3 Feb

सस्ती स्वास्थ्य सुविधा 

 

 

 

                                                                                                                                                      *वी. श्रीनिवास 

स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए नीति बनाना बहुत चुनौतीपूर्ण और जोखिम भरा काम है। इसकी पृष्ठ भूमि में यह बात उजागर होती है कि लोगों के पास स्वास्थ्य पर पैसा खर्च करने की क्षमता कम है और स्वास्थ्य सेवाएं बहुत महंगी हैं। स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रति व्यक्ति मासिक आय के अनुपात में ग्रामीण इलाकों में 6.9 प्रतिशत और शहरी इलाकों में 5.5 प्रतिशत लोगों को अपनी जेब से खर्च करना पड़ता है। भारत में सरकारी अस्पतालों में प्रसव, नवजात और शिशुओं की देखभाल जैसी सेवाएं मुफ्त दी जाती हैं लेकिन इसके बावजूद अपनी जेब से भी बहुत पैसा देना पड़ता है। स्वास्थ्य नीति के तहत अगले पांच सालों में सकल घरेलू उत्पाद का 2.5 प्रतिशत जनस्वास्थ्य पर खर्च किया जाएगा जो मौजूदा 1 प्रतिशत के स्तर से अधिक है।

 

2017 के बजट में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए उल्लेखनीय इजाफा किया गया है। इसमें 2016-17 में 3706.55 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 47352.51 करोड़ रुपये कर दिया गया है। इस प्रकार इसमें 27 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि की गई है। इसके अलावा सरकार ने 2017 तक काला-अजार और फाइलेरिया, 2018 तक कुष्ठ रोग, 2020 तक खसरा और 2025 तक तपेदिक का उन्मूलन करने की कार्ययोजना तैयार की है।

 

विकास लक्ष्यों के अनुसार दुनिया में मातृत्व मृत्यु दर अनुपात में एक लाख प्रसव के आधार पर 70 प्रतिशत तक की कमी लाई जाएगी। 1990 में 560 के मातृत्व मृत्यु के अनुपात की तुलना में देश ने 2011 में इसे घटाकर 167 कर दिया। 1990 में 5 साल से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर 126 थी जो 2014 में 39 हो गई। 2017 के बजट के प्रकाश में सरकार ने शिशु मृत्यु दर 2014 में 39 से कम करके 2019 तक 28 तक लाने की योजना बनाई है। इसी प्रकार 2011 की मातृत्व मृत्यु दर 167 को कम करके 2020 तक 100 तक करने का लक्ष्य है। देश के 6 राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ में आज भी यह चुनौती बनी हुई है। इन राज्यों में देश की कुल आबादी का 42 प्रतिशत हिस्सा निवास करता है और वार्षिक आबादी वृद्धि में 56 प्रतिशत हिस्सा इन राज्यों का है। भारत के जनस्वास्थ्य सुविधा और प्राथमिक चिकित्सा सेवाओं का एक विशाल संगठन विकसित किया है। प्राथमिक और दूसरे स्तर के अस्पतालों के लिए बुनियादी ढांचा और मानव संसाधन विकास पर जोर दिया जा रहा है। 2017 के बजट में 1.5 लाख स्वास्थ्य उप केंद्रों को स्वास्थ्य केंद्रों में उन्नत करने का लक्ष्य रखा गया है। इसके अलावा देशभर में गर्भवती महिलाओं के लिए एक योजना चलाई जाएगी जिसके तहत प्रत्येक गर्भवती महिला को 6 हजार रुपये प्रदान किए जायेंगे। ये योजनाएं मुफ्त दवा, मुफ्त निदान और मुफ्त आपातकालीन सेवाओं के साथ चलेंगी। यदि प्राथमिक स्वास्थ्य प्रणाली बेहतर रूप से काम करे तो ऊपर के अस्पतालों पर बोझ कम होता है। 2017 के बजट में इस पर ध्यान दिया गया है।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान देश और विदेश में जाना-माना संस्थान है जिसकी स्थापना 6 दशकों पहले हुई थी। स्वास्थ्य सेवाओं और स्वास्थ्य अनुसंधान के क्षेत्र में यह एक शानदार संस्थान है जिसकी मिशाल अन्यत्र नहीं मिलती। यह संस्थान चिकित्सा के अलावा शिक्षा और अनुसंधान में भी अग्रणी है। मौजूदा बजट में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान का विशेष उल्लेख किया गया है। इसके विस्तार के लिए वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराए जाएंगे ताकि भारतीय समाज के कल्याण का महान कार्य किया जा सके। उल्लेखनीय है कि तमाम रोगों का इलाज कराते – कराते लाखों लोग गरीब हो जाते हैं। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान इस दिशा में महत्वपूर्ण सहायता कर सकता है।

सरकार देशभर में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान जैसे कई संस्थान खोलने पर विशेष जोर दे रही है। 2017 के बजट में झारखंड और गुजरात में 2 नए आयुर्विज्ञान संस्थान खोले जाने का प्रस्ताव किया गया है। इस कदम से सार्वजनिक क्षेत्र में शानदार चिकित्सा सेवा संभव हो जाएगी। पहले, दूसरे और तीसरे स्तर की चिकित्सा सुविधा प्रदान करने के लिए अतिरिक्त संसाधनों का प्रावधान किया जा रहा है। इसके तहत सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने का रोडमैप तैयार होगा। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान जैसे अस्पताल खोलना काफी जटिल है क्योंकि इसके तहत सर्वोच्च गुणवत्ता वाली चिकित्सा सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। वरिष्ठ विशेषज्ञों और सक्षम व्यक्तियों को खोजना और उन्हें संस्थान से जोड़े रखना बहुत चुनौतीपूर्ण है। बुनियादि ढांचे के निर्माण में होने वाले विलम्ब के कारण भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।

भारत की स्वास्थ्य सुविधाओं में मानव संसाधन अत्यंत महत्वपूर्ण घटक है। 2017 के बजट में प्रति वर्ष स्नात्कोत्तर की 5 हजार सीटों की व्यवस्था बनाए जाने का प्रस्ताव है ताकि दूसरे और तीसरे स्तर की स्वास्थ्य सुविधा को मजबूत करने के लिए विशेषज्ञ चिकित्सक मिल सकें। भारत सरकार ने चिकित्सा सुविधा और अभ्यास संबंधी नियमों में बदलाव लाने के लिए भी आवश्यक कदम उठाने का संकेत दिया है। देश में बढ़ी हुई स्नात्कोत्तर सीटों की उपलब्धता और एक केंद्रीय प्रवेश प्रणाली जैसे सुधारों ने चिकित्सा सुविधा की गुणवत्ता बढ़ाई है। स्नात्कोत्तर चिकित्सा शिक्षा का विस्तार सरकार की प्राथमिकता है क्योंकि इनकी कमी के कारण देश में न सिर्फ विशेषज्ञ चिकित्सों का अभाव हो जाता है बल्कि मेडिकल कॉलेजों में शिक्षकों की कमी हो जाती है।

मेडिकल कॉलेजों और चिकित्सा अनुसंधान के बीच सहयोग को मजबूत किया गया है। भारत में सरकार द्वारा वित्त पोषित 32 स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग संस्थान हैं। इस संबंध में नीति, चिकित्सा उपकरणों में अभिनव प्रयोग, बुनियादी अनुसंधान, सस्ते अभिनव प्रयोग, नई दवाओं की खोज, अनुसंधान में भागीदारी और डेटाबेस का सृजन पर जोर दिया जा रहा है।

1970 के दशक में सबसे लिए स्वास्थ्य नामक नीति शुरू की गई थी, जो आज भी प्रासांगिक है।

 

*लेखक 1989 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हैं। वर्तमान में वे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली में उपनिदेशक, प्रशासन के पद पर कार्यरत हैं।

बजट में किसानों की आय बढ़ाए जाने पर फोकस

                          *गार्गी परसाई

 

केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वर्ष 2017-18 के बजट में 10 प्रमुख क्षेत्रों का नाम लिया जिन पर फोकस किया जाएगा। कृषि क्षेत्र भी उन क्षेत्रों में से एक है। किसानों की आय बढ़ाने के लिए उन्होंने बजट में कई घोषणाएं कीं जैसे -  ऋण की उपलब्धता बढ़ाया जाना, अनुबंध खेती के फसल घाटे को कम करने के लिए नए कानून का निर्माण और डेयरी क्षेत्र में किसानों की आय के अतिरिक्त स्रोत के रूप में डेयरी प्रसंस्करण और अवसंरचना विकास निधि स्थापित किया जाना।

क्षेत्र को बड़ा प्रोत्साहन देते हुए वित्त मंत्री ने 2017-18 में कृषि ऋण का लक्ष्‍य 10 लाख करोड़ रूपये के रिकॉर्ड स्‍तर पर निर्धारित किया है। उन्‍होंने कहा कि अल्‍पसेवित क्षेत्रों, पूर्वी राज्‍यों तथा जम्‍मू कश्‍मीर के किसानों के लिए पर्याप्‍त ऋण की व्‍यवस्‍था सुनिश्चित करने के विशेष प्रयास किये जाएंगे।

        यह स्‍वीकार करते हुए कि डेयरी किसानों के लिए अतिरिक्‍त आमदनी का एक महत्‍वपूर्ण स्रोत है, वित्‍त मंत्री ने तीन वर्षों में 8000 करोड़ रूपये की संचित निधि से नाबार्ड में एक दुग्‍ध प्रसंस्‍करण एवं संरचना निधि स्‍थापित करने की घोषणा की। प्रारंभ में यह 2000 करोड़ रुपये के कोष के साथ शुरू होगा.

दूध प्रसंस्करण सुविधा और अन्य बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता से किसानों को और अधिक फायदा होगा। मंत्री महोदय ने माना है कि ऑपरेशन फ्लड कार्यक्रम के अंतर्गत स्थापित की गई दूध प्रसंस्करण इकाइयां अप्रचलित और पुरानी हो गई हैं।

मानसून की अनिश्चितताओं (60 फीसदी भारतीय खेती-बाड़ी मानसून पर निर्भर है) के मद्देनजर श्री जेटली ने नई `प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना' के लिए 9,000 करोड़ रुपये की व्यवस्था की है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का दायरा 2016-17 में 30 प्रतिशत फसल क्षेत्र से बढ़ाकर 2017-18 में 40 प्रतिशत तथा 2018-19 में 50 प्रतिशत किया जाएगा। बजट अनुमान 2016-17 में इस योजना के लिए 5,500 करोड़ रूपये का बजट प्रावधान किया गया था, जिसे बकाया दावों का निपटान करने के लिए 2016-17 के संशोधित बजट अनुमान में बढ़ाकर 13,240 करोड़ रूपये कर दिया गया था।

श्री जेटली ने कहा, इस योजना के अंतर्गत बीमाकृत राशि जो 2015 के खरीफ सीजन में 69,000 करोड़ रूपये थी, 2016 के खरीफ सीजन में दोगुने से भी बढ़कर 1,41,625 करोड़ रुपये हो गई है। योजना को 1 अप्रैल, 2016 को लॉन्च किया गया था। इसके जरिए दावे आधारित बीमा योजना से प्रीमियम आधारित प्रणाली के लिए अग्रिम सब्सिडी की तरफ शिफ्ट किया गया। इससे किसानों पर कम से कम बोझ पड़ा।

इसके अतिरिक्त किसानों को सहकारी ऋण ढांचे से लिए गये ऋण के संबंध में प्रधानमंत्री द्वारा घोषित 60 दिनों के ब्‍याज के भुगतान से छूट का भी लाभ मिलेगा।

प्राथमिक कृषि सहकारी समितियां (पीएसीएस) ऋण संवितरण के लिए प्रमुख हैं। सरकार जिला केन्‍द्रीय सहकारी बैंकों की कोर बैंकिंग प्रणाली के साथ सभी 63‍,000 क्रियाशील प्राथमिक कृषि ऋण सोसाइटियों के कम्‍प्‍यूटरीकरण और समेकन के लिए नाबार्ड की सहायता करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह कार्य 1900 करोड़ रूपये की अनुमानित लागत से राज्‍य सरकारों की वित्‍तीय भागीदारी के द्वारा 3 वर्ष में पूरा कर लिया जाएगा। इससे छोटे और सीमांत किसानों को ऋण का निर्बाध प्रवाह सुनिश्चित हो जाएगा।

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के मृदा स्वास्थ्य कार्ड कार्यक्रम का जिक्र करते हुए श्री जेटली ने कहा कि पिछले कुछ समय में कार्यक्रम ने तेजी पकड़ी है लेकिन किसानों को इसका वास्तविक लाभ तब होगा जब मृदा के नमूनों का परीक्षण तेजी से किया जाएगा और उसके पोषक तत्वों के स्तर को जाना जाएगा। 100 प्रतिशत कवरेज सुनिश्चित करने के लिए सभी 648 कृषि विज्ञान केंद्रों में सूक्ष्म मृदा परीक्षण प्रयोगशालाएं बनाई जाएंगी। इसके अतिरिक्त योग्य स्थानीय उद्यमियों द्वारा 1000 मिनी लैब्स बनाई जाएंगी। सरकार इन उद्यमियों को सब्सिडी मुहैया कराएगी।

 

किसानों के अनुकूल कदमों के बारे में बताते हुए वित्‍त मंत्री ने कहा कि नाबार्ड में एक दीर्घकालीन सिंचाई कोष स्‍थापित किया जा चुका है और प्रधानमंत्री ने इसकी स्‍थायी निधि में 20,000 करोड़ रूपये की अतिरिक्‍त राशि शामिल करने की घोषणा की है। इस प्रकार इस कोष में कुल निधि बढ़कर 40,000 करोड़ रूपये हो जाएगी। “प्रति बूंद अधिक फसल” के लक्ष्‍य की प्राप्‍ति हेतु एक समर्पित सूक्ष्‍म सिंचाई कोष 5 हजार करोड़ की राशि से बनाया जाएगा। कार्यक्रम के तहत 99 सिंचाई परियोजनाओं को 2019 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।

पिछले साल लॉन्च हुए राष्ट्रीय कृषि बाजार कार्यक्रम के तहत ई-नैम (e-NAM) प्‍लेटफॉर्म से 250 मण्‍डियों को जोड़ा गया है। इसने किसानों को अपनी फसल का सही दाम लेने योग्य बनाया है और इस व्यवस्था में पारदर्शिता आई है। अब लक्ष्य रखा गया है कि ई-नैम प्‍लेटफॉर्म से 585 मण्‍डियों को जोड़ा जाए। इसके अलावा स्‍वच्‍छता, ग्रेडिंग और पैकेजिंग सुविधाओं की स्‍थापना के लिए प्रत्‍येक ई-नाम बाजार को अधिकतम 75 लाख रूपये की सहायता प्रदान की जाएगी। इसके अलावा राज्यों से भी विभिन्न बाजार सुधारों को अपनाने और जल्‍दी खराब होने वाली वस्‍तुओं को एपीएमसी एक्‍ट से निकालने के लिए कहा जाएगा। इससे किसानों को अपने उत्पाद बेचने और उसकी अपेक्षाकृत बेहतर कीमत वसूलने में मदद मिलेगी।

श्री जेटली ने कहा कि बेहतर मूल्य बोध के लिए कृषि प्रसंस्करण इकाइयों के साथ फल और सब्जी उगाने वाले किसानों को एकीकृत करने के लिए सरकार ने अनुबंध आधारित खेती-बाड़ी पर कानून बनाने का प्रस्ताव रखा है।

भारतीय किसानों की प्रतिबद्धता को सलाम करते हुए मंत्री महोदय ने कहा कि कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष में 4.1% रहने का अनुमान है। हालांकि उन्होंने फसल संबंधी चुनौतियों से निपटने और लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने की जरूरत पर बल दिया।

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय का वर्ष 2016-17 का बजट (35983.69 करोड़ रुपये) वर्ष 2015-16 में आवंटित बजट (15296.04) के दोगुना से भी ज्यादा था। संशोधित अनुमानों में आवंटन 39,840.50 करोड़ रुपये था। 2017-18 बजट में मंत्रालय का 41855 करोड़ रुपये परिव्यय रख गया है।

