्राम पंचायतों में आंगनबाड़ी शौचालय और ठोस तथा तरल कचरे का प्रबंधन इस मिशन की प्रमुख विषय-वस्तु है। नोडल एजेंसियां ग्राम पंचायत और घरेलू स्तर पर शौचालय के निर्माण और उपयोग की निगरानी करेंगी। ग्रामीण मिशन के तहत 134000 करोड़ रूपये की लागत से 11.11 करोड़ शौचालयों का निर्माण किया जा रहा है।

 

 

व्यक्तिगत घरेलू शौचालय के प्रावधान के तहत, बीपीएल और एपीएल वर्ग के ग्रामीणों को केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा प्रत्येक शौचालय के लिए क्रमश: 9000 रुपये और 3000 रुपये का प्रोत्साहन -निर्माण और उपयोग के बाद- दिया जाता है। उत्तर-पूर्व के राज्यों, जम्मू-कश्मीर तथा विशेष श्रेणी के क्षेत्रों के लिए यह प्रोत्साहन राशि क्रमश: 10800 रुपये और 1200 रुपये है।

 

 

कार्यान्वयन की नियमित रूप से समीक्षा की जा रही है, परिणाम उम्मीद से अधिक हैं। आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2014-15 में 5854987 शौचालयों का निर्माण किया गया जबकि लक्ष्य 50 लाख शौचालयों का ही था। इसमें लक्ष्य के 117 प्रतिशत तक सफलता हासिल हुआ है। 2015-16 में 127.41 लाख शौचालयों का निर्माण किया गया है जो लक्ष्य 120 लाख से ज्यादा है। 2016-17 में लक्ष्य 1.5 करोड़ रखा गया और इसमें 1 अगस्त 2016 तक 3319451 शौचालयों का निर्माण पूरा कर लिया गया है तथा बाकी के लिए भी तेजी से काम चल रहा है।

 

 

ग्रामीण मिशन के तहत 1 अक्टूबर 2014 से 1 अगस्त 2016 तक 210.09 लाख शौचालयों का निर्माण किया गया है। इसी अवधि में स्वच्छता का दायरा 42.05 प्रतिशत से बढ़कर 53.60 प्रतिशत तक पहुंच गया है।

 

 

हालांकि, अंत में, स्वच्छता की कार्यप्रणाली में क्या व्यवहारिक परिवर्तन हुआ है यही मायने रखता है। यह जिलाधिकारियोंसीईओजिला पंचायत तथा जिला पंचायत के अध्यक्षों के संयुक्त प्रयासों का प्रतिफल होता है। इस सफाई अभियान से संबंधित राज्य स्तरीय कार्यशालाओं द्वारा अलग-अलग राज्यों में कार्य किया जा रहा है।

 

 

अंत में यह कि प्रधानमंत्री भी स्वच्छ भारत मिशन की सफलता के लिए मजबूती से इसके पीछे खड़े हैं। केन्द्र और राज्यों के बीच समन्वय उसके प्रतिनिधियों के राज्यों का दौरा करने और समन्वय बैठकों में भाग लेने से बढ़ा है। अंतत: हम कह सकते हैं कि स्वच्छ भारत मिशन सही रास्ते पर अग्रसर है।

 

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23 jan

राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाना 


 

विशेष लेख

 

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बरनाली दास

 

देश कल राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने जा रहा है। प्रत्येक वर्ष 24 जनवरी को हम बालिका दिवस मनाते हैं, समाज में बालिकाओं के लिए समान स्थिति और स्थान स्वीकार करते है और एक साथ मिलकर हमारे समाज में बालिकाओं के साथ हो रहे भेदभाव और असमानता के विरूद्ध संघर्ष का संकल् लेते हैं।

 

लेकिन यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण और अत्यधिक चिंता का विषय है कि देश में वर्ष 1961 से ही बाल लिंग अनुपात तेजी से गिरता रहा है। हम वर्ष 2017 में है और 21वीं शताब्दी के दूसरे दशक को पूरा करने जा रहे है, लेकिन हम विचारधारा को बदलने में सफल नहीं हुए है।

 

एक शिक्षित, आर्थिक रूप से स्वतंत्र महिला और कार्य स्थल तथा घर में सम्मानित महिला के लिए यह वास्तविकता जानकर कठिनाई होती है कि भारतीय समाज में सभी वर्गों में बड़ी संख्या में लोग बेटा होने की इच्छा रखते हैं और नहीं चाहते कि उन्हें बेटी हो। ऐसे लोग भ्रूण हत्या की सीमा तक जाते हैं।

 

विभिन् क्षेत्रों में कुछ लड़कियों द्वारा ऊंची उपलब्धि हासिल करने के बावजूद भारत में जन् लेने वाली अधिकतर लड़कियों के लिए यह कठोर वास्तविकता है कि लड़कियां शिक्षा, स्वास्थ् जैसे बुनियादी अधिकारों और बाल विवाह से सुरक्षा के अधिकार से वंचित हैं। परिणामस्वरूपआर्थिक रूप से सशक् नहीं है, प्रताड़ित और हिंसा की शिकार हैं। जनगणना आंकड़ों के अनुसार बाल लिंग अनुपात (सीएसआर) 1991 के 945 से गिरकर 2001 में 927 हो गया और इसमें फिर 2011 में गिरावट आई और बाल लिंग अनुपात 918 रह गया। यह महिलाओं के कमजोर होने का प्रमुख सूचक है, क्योंकि यह दिखाता है कि लिंग आधारित चयन के माध्यम से जन् से पहले भी लड़कियों के साथ भेदभाव किया जाता है और जन् के बाद भी भेदभाव का सिलसिला जारी रहता है।

 

लड़कियों के साथ व्यापक स्तर पर सामाजिक भेदभाव तथा नैदानिक उपायों की उपलब्धता और दुरूपयोग दोनों के कारण बाल लिंग अनुपात (सीएसआर) में कमी आई है। इस वास्तविकता से निपटना था और परिणामस्वरूप बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ (बीबीबीपी) योजना लागू की गई है। यह योजना विभिन् क्षेत्रों में पूरे देश में विचार विमर्श के बाद तैयार की गई है।

 

22 जनवरी, 2015 को हरियाणा के पानीपत में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा लॉन् की गई बीबीबीपी योजना का प्राथमिक लक्ष् बाल लिंग अनुपात में सुधार करना तथा महिला सशक्तिकरण से जुड़े अन् विषयों का समाधान करना है। दो वर्ष पुरानी यह योजना तीन मंत्रालयों-महिला तथा बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ् और परिवार कल्याण मंत्रालय तथा मानव संसाधान तथा विकास मंत्रालय द्वारा संचालित है। महिला तथा बाल विकास मंत्रालय नोडल मंत्रालय है। यह योजना अनूठी है और मनोदशा रिवाजों तथा भारतीय समाज में पितृसत्ता की मान्यताओं को चुनौती देती है।

 

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना को लागू करने के लिए बहुक्षेत्रीय रणनीति अपनाई गई है। इसमें लोगों की सोच को बदलने के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान चलाना स्थानीय नवाचारी उपायों से समुदाय तक पहंचने पर बल देना, केन्द्रीय स्वास्थ् मंत्रालय द्वारा गर्भ पूर्व तथा जन् पूर्व नैदानिक तकनीकी अधिनियम लागू करना और स्कूलों में लड़कियों के अनुकूल संरचना बनाकर बालिका शिक्षा को प्रोत्साहित करना तथा शिक्षा के अधिकार को कारगर ढंग से लागू करना शामिल है। शुरू में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना देश के सौ जिलों में लागू की गई। पिछले एक वर्ष में रेडियो,टेलीविजन, सिनेमा, डिजिटल मीडिया तथा सोशल मीडिया सहित विभिन् मीडिया में कार्यक्रम को लेकर अभियान चलाने से जागरूकता बढ़ी है। इस अभियान के तहत सामूहिक सामुदायिक कार्य और उत्सवों का आयोजन किया गया जैसे लड़की का जन्मदिन मनाना, साधारण तरीके से विवाह को बढ़ावा देना, महिलाओं के संपत्ति के अधिकार को समर्थन देनासामाजिक तौर-तरीकों को चुनौती देने वाले स्थानीय चैम्पियनों को पुरस्कृत करना और युवाओं तथा लड़कों को शामिलकिया गया।