* लेखक एक पुरस्कार विजेता वरिष्ठ पत्रकार हैं।

इस्पात उद्योग: विकास की बाधाओं को दूर करना 

 

 

चौधरी वीरेंद्र सिंह

 

लगभग डेढ़ वर्ष पहले मैंने अपने योग्य पूर्ववर्ती से इस्पात मंत्रालय का कार्यभार संभाला था। मेरा मानना है कि श्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व के तहत हमारी सरकार एकएकजुट सहयोगी और प्रगतिशील टीम के रूप में कार्य कर रही है। प्रधानमंत्री का एकमात्र लक्ष्य 21वीं सदी को भारत की सदी बनाना है और हम सबका ध्यान भारत के स्वर्णिम युग को वापस लाने पर केंद्रित है और इस एकीकृत मिशन को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

 

विभिन्न प्रयोजनों के लिए प्रत्येक मंत्रालय अन्य मंत्रालयों तथा विभागों पर निर्भर हैऔर जब सभी मंत्रालय एक टीम के रूप में कार्य करते हैं तो इसका लाभ भारत और सभी भारतीयों को मिलता है।

 

चलिए, मैं आपको इस्पात मंत्रालय का उदाहरण देकर इस बिंदु के बारे में बताता हूं। इस्पात बनाने की प्रक्रिया कोयलालौह अयस्कनिकलमैंगनीज आदि जैसे कच्चे माल के साथ शुरू होती है। कच्चा माल स्टील की उत्पादन लागत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। हमारी सरकार ने खनन क्षेत्र में अहम सुधार किए हैं जिसमेंकच्चे माल के प्रतिभूतिकरण के लिए बड़ी अड़चनों को हटा दिया गया है। यहां कच्चे माल पर शुल्क और करों से संबंधित कुछ मुद्दे थे जिसके लिए हमने संबंधित मंत्रालयों के साथ विस्तृत विचार-विमर्श किया और उन मुद्दों का हल निकालकर हमने इस्पात उद्योग का तेजी से विकास करने के लिए मार्ग प्रशस्त किया।

रेलवे ने कच्चे माल के परिवहन में कम लागत और समय की बचत के लिए रेलवे ट्रैक पर स्लरी लाइन क्रॉसिंग के हमारे प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी है।

इस्पात मंत्रालय ने इस्पात उत्पादों के लिए टैरिफ और गैर टैरिफ समर्थन उपायों के मुद्दों को भी उठाया है जिसके परिणास्वरूप निश्चित समय अवधि में न्यूनतम आयात मूल्यएंटी डंपिंग शुल्कमाल ढुलाई की दरों को समायोजित किया गया। इन कदमों ने भारतीय इस्पात उद्योग को आगे बढ़ाने तथा अंतरराष्ट्रीय इस्पात कंपनियों के साथ समान शर्तों पर प्रतिस्पर्धा करने के लिए एक ही स्तर का मार्ग सुनिश्चित किया है। इसके अलावाभारत की नीतिगत पहलों के परिणामस्वरूप भारत चालू वित्त वर्ष में इस्पात का शुद्ध निर्यातक बनने की राह पर अग्रसर है।

परियोजनाओं के लिए पर्यावरण संबंधी मंजूरी से संबंधित मुद्दों पर कार्य किया गया है और परिणाम उत्साहजनक रहे हैं। यहाँ कुछ ही मामले लंबित हैं और केंद्र एवं राज्य स्तर पर उनका हल निकाला जा रहा हैलेकिन लंबित मामलों की संख्या में काफी कमी आई है। ये सभी निर्णय विकास के रास्ते में आ रहीं बाधाओं को दूर कर इस्पात उद्योग सक्षम बना रहे हैं और ऊंची उड़ान भरने के लिए अपने पंख फैला रहे हैं। जल्दी ही भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक देश बन जाएगा।

माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 2015 में राउरकेला और बर्नपुर में आधुनिक और विस्तारित सुविधाओं से सुसज्जित सेल के दो एकीकृत इस्पात संयंत्रों को राष्ट्र को समर्पित किया। इस प्रकार भारत दूसरे सबसे बड़े इस्पात उत्पादक होने के अपने लक्ष्य के करीब आ रहा है। यह हमारी सरकार के तहत हो रहा है। आज भारत अमेरिका के बाद विश्व में तीसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक वाला देश है।

इस्पात मंत्रालय के अधीन आने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम एमएसटीसी ने भारत के पहले बड़े ऑटो-श्रेडिंग संयंत्र की स्थापना के लिए एक संयुक्त उद्यम पर हस्ताक्षर किए हैं। इस विचार को आगे करते हुए मैंने मंत्रालय से उत्तरी और पश्चिमी भारतदोनों में एक-एक स्क्रैप आधारित इस्पात संयंत्रों की स्थापना करने की संभावनाओं का पता लगाने को कहा है।  इन सभी को "भारत निर्मित इस्पात" की रणनीति के तहत शामिल किया जा रहा है जिसमें हम इस्पात उद्योग में "मेक इन इंडिया" पहल को अपनाने पर ध्यान दे रहे हैं। रक्षाजहाज निर्माण और अन्य विनिर्माण क्षेत्रों में, "मेक इन इंडिया" पहल में काफी निवेश होने की उम्मीद हैजो स्टील की मांग को प्रोत्साहित करेगा। भारत में विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए माननीय प्रधानमंत्री ने हमारे अभिनव तरीकों से कार्य करने और लीक से हटकर रणनीतियां बनाने के संकल्प को मजबूत किया है।

यह हमें साफपर्याप्त और उच्च गुणवत्ता वाले इस्पात बनाने के में मदद करेगा। कुछ महीने पहले एमएसटीसी ने भी एमएसटीसी मेटल मंडी की शुरूआत की थी जो एक डिजिटल इंडिया संबंधी पहल है और इसके तहत बीआईएस स्टील के खरीदारों और विक्रेताओं को एक इलेक्ट्रॉनिक मंच प्रदान किया गया है।

मेरा यह प्रयास है कि इस्पात ग्राहकों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए भारतीय इस्पात उद्योग में एक सख्त गुणवत्ता वाला शासन होना चाहिएचाहे यह स्टेनलेस स्टीलनिर्माण ग्रेड स्टील से संबंधी हो या अन्य इस्पात उत्पादों से संबंधित हो। गुणवत्ता नियंत्रण क्रम के तहत हमने कुछ उत्पादों को पेश किया है और धीरे-धीरे बीआईएस प्रमाणन के तहत हम अधिक से अधिक उत्पादों को लाकर इसके दायरे का विस्तार कर रहे हैं।

इस्पात मंत्रालय आत्मनिर्भरता और आयात प्रतिस्थापन के उद्देश्य के साथ बिजली और ऑटो ग्रेड जैसे विशेष ग्रेड स्टील्स बनाने की क्षमता पर कार्य कर रहा है। मेरा मानना है कि अनुसंधान और विकास इस्पात उद्योग के विकास का एक महत्वपूर्ण अंग है। इस्पात कंपनियों को उनके प्रदर्शन और लाभप्रदता के राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क प्राप्त करने के लिए लक्ष्य दिए गए हैं। इन निर्णयों से हमारी इस्पात कंपनियां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी होने के साथ-साथ भारत से उच्च गुणवत्तामूल्य वर्धित उत्पादों का निर्यात करने में सक्षम होंगी।

जनवरी 2017 मेंहमने "राष्ट्रीय इस्पात नीति 2017" का मसौदा जारी कर विभिन्न हितधारकों से प्रतिक्रिया और टिप्पणियों मांगी है। इसका लक्ष्य भारत में प्रति व्यक्ति इस्पात खपत को बढ़ाकर 160 किलोग्राम करना है और वर्ष 2030-31 तक इस्पात उत्पादन क्षमता को 300 मिलियन टन करना है।

हमें स्टील की मांग में वृद्धि करने के लिए एक रणनीति की भी आवश्यकता है जिसके तहत स्टील का उपयोग बढ़ाने के लिए मंत्रालय से सहयोग जरूरी है। मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि अपेक्षाओं के अनुसार मंत्रालयों से समर्थन मिल रहा है।