 

विभिन् स्तरों पर ग्राम पंचायतों के माध्यम से लोगों से संवाद किया गया। बातचीत में प्रत्यायित सामाजिक स्वास्थ् कार्यकर्ता (आशा), आंगनवाड़ी कार्यकर्ता (एडब्ल्यूडब्ल्यू) ऑक्सीलियरी नर्सिंग मिडवाइफ (एएनएम) तथा स्वयं सहायता समूह के सदस्यों, निर्वाचित प्रतिनिधियों, धार्मिक नेताओें और समुदाय के नेताओं को शामिल किया गया।

 

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान को व्यापक बनाने के लिए, विशेषकर युवाओं में व्यापकता के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों का भी इस्तेमाल किया गया और  जन साधारण में बालिका के महत् को लेकर सार्थक संदेश दिेये गये।

 

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना के क्रियान्वयन के दूसरे वर्ष में गर्भ पूर्व तथा जन् पूर्व नैदानिक तकनीकी अधिनियम को कठोरता से लागू करने पर ध्यान दिया जा रहा है और  मानव संसाधन विकास मंत्रालय लड़कियों की शिक्षा पर विशेष रूप से फोकस कर रहा है। गर्भावस्था के पंजीकरण, संस्थागत डिलीवरी तथा जन् पंजीकरण जैसे उपायों पर भी बल दिया जा रहा है।

 

अभी देश के 161 जिलों में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना चलाई जा रही है। सौ जिलों से मिली प्रारंभिक रिपोर्ट संतोषपद्र है। यह संकेत मिलता है कि अप्रैल-मार्च 2014-15 तथा 2015-16 के बीच 58 बीबीबीपी जिलों में बाल लिंग अनुपात को लेकर समझदारी बढ़ी। 69 जिलों में त्रैमासिक पंजीकरण में बढ़ोतरी हुई और पिछले वर्ष की कुल डिलीवरी की तुलना में 80 जिलों में संस्थागत डिलीवरी में सुधार हुआ। हरियाणा में दिसम्बर, 2016 में दो दशकों में पहली बार जन् पर लिंग अनुपात 900 पर पहुंचा।

 

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के विभिन् हितधारकों को सतत रूप से सक्रिय बनाए रखने के लिए महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा सिविल सोसाइटी, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और औद्योगिक संघों को भागीदार बनाया गया। इससे नागरिक समाज के संगठनों को अपने कार्यों को बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना से जोड़ने के लिए प्रेरणा मिली।

 

भारत में बालिका के भविष् के लिए बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना अत्याधिक महत्वपूर्ण और सफल योजना है। पहले वर्ष की सफलता से दिखता है कि देश में विपरीत बाल लिंग अनुपात को समाप् करना सभी के सहयोग से संभव है।

 

 

* लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और अभी एसओएस चिल्ड्रर्न विलिजेज ऑफ इंडिया में कम्युनिकेशन प्रमुख हैं। वह महिला और बाल विकास मंत्रालय की बीबीबीपी की कार्यक्रम प्रबंधन ईकाई के सहयोग को स्वीकार करती हैं।

 

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डिजिटल भुगतान 

 

विशेष लेख

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सरिता बरारा

'यह कोई बड़ी राशि नहीं हैलेकिन निश्चित रूप से उपयोगी हो सकती हैयह कहना है उत्तर प्रदेश में गोंडा स्थित एक सरकारी स्कूल के टीचर मुकेश कुमार वर्मा काजिन्हें एसएमएस से सूचना मिली कि उन्होंने लकी ग्राहक योजना के तहत 1000 रुपये का पुरस्कार जीता है। वर्तमान में सभी तरह का लेन देन डिजिटल माध्यम से कर रहे मुकेश बताते हैं, 'अन्य लाभों के अलावा यह निश्चित रूप से कैश लेन-देन की तुलना में बेहतर है।'

एक और लकी ड्रा विजेता सतीश कुमार एक छात्र हैं और इस समय दसवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। सतीश कुमार बताते हैं कि डिजिटल मोड से भुगतान करने से काले धन को समाप्त करने में मदद मिलेगी जिस पर प्रधानमंत्री भी जोर दे रहे हैं। सतीश कुमार उत्तर प्रदेश के संत रविदास नगर जिले के भदोही स्थित सरवटखनी गांव में रहते हैं। सतीश एक डॉक्टर बनना चाहते हैंडिजिटलीकरण की तारीफ करते हुए सतीश कहते हैं कि डिजिटल पेमेंट करना बहुत ही आसान है। एक किसान के बेटे सतीश कुमार का कहना है, "जब बीज और अन्य कृषि आदानों को खरीदने के लिए जाते हैंतो साथ में नकदी ले जाना हमेशा जोखिम भरा रहता है लेकिन सरकार द्वारा अब डिजिटल पेमेंट के कई तरीके पेश किए जा रहे हैं इससे चोरी या लूट का भय ही नहीं रहेगा।'

मुकेश और सतीश कुमार डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिए पिछले साल 25 दिसंबर को शुरू की गयी लकी ग्राहक योजना तथा डिजी-धन व्यापार योजना के ग्रामीण विजेताओं में से एक हैं।

डिजिटल भुगतान के विकल्पों को बढ़ावा देनासरकार की उस रणनीति का हिस्सा हैं जिसके तहत सार्वजनिक जीवन से काले धन और भ्रष्टाचार को पूरी तरह से साफ करना है। केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी तथा कानून एवं न्याय मंत्री श्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा, "डिजिटल इंडिया का अर्थ ईमानदार प्रशासनडिजिटल भुगतान का मतलब लेनदेन का एक ईमानदार माध्यम है और डिजिटल अर्थव्यवस्था का मतलब एक मजबूत अर्थव्यवस्था है।"

दो प्रोत्साहन योजनाओं के तहत9 नवंबर2016 से 14 अप्रैल 2017 के दौरान सभी प्रकार के लेनदेनों को डिजिटल माध्यम से भुगतान करने वाले उपभोक्ता और व्यापारी लकी ड्रा में नकद पुरस्कार पाने के पात्र हैं।

भारत में डिजिटल भुगतान और लैस कैश सोसाइटी को एक जन आंदोलन बनाने के प्रयास में100 दिनों के भीतर देश के विभिन्न 100 शहरों में डिजी धन मेलों का आयोजन किया जा रहा है।  पिछले साल 9 नवंबर से 21 दिसंबर के बीच किए गए डिजिटल भुगतान के तहत 8 करोड़ लेन-देन हुए। पहले डिजी धन मेले में चार व्यापक श्रेणियों (यूएसएसडीयूपीआईएईपीएसरुपे) के तहत 15000 विजेताओं का चयन किया गया था। 100 दिनों के लिए 15000 लोगों को हर दिन पुरूस्कृत किया जाएगा और इस योजना का समापन दो प्रोत्साहन योजनाओं के साथ इस साल 14 अप्रैल को एक मेगा ड्रा के रूप में होगा। ध्यान देने वाली बात यह है कि रोज/साप्ताहिक पुरस्कार जीतने वाले विजेता भी 14 अप्रैल2017 को आयोजित होने वाले मेगा ड्रा के लिए पात्र होंगे। इसमें उपभोक्ताओं को तीन श्रेणियों में मेगा पुरस्कार दिए जाएंगे जिसमें 1 करोड़ रुपये,50 लाख रुपये से 25 लाख रुपये शामिल हैं। व्यापारियों के लिए भी तीन मेगा पुरस्कार दिए जाएंगे जिसमें 50 लाख25 लाख12 लाख रुपये का पुरस्कार शामिल है। इन दो योजनाओं के लिए पुरस्कार राशि के रूप में 300 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगेजबकि 40 करोड़ रुपये जागरूकता और प्रचार के लिए आवंटित किए गए हैं। इन प्रोत्साहन योजनाओं के तहत कुल 18.75 लाख लोग पुरस्कार से लाभान्वित होंगे।

जागरूकता फैलाने और उपभोक्ताओं तथा व्यापारियों को  डिजिटल भुगतान के विकल्पों के बारे में शिक्षित करने के लिए बैंकोंवॉलेटदूरसंचार सेवा प्रदाताओंअन्य वित्तीय सेवा प्रदाताओं की तरहयूआईडीएआई भी डिजीधन मेले में उपस्थित रहेगा। नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत के मुताबिक9 नवबंर के बाद भारत में डेढ़ महीने के दौरान डिजिटल लेनदेन की मात्रा में 300 से 350 फीसदी तक वृद्दि हुई है जो लोगों के बीच उत्साह को प्रदर्शित करता है।

विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिए सरकार 2 लाख सामान्य सेवा केन्द्रों के माध्यम से एक करोड़ से अधिक ग्रामीण नागरिकों को प्रशिक्षण प्रदान करने की एक मिशन मोड योजना पर कार्य कर रही है। यहां तक कि ग्रामीण क्षेत्रों में कैशलेस लेनदेन को बढ़ावा देने के लिए लिए कई कदमों को उठाया गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में कार्ड और पीओएस मशीन की आपूर्ति में सुधार किया गया है।

अधिकतर किसान बीज और उर्वरक जैसी कृषि सामाग्रियों की खरीददारी नकद या उधार में करते हैं क्योंकि टेक्नोलॉजी अभी भी ग्रामीण इलाकों तक पूरी तरह नहीं पहुंच सकी है।  किसानों को कैशलेस भुगतान के लिए समर्थ बनाने की दिशा में नाबार्ड ने लेनदेन के लिए ऋण समितियों और सहकारी बैंकों से कहा है कि वे जन धन योजना के तहत सीधे बचत खाते खोले। किसान रूपे कार्ड के माध्यम से बीजखाद और अन्य खेती के उपकरण खरीद सकते हैं। नाबार्ड को 100,000 गांवों में 200,000 पीओएस मशीनें लगाने के लिए 120 रुपये आवंटित किए जा चुके हैं। इन पीओएस मशीनों को वाणिज्यिक बैंकों में लगाया जाएगा। नाबार्ड पीओएस मशीन की खरीद के लिए वाणिज्यिक बैंकों को 6,000 रुपये प्रति उपकरण प्रोत्साहन राशि प्रदान करेगा।

भारत के पास अर्थव्यवस्था को डिजिटल बनाने की विशाल क्षमता है। केंद्रीय वित्त और कारपोरेट मामलों के मंत्री  अरुण जेटली को विश्वास है कि डिजिटल इंडिया आंदोलन देश की आर्थिक रीढ़ को मजबूत करेगा। 

नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने उम्मीद व्यक्त करते हुए कहा है,  "यह सिर्फ कुछ समय की ही बात हैभारत विकास के युग में प्रवेश कर चुका है जो डिजिटल क्रांति है।"

*लेखिका नई दिल्ली में स्वतंत्र पत्रकार हैं और वे नियमित रूप से समाचार पत्रों में सामाजिक मुद्दों पर लिखती हैं। इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखिका के स्वयं के हैं।

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24 jan

बजट 1 फरवरी को पेश कर सरकार व्यय की गुणवत्ता सुनिश्चित करेगी

 

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*प्रकाश चावला

केन्द्र सरकार ने वर्ष 2016-17 के बजट में व्यय के मद में 20 लाख करोड़ रुपये के करीब खर्च करने का प्रावधान किया है। वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिए केन्द्रीय वित्त मंत्री श्री अरूण जेटली ने कुल व्यय 22 लाख करोड़ रूपये और 23 लाख करोड़ रूपये के बीच रखा है। यह मौजूदा कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 14 प्रतिशत है।

अतीत में बजट फरवरी के अंतिम कार्य दिवस को संसद में प्रस्तुत किया जाता था, लेकिन इस बार वित्तीय वर्ष 2017-18 का बजट वित्त मंत्री श्री अरूण जेटली 1 फरवरी को पेश करेंगे। बिना किसी राजनीतिक बहस में गये, एक स्वतंत्र विश्लेषण द्वारा बजट प्रस्तुति को आगे बढ़ाने को रख सकते हैं जिसके फलस्वरूप हम कह सकते हैं कि इससे सरकार को दो प्रमुख आयात उद्देश्यों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।

 

सबसे पहला और महत्वपूर्ण लक्ष्य व्यय की गुणवत्ता में सुधार लाना है और इस तरह से केन्द्रीय योजनाओं और परियोजनाओं को क्रियान्वित करने में निश्चित रूप से बदलाव आयेगा जब इनके लिए आवंटित राशि को संसद से मंजूरी दिलाकर संबंधित विभागों या मंत्रालयों को समय से निर्गत कर दिया जायेगा। दूसरी उपलब्धि यह है कि सरकार जीडीपी में विकास के लिए किस तरह व्यय करती है20 लाख करोड़ रूपये से ज्यादा का सरकारी व्यय निवेश के पुनरुद्धार और उपभोक्ताओं की मांगों को बढ़ाने के लिए किए गये प्रयासों को दर्शाता है, साथ ही इससे केन्द्र सरकार के कर्मचारियों के लिए सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट के कार्यान्वयन में भी मदद मिली है।

प्रचलित प्रणाली के अनुसार अब तक बजट फरवरी के अंतिम कार्य दिवस के दिन लोकसभा में पेश किया जाता था और जिससे नये वित्तीय वर्ष के पहले दिन 1 अप्रैल से संचित निधि से धन की निकासी के लिए लेखानुदान संसद से प्राप्त होता था।  

बजट सत्र को दो चरणों में संपन्न होता है: पहले चरण में सरकार को निर्बाध गति से कामकाज करने के लिए लेखानुदान प्राप्त किया जाता है जबकि बजट सत्र के दूसरे चरण मई में बजट को संसद से पूर्ण मान्यता मिलती है। जबकि वित्त मंत्री के बजट भाषण में कर और गैर-कर प्रस्तावों को बजट पेश करते समय ही सरकार की प्रमुख नीति तथा दशा एवं दिशा को दर्शाता है और बजट बाषण की समाप्ति के बाद इस पर बहस होती है। बहस के बाद ही बजट प्रस्तावों में सुधार की सिफारिश की जाती है। 