ग्रामीण विकास मंत्रालय ने ग्रामीण घरों में इस्पात के उपयोग अनिवार्य कर दिया हैवहीं शहरी विकास मंत्रालय द्वारा निर्माण कार्य में इस्पात के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। रेल मंत्रालय स्टील का उपयोग करने पर सहमत हो गया है तथा सड़क मंत्रालय परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय हमारे प्रस्तावों के जवाब में सड़क पुलोंराजमार्गों आदि में इस्पात का प्रयोग करने पर विचार कर रहा है।

इस्पात मंत्रालय ने स्टील पुलों और सड़कों के साथ-साथ स्टील क्रैश बैरियर के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए भी संबंधित विभागों से बात की है। हम पहाड़ी राज्यों में अलग-अलग राज्य सरकारों के साथ क्रैश बैरियरों का प्रयोग कर सड़कों पर होनी वाली दुर्घटनाओं को कम करने के तरीकों पर बातचीत कर रहे हैं।

राज्य के विशेष कारकों के आधार पर दुर्घटनाओं में कमी लाने के लिए क्रैश बैरियरों का विस्तृत तकनीकी और भौगोलिक अध्ययन किया जा रहा है। कम लागतजल्दी स्थापना और लंबी अवधि का लाभ लेने के लिए इस्पात का प्रयोग पारंपरिक आरसीसी पुलों के स्थान पर भी किया जा सकता है। हमने सुझाव दिया है कि भारतीय रेलरेलवे स्टेशनोंफुट ओवर ब्रिजरेल डिब्बोंइस्पात आधारित रेलवे कॉलोनी के भवन निर्माण कार्यों में इस्पात का उपयोग बढ़ाया जा सकता है।

माय गोव प्लेटफॉर्म में आ रहे नए विचार इस्पात की खपत बढ़ाने में मददगार साबित हो रहे हैं जिनमें से कुछ वास्तव में उन्नत और अपनाने योग्य हैं। हम इन विचारों पर कार्य कर रहे हैं। हम लघु अवधि की योजनाओं पर कार्य कर रहे हैं। और तेजी से निगरानी और कार्यान्वयन के लिए अर्द्धवार्षिकवार्षिक और 3 साल के आधार पर लक्ष्य निर्धारित कर रहे हैं।

इन सभी प्रयासों की बदौलत भारत विश्व में प्रमुख इस्पात उत्पादक देशों के बीच उत्पादन और इस्पात की खपत में वृद्धि के मामले में लगातार आगे बढ़ रहा है। पिछले साल  वर्ल्ड स्टील एसोसिएशन (डब्ल्यूएसए) के महानिदेशक श्री एडविन बॉसन ने कहा था कि मौजूदा वैश्विक इस्पात बाजार में मंदी के बावजूद भी केवल एक स्थान है ऐसा है जिसके पास लंबी अवधि तक वैश्विक स्टील बाजार में अपनी छाप छोड़ने की क्षमता है और वह भारत है।

संक्षेप मेंइस्पात मंत्रालय की सभी पहलोंरणनीतियोंनिर्णय और प्रस्तावों की सफलता के पीछे एक प्रमुख योगदान कारक के रूप में साथी मंत्रालय हैं जिनसे लगातार समर्थन मिला है। आइए एक कदम आगें चलेंऔर मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं नरेंद्र मोदी सरकार के नेतृत्व में इस साझेदारी और समझ की बदौलत प्रत्येक मंत्रालय की अलग पहचान बनी है।

6 feb

बजट: प्रचार पर कम; वास्तयविकता पर अधिक जोर 


    वित्‍त मंत्री श्री अरुण जेटली ने अपने बजट 2017-18 में जरूरत मंदों को धन प्रदान किया है। लगभग 21.46 लाख करोड़ रुपये के विभिन्‍न बजट विवरण के बारे में सबसे उपयुक्‍त शीर्ष वैश्विक बैंकर ने कहा है कि यह एक कारीगरी और व्‍यवसाय जैसा कार्य है।

            हालांकि उच्‍च अपेक्षाओं के बावजूद बजट के अंतिम आंकड़ों और विकास खाके में  प्रचार पर कम और किसानों, ग्रामीण श्रमिकों, निम्‍न मध्‍य वर्ग, युवा और लघु तथा मध्‍यम उद्य‍मों के लिए वास्‍तविक सहायता प्रदान करने पर अधिक जोर दिया गया है।

      विकसित अर्थव्‍यवस्‍थाओं द्वारा संरक्षणवाद और उभरते हुए बाजारों से पूंजी का निकलना जैसी वैश्विक चुनौतियों को देखते हुए वित्‍त मंत्री ने बजट प्रस्‍तुत करते हुए घरेलू कारकों पर बल दिया, जिसमें कई बातें पहली बार शामिल की गई हैं। पहली बार बजट एक महीने पहले पेश किया गया, जिससे सरकार के व्‍यय पर गुणात्‍मक प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा पहली बार नियोजित और गैर-नियोजित व्‍यय की सख्‍ती को हटाया गया है।

            विमुद्रीकरण और ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था को बढ़ावा देने के महत्‍व के बाद आए इस बजट में श्री जेटली ने देश के ग्रामीण क्षेत्र के लिए 1.87 लाख करोड़ रुपये का संयुक्‍त आवंटन किया है। प्रमुख ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम, महात्‍मा गांधी मनरेगा के लिए अब तक का सबसे अधिक 48,000 करोड़ रुपये आवंटित किया गया है और यह व्‍यय ‘केवल खड्डे खोदने और भरने’ के लिए नहीं बल्कि बेहतरीन ग्रामीण संपत्ति का निर्माण करने में किया जाएगा। सभी मनरेगा संपत्तियों को जीओ-टैग किया जाएगा और अधिक पारदर्शिता के लिए इसे सार्वजनिक किया जाएगा। यहां तक कि मनरेगा कार्यों की योजना बनाने के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का भी व्‍यापक उपयोग किया जाएगा।

     किसानों को उनकी फसल का बेहतर मूल्‍य दिलाने के लिए उनको ई-मंडी से जोड़ने तथा कृषि उत्‍पाद बाजार समीति (एपीएमसी) अधिनियम के चंगुल से और अधिक किसान उत्‍पादों को विमुक्‍त करने के लिए अधिक से अधिक राज्‍यों से आग्रह करने जैसी पहलों से किसानों को काफी मदद मिलेगी।

     एक महत्‍वपूर्ण प्रश्‍न है कि क्‍या यह बजट निजी क्षेत्र में खपत मांग और निवेश को पुनर्जीवित कर सकेगा?

     जैसा कि घरेलू और अंतर्राष्‍ट्रीय अर्थव्‍यवस्‍था की स्थिति के बारे में शानदार कुछ और ईमानदार आकलन के बेहतरीन दस्‍तावेज, आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है कि देश का निजी क्षेत्र भारी ऋण की समस्‍या से जूझ रहा है। इसलिये भारतीय कंपनियों द्वारा इस क्षेत्र में नया धन लगाने से पहले निवेश चक्र में आवश्‍यक महत्‍वपूर्ण नेतृत्‍व के लिये यह सरकार का तार्किक उपाय होगा और इसके बाद दूसरे आदेश में इसका पालन किया जायेगा। यही कार्य इस बजट में किया गया है। विश्‍व में विपरित परिस्थितियों के बावजूद पूंजी निर्माण के लिये पूंजी व्‍यय में 24 प्रतिशत की बढ़ोत्‍तरी की गई है। प्रमुख सड़क, रेल और शिपिंग बुनियादी ढांचा क्षेत्र को संयुक्‍त रूप से 2.41 लाख करोड़ रुपये के परिव्‍यय का सरकारी निवेश प्राप्‍त हुआ है। इसे कई गुना प्रभावी बनाने के लिये निजी क्षेत्र को सीमेंट, स्‍टील और रोलिंग स्‍टॉक आदि के ऑर्डर प्राप्‍त होंगे, जिससे कुशल और अर्धकुशल लोगों के लिये रोजगार के अवसर पैदा होंगे तथा प्रमोटरों के राजस्‍व में वृद्धि होगी।