लेकिन समय से पूर्व कम-से-कम पहली तिमाही के लिए अंतिम परिव्यय उपलब्ध हो जाता है। दूसरी तिमाही में संबंधित विभाग और मंत्रालय बजट में घोषित परियोजनाओं और कार्यक्रमों को लागू करने पर काम शुरू कर देते हैं जो सरकार के लिए प्रमुख होता है। सरकारी धन को निजी व्यवसाय की तरह खर्च नहीं किया जा सकता है। इसमें तय प्रक्रियाओं का अच्छी तरह पालन किया जाता हैसंसदीय समितियों के अलावा भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) और इस जैसी अन्य एजेंसियों जैसे केंद्रीय सतर्कता आयोग द्वारा समीक्षा की जाती है। नौकरशाहों को कार्यक्रमों और नीतियों के कार्यान्वयन में सावधानी बरतने के कारण थोड़ा विलम्ब होता है। निविदा जारी करनेसौदों को अंतिम रूप देने इत्यादि की पूरी प्रक्रिया में कुछ महीने लग सकते हैं जिससे ज्यादातर मामलों में संबंधित विभाग को ठेकेदार को आदेश निर्गत करने में तीसरी तिमाही के मध्य या अंत तक का समय लग जाता है। जिससे पैसा अंतिम तिमाही में या कभी-कभी तो 31 मार्च तक ही व्यय हो पाता है। स्वाभाविक रूप से दवाब संबंधित ठेकेदार के साथ-साथ विभाग या मंत्रालय पर भी जाता है जिससे उस काम की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है।

इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर सरकार ने बजट को पहले पेश करने का मन बनाया और उसे इस वर्ष से मूर्त रूप भी देने जा रही है। सरकार के इस कार्य से बजट पर लोकसभा एवं राज्यसभा में चर्चा के लिए पर्याप्त समय भी मिलेगा तथा संबंधित मंत्रालयों एवं विभागों को परियोजनाओं को कार्यान्वित करने की शुरूआत करने में भी सुविधा होगी। इसमें सरकार की मंशा स्पष्ट है कि उसे कार्यों को शुरू करने से लेकर खत्म करने तक में समय की कमी नहीं होगी और सरकार भी उन्नति के पथ पर अग्रसर रहेगी।

 

इस तरह के प्रयासों का स्वागत किया जाना चाहिए। इससे सिर्फ अर्थव्यवस्था में सुधार दिखाई देगा बल्कि उपभोक्ताओं की मांग को पूरा करने एवं निवेश को बढ़ाने में भी मदद मिलेगी तथा कई वरिष्ठ मंत्रियों को सरकार की अर्थव्यवस्था के बारे में समय से आकलन करने में मदद मिलेगीजिससे 2017 में सड़कोंहवाई अड्डोंबंदरगाहोंशिपिंगकृषि के बुनियादी ढांचे आदि जैसे क्षेत्रों में राज्य के व्यय में आर्थिक पुनरुद्धार के लिए नया रास्ता भी खुलेगा और जब एक बार स्थिति में गतिशीलता जायेगी तो निजी क्षेत्र में गुणात्मक प्रभाव देखने को मिलेगा और पूरे चक्र में एक परिवर्तन दिखाई देगा।

 

बजट में ग्रामीण परिदृश्य पर और ध्यान देने की उम्मीद है ताकि आने वाले महीनों में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों से संबंधित सरकारी कार्यक्रम सकल घरेलू उत्पाद की गति में उत्प्रेरक साबित हों।

 

इस तरह, पूरे बजट का सदुपयोग किया जा सकेगा और अंतत हम कह सकते हैं कि सरकार की मंशा सकारात्मक दिशा में कदम बढ़ाने की है। 

 

 

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राष्ट्रीय मतदाता दिवस: लोकतंत्र के लिए मजबूत प्रतिबद्धता 

25 जनवरी- राष्ट्रीय मतदाता दिवस

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*प्रियदर्शी दत्ता

7वां राष्ट्रीय मतदाता दिवस 25 जनवरी (बुधवार) को मनाया जायेगा। भारत के निर्वाचन आयोग की स्थापना की याद में 2011 में इसकी शुरूआत की गई थी। 25 जनवरी 1950 को पहले गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर निर्वाचन आयोग अस्तित्व में आया था। लेकिन राष्ट्रीय मतदाता दिवस के अवसर पर इतिहास को याद करने के बजाय हमें आगे की राह के बारे में तय करना होगा। राष्ट्रीय मतदाता दिवस की घोषणा मतदाताओं की संख्या मूलतजो हाल में ही 18 वर्ष की आयु सीमा पूरी की है, को बढ़ाने के उद्देश्य से की गई थी।      

संविधान (61वां संशोधन) अधिनियम, 1988 के तहत लम्बे समय से चली रही जनता की मांग को पूरा करने के लिए मतदान की आयु सीमा 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष की गई थी। इसके बाद नवंबर 1989 में संपन्न हुए 10 वें आम चुनाव में 18 वर्ष से 21 वर्ष के आयु वर्ग के 35.7 मिलियन (3.5 करोड़) मतदाताओं ने पहली बार मतदान में हिस्सा लिया था।

लेकिन मिशन अभी भी पूरा नहीं हुआ था। पिछले दो दशकों में उत्साहजनक  परिणाम नहीं प्राप्त हुए। योग्य युवा मतदाताओं का मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने की रफ्तार काफी ठंडी रही। कुछ मामलों में तो यह करीब 20 से 25 प्रतिशत ही रहा। मतदाता सूची में नाम दर्ज कराना अनिवार्य नहीं सिर्फ स्वैच्छिक है जिसके कारण चुनाव आयोग सिर्फ लोगों को मतदान के लिए जागरूक ही कर सकता है।लेकिन चुनाव आयोग की प्राथमिकता स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराना है। यह अपने आप में एक लंबा और चुनौतीपूर्ण काम है।

जबतक मतदाता चुनाव को एक कार्यक्रम के रूप में देखेगा तबतक  यह आयोग के लिए एक लंबी प्रक्रिया ही बनी रहेगी। अधिसूचना जारी करने से लेकर परिणाम घोषित करने तक चुनाव की एक लंबी प्रक्रिया है। भारत जैसे विशाल एवं बड़ी आबादी वाले देश में चुनाव संपन्न कराना एक चुनौतीपूर्ण कार्य होता है। आयोग पर धन-बल और बाहु-बल से निपटने की भी जिम्मेदारी होती है।

मतदाताओं को ध्यान में रखते हुए एक साफ-सुथरी एवं त्रुटि मुक्त मतदाता सूची तैयार करना (जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1951 की धारा 11 और 62 के अनुसार) आयोग की प्राथमिकता में शामिल होता है। मतदाताओं को लामबंद करने का काम चुनाव प्रचार कर विभिन्न राजनीतिक दलों पर छोड़ दिया गया था। सभी राजनीतिक दल स्वाभाविक रूप से मतदाताओं को लुभा कर अपने पक्ष में मतदान करने के लिए अपने सबसे उत्तम प्रयास किया।लेकिन आयोग की भी एक दायित्व एवं लोकतंत्र के प्रति जिम्मेवारी बनती है कि वो मतदाताओं को जागरूक कर उन्हें मतदान के लिए प्रेरित करे।       

कुछ लोगों का यह मानना है कि साक्षरता में बढ़ोतरी होने से मतदान में स्वयं तेजी जायेगी। इस तरह की ढिलाई बरतने के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। पहले आम चुनाव (1951-52) में मतदान का प्रतिशत 51.15 था। इसे हम असंतोषजनक श्रेणी में नहीं रख सकते।उस समय साक्षरता करीब 17 प्रतिशत ही थी। हालांकि, जिस तरह से साक्षरता में वृद्धि हुई, उस अनुपात में मतदान में तेजी नहीं देखी गई है। 2009 के आम चुनाव में मतदान का प्रतिशत करीब 60 प्रतिशत ही रहा जबकि 2011 की जनगणना के अनुसार साक्षरता दर 74 प्रतिशत थी।

2009 के बाद आयोग ने मतदान बढ़ाने के लिए एक अलग तरह की भूमिका की रूपरेखा तैयार की। इसके लिए निर्वाचन आयोग के एक व्यापक स्वीप (या व्यवस्थित मतदाता शिक्षा और इलेक्टोरल पार्टिसिपेशन) नामक कार्यक्रम तैयार किया। स्वीप’ के तहत निर्वाचन आयोग ने दो नारे तैयार किए पहला-समावेशी और गुणात्मक भागीदारी’ तथा दूसरा किसी भी मतदाता को नहीं छोड़ा जा सकता

इस तरह पहली बार निर्वाचन आयोग ने स्वीप के माध्यम से मतदाता जागरूकता कार्यक्रम तैयार किया। इसके अंतर्गत व्यक्तियों या संस्थाओं सहित सभी हितधारकों को लाया गया। इसके तहत मतदाता सूची में पंजीकरण एवं मतदान में भागीदारी के अंतर पर विशेष रूप से ध्यान दिया गया।इसमें लिंगक्षेत्रसामाजिक-आर्थिक स्थितिस्वास्थ्य की स्थितिशैक्षणिक स्तरपेशेवर प्रवासभाषा आदि पर भी विशेष रूप से ध्यान दिया गया। सामाजिक बदलाव को ध्यान में रखते हुए मतदाताओं को मतदान के प्रति जागरूक करने के लिए वृहत रूपरेखा तैयार की गई। स्वीप प्रत्येक भारतीय नागरिक को एक मतदाता ही मानता है। यहां तक कि अवयस्क लड़के एवं लड़कियों को भविष्य का मतदाता मानकर अभी से ही उसके अंदर मतदान के प्रति जागरूकता पैदा करने की जरूरत है, इसीलिए शिक्षा संस्थानों का भी उपयोग किया गया है।

65 प्रतिशत से थोड़ा कम मतदान भारत जैसे देश के लिए असाधारण नहीं हो सकता। फिर भीराजनीतिक विश्लेषक इसे एक स्वस्थ प्रवृत्ति के रूप में नहीं देखते हैं।मतदान का उच्च प्रतिशत जीवंत लोकतंत्र का प्रतीक माना जाता है। जबकि मतदान का निम्न प्रतिशत राजनीतिक उदासीन समाज की ओर इशारा करता है।ऐसी स्थिति का फायदा विघटनकारी तत्व उठाना चाहते हैं और लोकतंत्र के लिए खतरा पैदा करना चाहते हैं। इस प्रकार लोकतंत्र को अकेले एक भव्य विचार के लिए नहीं छोड़ा जा सकता है। यह लगातार मतपत्र में प्रतिबिंबित हो दिखाई पड़ते रहना चाहिए, यही लोकतंत्र की मजबूती है।          

2014 में संपन्न 16 वें आम चुनाव में, मतदान का प्रतिशत अब तक  सबसे ज्यादा 66.38 प्रतिशत रहा। अधिकांश टिप्पणीकारों ने इसके लिए राजनीतिक कारकों को जिम्मेदार ठहराया है। लेकिनकुछ श्रेय निश्चित रूप से निर्वाचन आयोग के स्वीप जागरूकता अभियान को भी दिया जाना चाहिए। इसका आने वाले चुनावों में भी परीक्षण किया जाना निश्चित है। तो अगली बार उच्च मतदान प्रतिशत का श्रेय सिर्फ राजनीतिक कारकों बल्कि स्वीप को भी मिलना चाहिए। इस तरह की व्याख्या अपने आप में जागरूकता अभियान में उत्प्रेरक की तरह कार्य कर सकती है।  

राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाना लोकतांत्रिक प्रक्रिया में नए मतदाताओं को प्रोत्साहित करने के लिए भारत निर्वाचन आयोग द्वारा उठाए गए विभिन्न प्रयासों के बीच एक महत्वपूर्ण कदम है।  

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27 jan

महात्मा गांधी की याद में 


* पांडुरंग हेगड़े

 

30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी जब दैनिक प्रार्थना के लिए जा रहे थे तब वे गोली लगने से शहीद हो गए थे। वे भौतिक रूप से हमें छोड़ गए लेकिन उनकी शिक्षा, उनके निजी जीवन के तमाम प्रयोग, राजनीति और दर्शन आज भी भारत के और दूसरे देशों के लोगों के मस्तिष्क में ताजा हैं।

 

दुनिया के कोने-कोने में उन्हें क्यों याद किया जाता है? उनके दर्शन का कौन सा पक्ष है जो युवाओं को आकर्षित करता है और उन्हें गांधीवादी बना देता है? उनका जीवन उन लोगों के लिए आदर्श है जो व्यक्तिगत  और प्रशासनिक स्तर पर अहिंसा का अनुसरण करना चाहते हैं।

 

महात्मा गांधी को याद करते वक्त सबसे पहले एक दुबलेपतले व्यक्ति की छवि सामने आती है जो चश्मा लगाता है, लंगोटी पहनता है और जो लाठी के सहारे तेजी से चलता है या खामोशी से बैठ कर चरखा चलाता है। यह सादगी उनके जीवन और शिक्षा का प्रतीक है।

 

उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि उनकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं था इसीलिए वे कहते थे, विश्व को बदलने से पहले स्वयं को बदलो। इसका अर्थ यह था कि बदलाव के बारे में बोलना और उसका सपना देखने के बजाय व्यक्ति को सबसे पहले खुद को बदलना चाहिए।

 

उनके विचारों की एक बुनियाद अहिंसा थी। यह विचार केवल दार्शनिक और मानसिक स्तर पर ही नहीं था, बल्कि वे रोजाना जीवन में व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर पर उसे व्यवहार में उतारते थे। यह कोई खोखला सिद्धांत नहीं है जिसका मनुष्य अनुसरण करे, बल्कि इसमें कीट-पतंगों और पशुओं सहित सभी प्राणियों का सम्मान निहित है।

 

यद्यपि उन्हें एक ऐसे महान नेता के रूप में याद किया जाता है जिसने अंग्रेजी राज से स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए अहिंसा को राजनीतिक रणनीति के तौर पर इस्तेमाल किया, लेकिन उन्होंने यह जरूरत महसूस की थी कि अहिंसा को आम व्यक्ति के जीवन में शामिल किया जाए ताकि परिवार और समाज से शोषण समाप्त किया जा सके।

 

गांधी जी पहले आधुनिक शांतिवादी थे और उन्होंने शांतिवाद का प्रतिपादन किया था। इसका अर्थ युद्ध, सैन्यवाद और हिंसा का अहिंसा के माध्यम से विरोध करना होता है। इसे सत्याग्रह के रूप में भी जाना जाता है, जो औपनिवेशिक शासन से आजादी हासिल करने का मुख्य हथियार था।

 

उन्होंने कहा था कि इसे हासिल करने के लिए घृणा फैलाने की जगह क्षमाशीलता का अभ्यास करना चाहिए। उन्होंने कहा था, “क्षमाशीलता शक्तिशालियों का गुण होता है, कमजोर लोग कभी क्षमा नहीं कर सकते। ” इसलिए वे अपने शत्रुओं का भी सम्मान करते थे। वे शत्रुओं के अच्छे गुणों को सामने लाते थे और धीरे-धीरे शत्रुओं को प्रेरणा देकर अपने साथ ले आते थे। यही कारण है कि जहां ब्रिटिश राज्य उनका शत्रु था वहीं कई अंग्रेज गांधी जी का समर्थन करते थे।

 

अपने विरोधियों या अपने विचारों और व्यवहार के आलोचकों के प्रति उनके मन में कोई घृणा नहीं थी। उनके लिए बदला लेना जहर फैलाने की तरह था, उनका मानना था कि आंख के बदले आंख का अनुसरण करने से तो पूरा विश्व ही अंधा हो जाएगा। 