     युवाओं के बारे में विचार एकदम स्‍पष्‍ट हैं: जो एक ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र तैयार करना है जहां आसान बैंक ऋण, राजकोषीय रियायतों और प्रोद्योगिकी समर्थता की मदद से उद्यमशीलता बढ़े। एक विश्‍लेषक ने कहा है कि कारपोरेट भारत को केवल पांच से दस शीर्ष व्‍यावसायिक घरानों के लिये ही शेयर बाजार में धन बनाने के रूप में नहीं देखना चाहिये,बल्कि यह करोड़ों सूक्ष्‍म, लघु और मझौले उद्यमों (एसएमई) के लिये भी है। बजट से इस वर्ग के लोगों की स्थिति में काफी बदलाव आयेगा। हालांकि सरकार द्वारा पूरे उद्योग के लिये कारपोरेट कर को 25 प्रतिशत करने के अलावा एसएमई क्षेत्र को प्राथमिकता दी गई है, जिन्‍हें कर और कम देना होगा। नाम में कुछ बदलाव कर बुनियादी ढ़ांचा का दर्जा देने के बाद किफायती आवास के इस क्षेत्र को काफी बढ़ावा दिया गया है। विमुद्रीकरण और कम मांग के कारण इस क्षेत्र को काफी धक्‍का पंहुचा था। इससे निर्माण क्षेत्र में रोजगार बढ़ेगा और सबके लिये आवास का सरकार का वादा पूरा होगा। 

   डिजीटल इंडिया एक ऐसा क्षेत्र है, जहां बजट में अपेक्षाओं के अनुरूप आवंटन किया गया है। इसमें जोर देकर कहा गया है कि डिजीटल पहल केवल विमुद्रीकरण तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि यह नया सामान्‍य तरीका होगा। संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र को आपस में जोड़ने के लिये भीम, फाइबर ऑप्टिक्‍स, बिक्री स्‍थलों और माल प्‍लेटफार्म जैसे परिचालन ऐप तैयार करने के लिये कई पहल की और बुनियादी सहायता दी गई है। देश को ऊर्जावान और स्‍वच्‍छ बनाने के लिये बजट में नगदी रहित अर्थव्‍यवस्‍था ‘टीइसी’ स्‍तम्‍भों में से एक है। वास्‍तव में इससे न केवल काले धन और भ्रष्‍टाचार को समाप्‍त कर देश को आंतरिक रूप से स्‍वच्‍छ करने में मदद मिलेगी, बल्कि इससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और युवा ऊर्जावान बनेंगे।

   इसी विषय से जुड़े विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड को समाप्‍त करने से प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश की परियोजनओं को मंजूरी देने या न देने में लाल फीताशाही कम करने और विवेकाधिकारों को समाप्‍त करने के बारे में वैश्विक निवेशकों को बड़ा और स्‍पष्‍ट संकेत दिया गया है। इसके बाद राजनीतिक दलों को चंदा देने में पारदर्शिता लाने के लिए सबसे साहासिक कदम चुनावी बांड के जरिए चंदा देना और केवल दो हजार रुपये तक नकद चंदा देने की सीमा तय करना है। यह भ्रष्‍टाचार के खिलाफ लड़ाई जीतने में काफी मददगार साबित होगा।

   20,000 करोड़ रुपये तक प्रत्‍यक्ष कर मुक्‍त करने के साथ ही वित्‍तीय अनुशासन पर टिके रहकर वित्‍त मंत्री ने इसके लिए कोई नया कर नहीं शुरू किया है। राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्‍पाद के 3.2 प्रतिशत के महत्‍वपूर्ण स्‍वीकार्य स्‍तर पर नियंत्रित किया गया है। यह एक ऐसा उपाय है, जिससे देश को वैश्विक रेटिंग एजेंसियों का विश्‍वास बनाए रखने में मदद मिलेगी।

            संक्षेप में बजट 2017-18 बेहतरीन है और अगर अगले वित्त वर्ष में नहीं, तो आगामी वर्षों में इससे 8 प्रतिशत से अधिक जीडीपी वृद्धि दर हासिल करने में मदद मिलेगी।

 

आदित्य नौका: स्वच्छ ऊर्जा के लिए वाईकॉम का नया सत्याग्रह

विशेष लेख

 

 

*गोपाकुमार पूक्कोत्तुर

       केरल में कोट्टायम जिले के उत्‍तर-पूर्व जिले में स्थित सत्‍याग्रह की धरती वाईकॉम ने 12 जनवरी, 2017 को एक बार फिर इतिहास रचा है। आदित्‍य नाम से भारत की पहली सौर ऊर्जा संचालित नौका सेवा को वाईकॉम और थवंक्‍काडावू के बीच शुरू किया गया है, जो कोट्टायम और अलाप्‍पुझा जिलों को आपस में जोड़ेगी। इस सौर ऊर्जा चालित नौका को केरल राज्‍य परिवहन विभाग द्वारा निर्मित किया गया है, जिसे केद्रीय नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के द्वारा वित्‍तीय सहायता के रूप में सब्सिडी प्रदान की गई है। सामान्‍य दिनों में सौर ऊर्जा से संचालित होने वाली यह नौका 5-6 घंटे की यात्रा कर सकती है। यह परियोजना केरल जैसे राज्‍य के लिए वास्‍तव में एक वरदान है,जहां राज्‍य भर में बड़ी मात्रा में जल परिवहन का इस्‍तेमाल किया जाता है।

      20वीं शताब्‍दी की शुरुआत के दौरान (1925 से 1930 के बीच) वाईकॉम को सत्‍याग्रह आयोजन स्‍थल के लिए जाना जाता था, जिसका उद्देश्‍य समाज के सभी वर्गों को वाईकॉम मंदिर तक मुक्‍त आवाजाही प्रदान करना था। यह केरल के इतिहास में एक महान सामाजिक क्रांति थी। 9 मार्च, 1925 को वाईकॉम नौका घाट का प्रयोग राष्‍ट्रपति महात्‍मा गांधी द्वारा सत्‍याग्रह के लिए वाईकॉम तक पहुंचने के लिए किया गया था। हाल ही में यहां भारत की पहली सौर ऊर्जा संचालित नौका का उद्घाटन केन्‍द्रीय ऊर्जा, कोयला और नवीन तथा नवीकरणीय ऊर्जा राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) श्री पीयूष गोयल तथा केरल के मुख्‍यमंत्री पिनारई विजयन द्वारा किया गया। प्रदूषण मुक्‍त सौर ऊर्जा चालित नौका का सफल प्रक्षेपण सौर ऊर्जा के उपयोग की दिशा में भारत की यात्रा का एक ऐतिहासिक कदम है। यह स्‍वच्‍छ ऊर्जा को बेहतर बनाने के लिए किए गए हमारे प्रयासों को दर्शाता है।

आदित्‍य भारत की सबसे बड़ी सौर ऊर्जा संचालित नौका है, जिसकी क्षमता 75 सीटों की है। इस पोत को केरल के इंजीनियर सांदिथ थंडाशेरी द्वारा डिजाइन किया गया है, जो सौर ऊर्जा क्षेत्र से संबंधित एक निजी कंपनी के प्रबंध निदेशक हैं। नौका के विकास और डिजाइन के लिए प्रमुख प्रौद्योगिकी और सहायता फ्रांसीसी फर्म द्वारा प्रदान की गई है। नौका को केरल के नवगाथी मरीन डिजाइन और कंस्‍ट्रक्‍शन की इकाई थवंक्‍काडावू में निर्मित किया जा रहा है।

यह नौका 20 मीटर लंबी और 7 मीटर बीम के साथ 3.7 मीटर ऊंची है। इसकी एक अन्‍य महत्‍वपूर्ण विशेषता यह है कि यह लकड़ी और इस्‍पात की जगह फाइबर से निर्मित है। नाव की छत पर 78 सोलर पैनल लगाए गए हैं, जो सौर ऊर्जा और बिजली पैदा करते हैं। सोलर पैनल को 20 किलोवाट की 2 इलेक्ट्रिक मोटरों के साथ जोड़ा गया है। ...... नाव में 700 किलोग्राम की लीथियम आईएन बैटरी लगाई गई है, जिसकी क्षमता 50 किलोवाट की है। नौका के ढांचे को इस तरह से विकसित किया गया है जिससे इसकी रफ्तार 7.5 नॉटिकल/घंटा तक पहुंच जाती है। इसे भारत सरकार की जहाजरानी सर्वेक्षक और केरल पोत सर्वेक्षक के तकनीकी समिति द्वारा सत्‍यापित किया गया है। इसकी सामान्‍य संचालन गति 5.5 नॉटिकल/घंटा  (10 किलोमीटर प्रति घंटा) है, जो वाईकॉम थवंक्‍काडावू के बीच की 2.5 किलोमीटर की दूरी को 15 मिनट में तय करती हैं। इस गति को प्राप्‍त करने के लिए 16 किलोवाट ऊर्जा की जरूरत पड़ती है।