 

महात्मा गांधी का जीवन सत् और अहिंसा के अनुभव से भरा था जिसमें उन्होंने लोगों और मौजूद स्थितियों से लगातार सीखा। उनका कहना है कि ऐसे जियो मानो तुम्हें कल मरना है लेकिन सीखों ऐसे मानो तुम्हें सदा जीना है। उन्होंने अपनी गलतियों से बहुत कुछ सीखा और अपनी रणनीतियां में सुधार किया तथा अपने विचारों को अधिक प्रभावी बनाया। उनकी यह एक  अनोखी उपलब्धि है कि उन्होंने 55,000 पृष्ठों पर अपने लेख लिखे, जिन्हें भारत सरकार ने संग्रह के रूप में सौ खंडों में प्रकाशित किया। हमें यह याद रखने की जरूरत है कि उन्होंने इतना लेखन हाथ से किया क्योंकि तब कम्प्यूटर नहीं थे।

गांधी जी को स्मरण करते हुए मौजूदा सरकार उनके विचारों को अभ्यास में लाने का प्रयास कर रही है। स्वच् भारत अभियान के बैनर के तहत शुरू किया गया स्वच्छता अभियान उनके विचारों से ही प्रेरित है। इसने जनता में जागरूकता पैदा की है और धीरे-धीरे जनता अपनी पुरानी आदतों को बदल रही है तथा स्वच्छता की अवधारणा को दैनिक जीवन में अपना रही है।

युवा पीढ़ी में सदियों पुराने खादी के कपड़े के प्रति लगाव पैदा करने पर जोर दिया जाना एक अन् क्षेत्र है जिसमें प्रधानमंत्री ने निजी दिलचस्पी लेकर जनता से खादी की मदद करने की अपील की है और जनता से खादी खरीदने कर और इसे नियमित रूप से पहनने का अनुरोध किया है।

जलवायु परिवर्तन और वैश्विक गर्मी के मुद्दों से निपटने के लिए गांधी जी का सादा जीवन का दर्शन कम कार्बन पद चिन् वाली जीवन शैली का आधार है। गांधी जी के इस पहलू को याद करते हुए केन्द्र सरकार ने गांधी जी के जन्मदिवस पर जलवायु परिवर्तन समझौते पर हस्ताक्षर किये। इस प्रकार गांधी जी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विषय पर अपने विचारों के माध्यम से जीवित हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर वन् संसाधनों के संरक्षण के लिए अंहिसक चिपको-अप्पिको आंदोलन की शुरुआत गांधी जी के विचारों से प्रेरित था। जिसका नेतृत् पदम भूषण श्री सुन्दर लाल बहुगुणा जैसे सर्वोदय नेताओं ने किया।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नेल्सन मंडेला ने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद शासन की समाप्ति के लिए गांधी जी के दर्शन को अपनाया। इस प्रकार अमेरिका में मार्टिन लुथर किंग जूनियर ने अहिंसा को अपनाया  और अन् अनेक लोग अहिंसा के मार्ग को अपनाकर न्याय के लिए अपने संघर्ष को आगे बढ़ा रहे हैं।

उनकी पुण् तिथि पर उनके इन शब्दों को याद करना उचित होगा कि जब तक मेरा विश्वास उजाला करेगा। मुझे उम्मीद है कि अगर मैं अकेला भी खड़ा हू तो मैं कब्र में भी जिंदा रहूंगा और वहीं से बोलता रहूंगा। यह सच्चाई है कि उनके विचार पूरी दुनियां में गुंज रहे हैं और उनका पंथ आगे बढ़ रहा है। उनकी 69 जयंती पर हमें गांधी जी के विचारो को याद करने और उन्हें दैनिक जीवन में अपनाने की जरूरत है। केवल यही वह तरीका है जिसके द्वारा हम राष्ट्र पिता को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित कर सकते हैं।

(लेखक कर्नाटक स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार और स्तंभकार हैं और इस लेख में व्यक् विचार व्यक्तिगत हैं।)    

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राष्ट्रीय प्रशिक्षु संवर्धन योजना

विशेष लेख

 

http://pibphoto.nic.in/documents/rlink/2017/jan/i201712704.jpg

*राजीव प्रताप रूढ़ी

आदिकाल से ही कौशल का स्थानांतरण प्रशिक्षुओं  की परम्परा के माध्यम से होता रहा है। एक युवा प्रशिक्षु एक मास्टर दस्कार से कला सीखने की परम्परा के तहत काम करेगा, जबकि मास्टर दस्तकार को बुनियादी सुविधाओं का प्रशिक्षु को प्रशिक्षण देने के बदले में श्रम का एक सस्ता साधन प्राप् होगा। कौशल विकास की इस परम्परा के द्वारा नौकरी पर प्रशिक्षण देना समय की कसौटी पर खरा उतरा है और इससे दुनिया के अनेक देशों में कौशल विकास कार्यक्रमों को जगह मिली है।

कौशल विकास की एक विधा के रूप में प्रशिक्षु के महत्वपूर्ण लाभ रहे हैं,जो उद्योग और प्रशिक्षु दोनों के लिए लाभदायक रहे हैं। इससे उद्योग के लिए तैयार कार्यबल का सृजन करने को बढ़वा मिल रहा है। दुनिया के अनेक देशों ने प्रशिक्षुता मॉडल को लागू किया है। जापान में 10 मिलियन से अधिक प्रशिक्षु हैं, जबकि जर्मनी में तीन मिलियन, अमेरिका में 0.5 मिलियन प्रशिक्षु हैं, जबकि भारत जैसे विशाल देश में केवल 0.3 मिलियन प्रशिक्षु हैं। देश की भारी जनसंख्या और जनसांख्यिकीय लाभांश को देखते हुए देश में 18 से 35 वर्ष की आयु वर्ग के तीन सौ मिलियन लोग मौजूद होने के बावजूद यह संख्या बहुत कम है।

देश के अनुकूल जनसांख्यिकी लाभांश की क्षमता का एहसास करते हुए माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कौशल भारत अभियान और उसके बाद अलग से कौशल विाकस और उद्यमिता मंत्रालय का नवंबर,2014 में गठन किया। इसका उद्देश् भारत को दुनिया की कौशल राजधानी में परिवर्तित करना है। एक  युवा और स्टार्ट-अप मंत्रालय ने बहुत कम समय में नीति निर्माण और प्रमुख कौशल विकास योजना- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना की शुरूआत प्रमुख रूप से की है और आईटीआई पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार करने के अलावा उद्यमशीलता विकास की नई  योजनाओं की  भी शुरूआत की है।

इसी तरह मंत्रालय ने देश में प्रशिक्षु के मॉडल को अपनाने की भावना को बढ़ावा देने के लिए दो प्रमुख कदम उठाए हैंएक प्रशिक्षु अधिनियम 1961 में संशोधन और दूसरा प्रशिक्षु प्रोत्साहन योजना की जगह राष्ट्रीय प्रशिक्षु प्रोत्साहन योजना की शुरूआत।

प्रशिक्षु अधिनियम 1961

   प्रशिक्षु अधिनियम 1961 को नौकरी प्रशिक्षण पर देने के लिए उपलब् सुविधाओं का उपयोग करते हुए उद्योग में प्रशिक्षु के प्रशिक्षण को नियमित करने के उद्देश् से विनियमित किया गया था।    

अधिनियम नियोक्ताओं के लिए यह अनिवार्य बना देता है कि वे प्रशिक्षुओं को उद्योग में काम करने के लिए प्रशिक्षण दें ताकि स्कूल छोड़ने वालों और आईटीआई से उत्तीर्ण लोगों को उद्योगों में रोजगार मिल सके। इनमें स्नातक इंजीनियर, डिप्लोमा और प्रमाण पत्र धारक व्यक्तियों का कुशल श्रम आदि का विकास करना है। पिछले कुछ दशकों के दौरान प्रशिक्षु प्रशिक्षण योजना (एटीएस) का प्रदर्शन भारत की अर्थव्यवस्था के अनुरूप नहीं था। यह पाया गया है कि उद्योगों में उपलब्ध प्रशिक्षण सुविधाओं का पूरा इस्तेमाल नहीं हो रहा है, जिसके कारण बेराजगार युवा एटीएस के लाभ से वंचित हो जाते हैं। हितधारकों के साथ बातचीत और समीक्षा से पता लगा है कि नियोक्ता अधिनियम के प्रावधानों, खासतौर से 6 माह के कारावास के प्रावधान से संतुष्ट नहीं थे। नियोक्ता प्रशिक्षुओं को रोजगार में लगाने के संबंध में इन प्रावधानों को कठोर मानते थे।

 

इन सूचनाओं के आधार पर प्रशिक्षु अधिनियम, 1961 को 2014 में संशोधित किया गया और वह 22 दिसंबर, 2014 से प्रभावी हुआ। संशोधन द्वारा किए जाने वाले मुख्य बदलाव इस प्रकार हैं

() प्रशिक्षु अधिनियम के तहत अब कारावास का प्रावधान नहीं है। संशोधन के बाद अधिनियम की अवहेलना करने पर केवल जुर्माना लगाया जाएगा।

() कामगार की परिभाषा को व्यापक बनाया गया है और प्रशिक्षुओं के नियुक्त किए जाने की संख्या तय करने के तरीके को बदला गया है। इन संशोधनों से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि नियोक्ता बड़ी संख्या में प्रशिक्षुओं को नियुक्त करें।

()  संशोधन में एक पोर्टल बनाने का प्रावधान किया गया है ताकि दस्तावेजों, संविधाओं और कराधान आदि को इलेक्ट्रानिक रूप से सुरक्षित किया जा सके।

 

इन संशोधनों का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि नियोक्ता प्रशिक्षुओं को बड़ी संख्या में नियुक्त करें। इसके अलावा संशोधनों के तहत नियोक्ताओं को प्रोत्साहित किया जाएगा कि वे प्रशिक्षुओं अधिनियमों का पालन करें।

 

राष्ट्रीय प्रशिक्षु संवर्धन योजना

    सरकार ने प्रशिक्षुओं के प्रशिक्षण को प्रोत्साहित करने और नियोक्ताओं को प्रशिक्षुओं को नियुक्त करने की प्रेरणा देने के लिए 19 अगस्त, 2016 को राष्ट्रीय प्रशिक्षु संवर्धन योजना की शुरूआत की थी। इस योजना ने 19 अगस्त, 2016 को प्रशिक्षु प्रोत्साहन योजना (एपीवाई) का स्थान ले लिया है। एपीवाई वजीफे के रूप में केवल पहले दो साल के लिए सरकार द्वार निर्धारित धनराशि का 50 प्रतिशत देता था। वहीं नई योजना में प्रशिक्षण और वजीफे के संबंध में निम्नलिखित प्रावधान किये गए हैं

 

निर्धारित वजीफे के 25 प्रतिशत की प्रतिपूर्ति जो नियोक्ता के लिए अधिकतम 1500 रुपये प्रति माह प्रति प्रशिक्षु होगी

 

फ्रेशर प्रशिक्षु के संबंध में बुनियादी प्रशिक्षण की लागत को साझा किया जाना (जो कि बिना किसी औपचारिक प्रशिक्षण के सीधे आए थे) 

 

एनएपीएस को वर्ष 2020 तक प्रशिक्षुओं की संख्या 2.3 लाख से बढ़ाकर 50 लाख करने के महत्वाकांक्षी उद्देश्य के साथ शुरू किया गया था। हमें इसकी बड़ी प्रोत्साहित करने वाली प्रतिक्रिया मिली है। अगस्त माह में योजना के शुरू होने के बाद से 1.43 लाख छात्र इसमें पंजीकृत हो चुके हैं। रक्षा मंत्रालय ने भी एनएपीएस के लिए अपना समर्थन दिया है। रक्षा मंत्रालय ने अपने अंतर्गत आने वाली सभी पीएसयू कंपनियों को कुल कर्मचारियों में से 10 फीसदी प्रशिक्षु शामिल करने को कहा है। माननीय प्रधानमंत्री ने भी 19 दिसंबर को कानपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में एनएपीएस के तहत 15 प्रतिष्ठानों को प्रतिपूर्ति के चेक वितरित किए थे। 

 

योजनाएप्रेंटाइसशिप चक्र की निगरानी और प्रभावी प्रशासन के लिए एक उपयोगकर्ता के अनुकूल ऑनलाइन पोर्टल (www.apprenticeship.gov.in) शुरू किया गया। पोर्टल पर नियुक्ति प्रक्रिया की सभी आवश्यक जानकारियां उपलब्ध रहती हैं। यहां पंजीकरण से लेकर रिक्तियों की संख्याऔर प्रशिक्षु के लिए रजिस्ट्रेशन से लेकर ऑफर लेटर स्वीकारने तक सभी जानकारियां उपलब्ध हैं। 

 

मुझे पूरा यकीन है कि एनएपीएस जैसे हमारे विभिन्न प्रयासों से उद्योग के लिए तैयार कार्यबल का सृजन करने में हम समर्थ होंगे जिससे भारत को दुनिया की कौशल राजधानी में परिवर्तित करने में मदद मिलेगी। 

 

लेखक भारत सरकार में कौशल विकास एवं उद्यमिता राज् मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) हैं। 

 

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31 jan

स्वच्छ भारत मिशन- जयपुर जिले में अनूठा नवाचार 


विशेष लेख

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*गोपेन्द्र नाथ भट्ट

 

 राजस्थान के जयपुर जिले में स्वच्छ भारत मिशन‘ के तहत खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) के लिए अपनाए गए तरीकों कोविश्व बैंक की टीम ने सराहा है। ग्राम पंचायतों को  खुले में शौच से मुक्त कराने की दिशा में स्कूली बच्चों का बहुत साथ मिलाकईबच्चों ने अपने माता-पिता को कह दिया कि वे स्कूल तब जाएंगे जब उनके घर में शौचालय बन जाएगा। जयपुर जिले ने स्वच्छभारत मिशन के तहत पिछले छः माह में सरपंचों ने अच्छा काम किया हैजिससे 532 ग्राम पंचायतों में से 154 ग्राम पंचायतेओडीएफ हो चुकी है।

 

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जिला प्रशासन द्वारा अनूठे नवाचार के तहत जिले में स्वच्छ भारत मिशन‘ के तहत जयपुर शहर की बुलंदी पर स्थित ऐतिहासिकनाहरगढ़‘ किले के शिखर पर आयोजित विशेष कार्यक्रम में ग्राम पंचायतों को  खुले में शौच से मुक्त कराने की दिशा में सराहनीयकाम करने वाले करीब डेढ़ सौ सरपंचों को आमंत्रित कर सम्मानित किया।

 

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कार्यक्रम में सरपंचों ने अपनी ग्राम पंचायतों को ओडीएफ‘ कराने के लिए अपनाएं गए तरीकों और नवाचारों से जुड़े अनुभव बड़े गर्वके साथ साझा किए। सरपंचों ने इस दौरान पेश आई चुनौतियों का जिक्र करते हुए जिले में ओडीएफ‘ होने से शेष रही ग्राम पंचायतोंमें जाकर वहां कार्य करने की मंशा भी जताई।