      इसकी अन्‍य प्रमुख विशेषता यह है कि यह नौका यात्रा के दौरान सामान्‍य डीजल से चलने वाले क्रूज के मुकाबले कम कंपन्‍न करती है। यह एक सस्‍ता विकल्‍प भी हो सकता है। यह नाव भारत सरकार के शिपिंग विभाग द्वारा निर्धारित सुरक्षा मानकों को भी पूरा करती है और केरल में कहीं भी संचालन के लिए यह बेहद सुरक्षित है। राज्‍य में जल परिवहन प्रणाली में तेजी से विस्‍तार हो रहा है। इसलिए इसका महत्‍व और भी अधिक बढ़ जाता है। इसी तरह की कार्यात्‍मक सुविधाओं और सुरक्षा मानकों से सु‍सज्जित डीजल से चलने वाली पारंपरिक नाव के मुकाबले इसकी तुलना की जाए तो इसकी लागत 1.58 करोड़ रुपये है, जबकि सौर ऊर्जा संचालित नौका की लागत 2.35 करोड़ रुपये आती है। इस्‍पात से निर्मित एक सामान्‍य नाव की यात्री क्षमता 75 यात्रियों की होती है।  इसकी कीमत लगभग 1.9 करोड़ रुपये है। एक कुशल पारंपरिक नाव पर प्रतिदिन 120 लीटर तेल (12 लीटर प्रतिघंटा) या 3500 लीटर प्रति माह और 42000 लीटर प्रति वर्ष डीजल खर्च होता है। यह राशि डीजल के लिए 26.55 लाख रुपये (63.32 रुपये/लीटर प्रति लीटर) तथा ल्‍यूब ऑयल एवं अन्‍य रखरखाव लागत सहित कुल परिचालन लागत 30.37 लाख रुपये प्रति वर्ष आती है। जबकि, सौर ऊर्जा से संचालित होने वाली नौका में 40 यूनिट बिजली या 422.13 रुपये प्रतिदिन खर्च होते हैं, जो लगभग 12,596 रुपये प्रति माह  तथा 1.5 लाख रुपये प्रति वर्ष होते हैं। सौर ऊर्जा से संचालित होने वाली नौकाओं से किसी भी प्रकार का न तो शोरगुल होता है और न ही प्रदूषण, जैसा कि डीजल से संचालित होने वाली नौकाओं में होता है।

पारंपरिक नौकाएं वायुमंडल में बड़ी मात्रा में सीओ 2 छोड़ती हैंजो हमेशा पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरनाक होती हैं। इसके अलावा तेल का फैलना भी जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिए हानिकारक है। लेकिन सौर ऊर्जा से संचालित होने वाली नौकाएं न तो वायुमंडल में प्रदूषण फैलाती हैं और न ही जलीय वातावरण को प्रदूषित करती हैं।  

अंतर्देशीय जल परिवहन को केरल में परिवहन का सबसे कुशलसस्‍ता और पर्यावरण के अनुकूल परिवहन साधन माना जाता है। अंतर्देशीय जल नेविगेशन प्रणाली केरल में परिवहन का अभिन्न हिस्सा होने के साथ-साथ परिवहन का सबसे सस्ता साधन भी है। केरल की 44 में 41 नदियांकई झीलेंनहरें यात्रा और माल ढुलाई के लिए राज्य में स्थित जलमार्गों का अच्छा नेटवर्क प्रदान कराते हैं। अष्टमुडी और वेमांनाडू जैसी झीलें केरल के पर्यटन क्षेत्र के लिए अंतर्देशीय नेविगेशन का एक अच्छा साधन उपलब्ध कराती हैं।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार इस ग्रीन परियोजना की बहुत सहायता कर रही है। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय भी इस परियोजना को प्रायोजित करने पर सहमत हो गया है। यह परियोजना भारत में इस तरह की पहली परियोजना है। प्रायोजन के लाभ का मतलब है कि केरल के राज्य जल परिवहन विभाग को भारत सरकार द्वारा नौका लगभग मुफ्त में मिल जाएगी। वर्तमान में केरल राज्य के जल परिवहन विभाग के पास 49 नौकाएं हैं जो लकड़ी और स्टील से बनी हैं। इन लकड़ी की नावों की परिचालन लागत को कम करने के लिएविभाग ने हाल ही में इसका निर्माण फाइबर ग्लास से करने की संभावनाओं को तलाशा है। पहली सौर ऊर्जा नाव की शुरूआत के बादकेरल का राज्य जल परिवहन विभाग राज्य की परिवहन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कई अन्य सौर ऊर्जा से संचालित होने वाले नावों को उतारने की तैयारी कर रहा है।   

 

7 feb

काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान 

संरक्षणात्मक कदमों से एक सींग वाले गैंडे की जनसंख्या में उल्लेखनीय वृद्धि 


विशेष लेख

 

 

 

·         डॉ. सत्येंद्र सिंह

     

      काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान भारत का सबसे पुराना वन्य जीव संरक्षण क्षेत्र है। 1905 में इसे पहली बार अधिसूचित किया गया था और 1908 में इसका गठन संरक्षित वन के रूप में किया गया जिसका क्षेत्रफल 228.825 वर्ग किलोमीटर था। इसका गठन विशेष रूप से एक सींग वाले गैंडे के लिए किया गया था, जिसकी संख्या तब यहां लगभग 24 जोड़ी थी। 1916 में काजीरंगा को एक पशु अभयारण्य घोषित किया गया था और 1938 में इसे आगंतुकों के लिए खोला गया था। 1950 में इसे एक वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया। 429.93 वर्ग किलोमीटर के साथ वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत 1974 में काजीरंगा को राष्ट्रीय उद्यान के रूप में अधिसूचित किया गयाजो फिलहाल बढ़कर अब 899 वर्ग किमी. हो गया है।

 

 

      काजीरंगा राष्ट्रीय पांच बड़े नामों के लिए प्रसिद्ध हैजिनमें गैंडा (2,401), बाघ (116), हाथी (1,165), एशियाई जंगली भैंस और पूर्वी बारहसिंघा (1,148) शामिल हैं। यह दुनिया में एक सींग वाले गैंडों की सबसे बड़ी आबादी वाला निवास स्थान है और विश्व में एक सींग वाले गैंडे की पूरी आबादी का लगभग 68%  भाग यहां मौजूद है। बाघों की बात की जाए तो यहां उनका घनत्व विश्व में सबसे सर्वाधिक घनत्वों में से एक है। यहां पूर्वी बारहसिंघा हिरण की लगभग पूरी आबादी रहती है। इन पांच बड़े नामों के अलावाकाजीरंगा विशाल पुष्प और जीव जैव विविधता का समर्थन करता है। काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान उत्तर में ब्रह्मपुत्र नदी पर हैजिसके पूर्व में गोलाघाट जिले की सीमा से लेकर पश्चिम में ब्रह्मपुत्र नदी पर कालीयाभोमोरा पुल स्थित है। एक तरफ नदी में आने वाली वार्षिक बाढ़ का पानी पोषण लाता है जो एक उच्च उत्पादक बायोमास के उत्पादन में अग्रणी भूमिका निभाता है,  लेकिन दूसरी तरफ बाढ़ से हुए कटाव के कारण मूल्यवान और प्रमुख निवास स्थानों का काफी नुकसान हो जाता है।

काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के आसपास के क्षेत्रों में कई अधिसूचित जंगली और संरक्षित क्षेत्र हैंजिनमें पनबारी रिजर्व फॉरेस्ट और दियोपहर प्रस्तावित रिजर्व फॉरेस्ट  गोलाघाट जिले मेंनगांव जिले में कुकुराकाता हिल रिजर्व फॉरेस्टबागसेर रिजर्व फॉरेस्टकामाख्या हिल रिजर्व फॉरेस्ट और दियोसुर हिल प्रस्तावित रिजर्व फॉरेस्टसोनितपुर जिले में भूमुरागौरी रिजर्व फॉरेस्टकार्बी आंगलोंग जिले में उत्तर कर्बी आंगलोंग वन्यजीव अभयारण्य शामिल हैं। उपरोक्त सभी क्षेत्रों का काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान की पारिस्थितिक में विशेष महत्व हैं।

      

      काजीरंगा में गैंडों का अवैध शिकार हमेशा से ही एक गंभीर खतरा रहा है। लेकिनस्थानीय लोगों के साथ समन्वय स्थापित करके पार्क के अधिकारियों द्वारा उठाए गए उत्कृष्ट संरक्षण उपायों की वजह से गैंड़ों की वर्तमान आबादी 2401 में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। काजीरंगा में गैंडे के अवैध शिकार का प्रमुख कारण पिछले कुछ वर्षों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में गैंडे के सींगों की कीमत में आई वृद्धि है। दीमापुर-मोरेह इसके लिए एक आसान मार्ग है जहां से इस क्षेत्र में अवैध हथियारों की उपलब्धता से गैंड़े का अवैध शिकार किया जाता है।

 

काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान देश के उत्तर पूर्वी क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है। वर्ष 2015-16 के दौरान राष्ट्रीय उद्यान में कुल 1,62,799 पर्यटकों ने दौरा किया, जिनमें 11,417 विदेशी पर्यटक शामिल थे। पर्यटकों की इस संख्या से 4.19 करोड़ रुपये का प्रवेश शुल्क राजस्व के रूप में अर्जित किया गया।

अवैध शिकार रोकने के उपाय:

पार्क के अधिकारियों ने अवैध शिकार को रोकने के लिए सभी प्रयास किए हैं जिनमें कठोर गश्त और फील्ड ड्यूटी भी शामिल हैं। बुनियादी ढांचे की कमी, उपकरणों की कमी, स्टाफ की कमी, एक बहुत ही असुरक्षित सीमा, एक बहुत ही प्रतिकूल इलाका होने के बावजूद भी अवैध शिकार को रोकने के हरसंभव प्रयास किए गए हैं। सरकार द्वारा उठाए गए प्रमुख कदमों का वर्णन इस प्रकार हैं:

v काजीरंगा राष्ट्रीय पार्क को वर्ष 2007 में एक टाइगर रिजर्व घोषित किया गया था और तभी से इसे भारत सरकार के राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के अधीन आने वाले "सीएसएस प्रोजेक्ट टाइगर" के तहत पर्याप्त रूप में वित्तीय सहायता मिल रही है। वर्ष 2016-17 के दौरान प्राधिकरण को 1662.144 लाख (केंद्रीय हिस्सेदारी 1495.03 लाख रूपये) की मंजूरी दी गयी।

v काजीरंगा में 'प्रोजेक्ट टाइगर' के तहत एनटीसीए द्वारा प्रदान की गयी निधि से इलेक्ट्रॉनिक आई के रूप में एक इलेक्ट्रॉनिक निगरानी प्रणाली को स्थापित किया गया है। इस योजना के तहत सात लंबे टावरों को विभिन्न स्थानों पर स्थापित किया गया है और नियंत्रण कक्ष से 24x7 निगरानी रखने वाले थर्मल इमेंजिक कैमरे भी लगाएं हैं।

v असम की राज्य सरकार द्वारा गैंडों के अवैध शिकार सहित वन्यजीव अपराध से निपटने के लिए नीति और विधायी परिवर्तन कड़ाई से लागू करने हेतु वन्यजीव (संरक्षण) (असम संशोधन) अधिनियम, 2009 पेश किया गया। अपराध के लिए वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम के तहत सजा में बढ़ोत्तरी कर इसे न्यूनतम 7 साल कर दिया गया है तथा न्यूनतम जुर्माना 50 हजार से कम नहीं है।

v वर्ष 2010 में सरकार ने 1973 सीआरपीसी की की 197 (2) धारा के तहत वन कर्मचारियों को प्रतिरक्षा के लिए  हथियारों के इस्तेमाल करने की अनुमति प्रदान की।

v काजीरंगा नेशनल पार्क में अवैध शिकार को रोकने के लिए अतिरक्त सहायता प्रदान की गयी है जिसमें असम वन सुरक्षा बल के 423 कर्मी और 125 होमगार्डों की तैनाती की गई है। सीमावर्ती कर्मचारियों को और अधिक आधुनिक हथियार मुहैया कराने की प्रक्रिया जारी है।

v राज्य सरकार के संबंधित विभागों के सदस्यों और तकनीकी विशेषज्ञों के साथ काजीरंगा जैव विविधता और विकास समिति का गठन किया गया है जो काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान सीमावर्ती क्षेत्रों में बेहतर संरक्षण के लिए विस्तृत रूप से ढांचागत विकास प्रदान करने में सहायता प्रदान करेंगे।

 

गिरफ्तार और मारे गए शिकारी तथा बरामदगी

वर्ष

गिरफ्तार किए गए शिकारी

मारे गए शिकारियों की संख्या

बरामद शस्त्र और गोलाबारूद

2014

47

22

0.303  राइफल-11,      एबीबीएल बंदूक- 2                              देशी बंदूक- 4,

83 राउंड गोलियां, साइलेंसर- 5

2015

88

23

.303 राईफल- 16 , देशी बंदूक- 2,

.85 एमएम पिस्टल - 1,   .22 राइफल-3 , .315 राइफल-3 , 220 राउंड गोलियां

साइलेंसर- 8

2016

59

5

.303 राइफल- 7 ,   एके-47 राइफल=-1

.22 राइफल- - 1, एके 47 मैगजीन-2,

.303 मैगजीन -2, 120 राउंड गोलियां ., साइलेंसर- 2

  9 feb

रियल स्‍टेट और आवास के लिए परिवर्तनकारी बजट 

   बजट 2017-18 के बजट में गरीबों के लिए आवास

 

                                                                       

   बड़ी और लोकलुभावन घोषणाओं से परे इस वर्ष का बजट काफी संतुलित, सकारात्‍मक और प्रगतिशील बजट है। इसका लक्ष्‍य मंदी की मार झेल रहे रियल स्‍टेट तथा आवास क्षेत्र को पुनर्जीवित करना और इसे सतत विकास की राह पर लाना है।

            रियल स्‍टेट तथा आवास क्षेत्र को प्रोत्‍साहित करने की मोदी सरकार के सुधारवादी दृष्टिकोण के अनुरूप बजट ने इन क्षेत्रों को अनेक पहलुओं विशेषकर रियायती और कम लागत के आवास को काफी प्रोत्‍साहित किया है ताकि सभी के लिए आवास कार्यक्रम के उद्देश्‍य को प्राप्‍त किया जा सके। प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमकेवाई) को बजट में काफी अधिक आवंटन हुआ है। इसका आवंटन 39 प्रतिशत बढ़ाकर कुल 29 हजार करोड़ रूपये कर दिया गया है। सरकार के गरीब समर्थक दृष्टिकोण को ध्‍यान में रखते हुए ग्रामीण आवास के लिए आवंटन में 44 फीसदी की वृद्धि की गई है। प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत दो करोड़ शहरीतथा एक करोड़ ग्रामीण मकान बनाने का लक्ष्‍य है और इस लक्ष्‍य की प्राप्ति के लिए 23 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। यह पिछले वर्ष के आवंटन से आठ हजार करोड़ रुपये अधिक है। दो हजार करोड़ रूपये के अतिरिक्‍त पुनर्वित का प्रावधान राष्‍ट्रीय आवास बैंक के लिए किया गया है ताकि आवास स्‍टॉक को बढ़ावा मिले।