रिसोर्स परसन

कार्यक्रम में जिला कलक्टर श्री सिद्धार्थ महाजन ने सरपंचों से संवाद करते हुए कहा कि जिले में स्वच्छ भारत मिशन‘ के लिएसरपंचों के नेतृत्व एवं ग्रामीणों की सक्रिय भागीदारी से ग्राम पंचायतों को  खुले में शौच से मुक्त कराने की दिशा में सफलता मिलीहै। इसका पूरा श्रेय सरपंचों को है। जयपुर जिले में कुछ अलग हटकर प्रयास किए गएजिसके तहत सरपंचवार्ड पंचग्राम सेवकऔर प्रधानगण अभियान को कामयांब बनाने के लिए रिसोर्स परसन‘ बनाये गए। इसके सकारात्मक परिणाम सामने आए। 

 

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श्री महाजन ने बताया कि जिले और राज्य की टीम ओडीएफ‘ ग्राम पंचायतों का दौरा करेगी और सत्यापन की इस प्रक्रिया के बादकेन्द्र सरकार की योजना के तहम ओडीएफ‘ ग्राम पंचायतों को 20-20 लाख रुपये की प्रोत्साहन राशि मिलेगी। उन्होंने कहा किआगामी मार्च माह तक जिले की करीब आधी ग्राम पंचायतों को ओडीएफ‘ कराने का लक्ष्य हैइसके बाद अगले वित्तीय वर्ष केपहले आठ महिनों में शेष ग्राम पंचायतों को ओडीएफ‘ बनाते हुए पूरे जिले को खुले में शौच से मुक्त‘ बनाने के लक्ष्य के साथस्वच्छ भारत मिशन में कार्य किया जा रहा है। 

 

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जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री आलोक रंजन ने भी सरपंचों के प्रयासों की तारीफ की और उन्हें प्रोत्साहित किया।कार्यक्रम में जिले की पंचायत समितियों के प्रधानविकास अधिकारियों के अलावा जनप्रतिनिधिगण व अन्य अधिकारी अधिकारीभी मौजूद रहे। 

 

सफलता की कहानी-सरपंचों की जुबानी

 

शौचालय बनने पर जाएंगे स्कूल

कार्यक्रम में शाहपुरा में छारसा ग्राम पंचायत के सरपंच श्री सीताराम ने बताया कि उन्हें स्कूली बच्चों का बहुत साथ मिलाकई बच्चोंने अपने माता-पिता को कह दिया कि वे स्कूल तब जाएंगे जब उनके घर में शौचालय बन जाएगा.....। फागी में मोहबतपुरा केसरंपच श्री हनुमानमल ने बताया कि स्वच्छ भारत मिशन एक है और इसके फायदे अनेक है। उन्होंने कहा कि विकास अधिकारी नेउन्हें पंचायत प्रसार अधिकारी उपलब्ध कराए और टीम के रूप में कार्य करते हुए सफलता प्राप्त की। नायला के सरपंच श्री मोहनमीणा ने बताया कि जब ओडीएफ के अभियान को आगे बढ़ाया तो कई पढ़े लिखे लोगों ने भी अजीब तर्क दिए लेकिन अंततः सब कोसमझाते हुए कामयाबीं मिली। 

ई गंगा में तो नहा लिया क्यां न क्यां

जालसू पंचायत समिति की भानपुरकलां ग्राम पंचायत के वयोवृद्ध सरपंच श्री रामसहाय ने अपने अनुभव बताते हुए कहा किओडीएफ के लिए प्रयास करने के दौरान कई दिक्कते आई मगर उन्हे पार करते हुए उनकी ग्राम पंचायत ने मंजिल को पा लिया।उन्होंने अपने अंदाज में कहा कि ई गंगा में तो नहा लिया क्यां न क्यांबूढा ठेरा ने भी ताण दिया‘ (सबके सहयोग से मंजिल पाईबड़े बुजुर्गों को भी प्रयास कर समझाया गया)। 

बच्चों-अध्यापकों की भूमिका

जमवारामगढ़ की सरपंच सुमित्रा जोशी ने बताया कि उन्हें बस स्टैंड पर गंदगी देखकर सदैव पीड़ा होती थी। जब इस अभियान केतहत उन्हें अवसर मिला तो ग्राम पंचायत को ओडीएफ कराने के क्रम में उन्होंने बस स्टैण्ड पर सुलभ काम्पलैक्स का निर्माणकराया। ग्रामवासियों के सहयोग से आज बस स्टैण्ड की सूरत बदली नजर आती है। साम्भर की काजीपुरा पंचायत के सरपंच श्रीनवरत्न कुमावत ने बताया कि उन्होंने ओडीएफ‘ की मुहिम में विशेषकर बड़े विद्यालयों के बच्चों और अध्यापकों का सहयोगमिला। बस्सी में तुंगा पंचायत के सरपंच श्री उमाकांत शर्मा ने बताया कि वे ढाणी-ढाणी गए और मॉर्निंग फोलो-अप के तहत ढोलबजाकर लोगों को खुले में शौच न जाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि जिले में वे इस मुहिम को आगे ले जाने में बढ़ चढ़करसहयोग करने को तैयार है। 

किचन की जगह कम कर बनाया शौचालय

झोंटवाड़ा पंचायत समिति में माचवा के सरपंच श्री रामफूल बावरियां ने बताया कि उन्होंने अपनी विकास अधिकारी के सहयोग सेमहिला वार्ड पंचआशा सहयोगिनी और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की टीम बनाकर लोगों को प्रेरित किया। उन्होंने बताया कि उनकीपंचायत में एक ऐसा घर थाजहां शौचालय बनाने के लिए जमीन नहीं थीफिर भी उसके मुखिया ने स्वच्छता की मुहिम से प्रेरितहोकर किचन की जगह को कम करते हुए वहां शौचालय का निर्माण कराया। 

जगदीशजी कृपा से हुआ नाम 

गोनेर की सरपंच ने कहा कि उनकी ग्राम पंचायत का जब भी किसी काम में नाम होता है तो हम गांववासी उसे जगदीशजी महाराजकी कृपा मानते है। ओडीएफ का काम भी उनकी कृपा से ही हुआ है और अब ग्राम पंचायत कैशलेस‘ होने की ओर अग्रसर है। 

 

महिलाओं के सम्मान से जोड़ा

गोविन्दगढ़ पंचायत समिति में जयसिंहपुरा के सरपंच तरूण कुमार यादव ने बताया कि जब सरपंच बने तो ओडीएफ ग्राम पंचायतबनाने में बड़ी दिक्कते थी। आम रास्ते पर शौच के लिए महिलाओं की कतार लगती थी। रात में वाहनों की लाईटे ऐसी कतारों परपड़ती थी। ऐसे में खुले में शौच को हमने महिलाओं के आत्मसम्मान से जोड़ कर लोगों को प्रेरित किया और धीरे-धीरे स्थितियांबदल गई।  

धनाढ्यों ने दिया सहयोग

कलवाड़ा (सांगानेर) के सरपंच डॉ. हरिनारायण स्वामी ने बताया कि उनकी पंचायत में धनाढ्यों को शौचालय विहीन कमजोर तबकेके लोगों के घरों में टायलेट बनवाने में सहयोग के लिए प्रेरित किया गया। दूदू में आकोदा के सरपंच श्री देवकरण गुर्जर ने कहा कि वेस्वयं नशे व गुटखे का सेवन नहीं करते। लोगों को भी पाउच वगैरह इधर-उधर नहीं बिखेरने के लिए प्रेरित करते हैं। यदि उन्हें कहींपाउच आदि मिलते है तो वे स्वयं एकत्रित कर उन्हें जलाते हैं। 

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