            आवास क्षेत्र पर इस क्षेत्र का सबसे बड़ा परिवर्तनकारी कदम रियायती मकानों को बुनियादी ढांचे का दर्जा देना है। यह सही है कि आवास की सबसे अधिक कमी रियायती और कम लागत की श्रेणी में है। सरकार यह अच्‍छी तरह महसूस करती है कि रियल स्‍टेट क्षेत्र में जारी मंदी विशेषकर आवासीय रियल स्‍टेट में मंदी क्षेत्र द्वारा तरलता की समस्‍या झेलने के कारण है। रियायती मकानों को बुनियादी ढांचाके समकक्ष रखने के सरकार के प्रयास से सस्‍ते, घरेलूऔर अंतर्राष्‍ट्रीय वितत्‍ के लिए दरवाजे खुलेंगे। विदेश निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआईपीबी) के उन्‍मूलन से न केवल कारोबारी सहजता को बढ़ावा देनेमें मदद मिलेगी बल्कि प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह को भी प्रोत्‍साहन मिलेगा। वित्‍त वर्ष 2016-17 की पहली छमाही में प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह 1.45 लाख करोड़ पर पहुंच गया। यह 2015-16 में 1.07 लाख करोड़ रूपये था। इन सबसे आवास आपूर्ति को प्रोत्‍साहन मिलेगा। बुनियादी ढांचा रियल स्‍टेट तथा समग्र अर्थव्‍यवस्‍था को बढ़ावा देने में बड़ी भूमिका निभाता है इसलिए बुनियादी ढांचेके लिए 3.96 लाख करोड़ रूपये का रिकॉर्ड  प्रावधानकिया गया है जोकि पिछले वर्षसे 25 प्रतिशत अधिक है इसके साथ ही राजमार्ग के लिए बजटीय समर्थन बढ़ाकर 64 हजार करोड़ कर दिया गया है।

            संपत्ति उपभोक्‍ताओं की दृष्टि से 2017-18 के बजट को ऐतिहासिक बजट कहा जा सकता है। बजट में संपन्‍न लोगों पर अधिक कर लगाये गये हैं और ईमानदार करदाताओं को आयकर की बड़ी राहत देकर पुरस्‍कृत किया गया है।  2.5 लाख से अधिक की वार्षिक आय पर टैक्‍स को आधा कर दिया गया है। इसके अतिरिक्‍त आयकर की सीमा बढ़ाकर तीन लाख रूपये कर दी गई है। बजट प्रावधानों से उच्‍च आय वाले लोगों द्वारा सटोरिया खरीदारी को हतोत्‍साहित किया गया है और वास्‍तविक रियायती मकान खरीदने वाले लोगों को प्रोत्‍साहित किया गया है। प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत सरकार ने पहले ही नौ लाख रूपये तक के आवास ऋण पर ब्‍याज में चार प्रतिशत की कमी की गई है और बारह लाखरूपये तक के आवास ऋण पर ब्‍याज दर तीन प्रतिशत घटाने की घोषणा की गई है। अधिक से अधिक लोगों को रियायती आवास योजना के अंतर्गत लाने के लिए सरकार ने इस बजट में घर के आकार (30 वर्ग्‍ मीटर या 300 वर्ग्‍ फीट- 60 वर्गमीटर या 600 वर्ग फीट) के पात्रता मानकों को बिल्‍टअप एरिया से बदलकर कारपेट एरिया कर दिया गया है। अब 800 वर्ग फीट के मकान रियायती आवास श्रेणी के दायरे में आएंगे। सरकार ने मकानों की बिक्री पर कर राहत भी दी है। यह राहत संपत्ति की बिक्री पर पूंजी लाभ में कमी करके, आधार वर्ष 1981से 2000 करके तथा परिसंपत्तियों के उचित मूल्‍य को बढ़ाकर दी गई है। सरकार ने और राहत देते हुए आधार वर्ष में परिवर्तन करके दीर्घ अवधि के पूंजी लाभ के लिए मकान अपने पास रखनेकी अवधि तीन वर्ष से दो वर्ष कर दी है।

            रियल स्‍टेट, आवास तथा बुनियादी क्षेत्र में रोजगार सृजन होता है। सरकार ने इन क्षेत्रों को प्रोत्‍साहित करके इस आलोचना को खारिज करने की कोशिश की है कि सरकार रोजगारमुखी विकास की राह पर नहीं चल रही है। छोटे प्रतिष्‍ठानों के लिए कर लाभ का उद्देश्‍य रोजगार सृजन करना है।  मनरेगा के लिए आवंटन रिकॉर्ड 48 हजार करोड़ रूपये बढानेके प्रस्‍ताव से ग्रामीण रोजगार को बढ़ावा मिलेगा। कौशल विकास के लिए आवंटन में 38 फीसदी की वृद्धि करने से केंद्र के 2022 तक दस हजार करोड़ रोजगार सृजन करने की महत्‍वकांक्षी योजना को प्रोत्‍साहन मिलेगा।

            बजट का फोकस लोगों की वहन योग्‍यता बढ़ाने की सरकार की नीति के अनुरूप है। यह कहा जा सकता है कि यूपीए सरकार के दौरान मकानों की कीमतें साधारण लोगों की पहुंच से बाहर चली गई थी, लेकिन जब से एनडीए सरकार सत्‍ता में आई है उसका ध्‍यान संपत्ति के मूल्‍यों के कृत्रिम उछाल पर नियंत्रण रखना है और लोगों के लिए रियायती मकान उपलब्‍ध कराना है। बजट में बैंकों की तरलता में सुधार के लिए अनेक प्रावधान किए गए हैं। आवास ऋण के लिए कर छूट और प्रोत्‍साहन दिया गया है। डिजिटीकरण को प्रोत्‍साहित करने तथा तीन लाख रूपये से अधिक के नकद लेनदेन पर प्रतिबंध लगाने से कम लागत की बैंक जमाओं को बढावा मिलेगा और इस तरह कोष लागत में कमी आयेगी। वास्‍तव में आवास को बढ़ावा देने संबंधी नीतिगत उपायों से मांग आपूर्ति की खाई में कमी आयेगी और मकान रियायती दर पर मिलेंगे। यह बजट वृहद आर्थिक स्थिरता के मोर्चे पर भी अच्‍छा बजट है फिर भी निजी निवेश चक्र को बढ़ावा देनेके लिए उपभोक्‍ता खर्च में तत्‍काल प्रोत्‍साहन देनेकी कमी है। यद्यपि बजट में बुनियादी ढांचेके लिए विवाद समाधान व्‍यवस्‍था को संस्‍थागत बनाया गया है ताकि परियोजनाओं मे तेजी आये लेकिन एकल खिड़की मंजूरी के महत्‍वपूर्ण विषय का समाधान नहीं किया गया है। बजट समग्र रूप से उद्योग जगत की आशा के अनुरूप है। यह मोदी सरकार के रियलस्‍टेट सुधार संकल्‍प को दोहराने वाला बजट है ताकि इसे जनता के लिए वहन योग्‍य बनाया जा सके और साथ ही साथ इसे निवेशकों के लिए आकर्षक संपत्ति वर्ग के रूप में विकसित किया जा सके।

12 feb

समय के साथ कदमताल मिलाता रेडियो 

विशेष लेख

विश्व रेडियो दिवस 13 फरवरी

 

                                              *प्रदीप सरदाना

       आज फिर से रेडियो श्रोताओं के दिलों में अपनी जगह बना चुका है। अपने घर, दफ्तर ही नहीं कार, बस सहित विभिन्न वाहनों में तो लोगों को बड़े चाव से रेडियो सुनते देखा जा  सकता है। साथ ही, मोबाइल हैंड सेट से लेकर दूर दराज के गाँवों में भी रेडियो की दिलकश आवाज़ कानों में गूंजती है] लेकिन कुछ बरस पहले बहुत से लोगों के मन में यह आशंका उत्पन्न होने लगी थी कि रेडियो कहीं इतिहास बनकर न रह जाए। कभी देश-विदेश में अपनी धाक ज़माने और जंगल में मंगल करने वाले रेडियो को लेकर ऐसी आशंका बेवजह नहीं थी। इस आशंका का पहला कारण था विश्व भर में टेलीविजन और उसके विभिन्न किस्म के सैकड़ों चैनल का आना और दूसरा मोबाइल सहित और भी कई माध्यमों से संगीत से लेकर समाचारों तक लगभग हर जगह सीधे पहुँच जाना। ऐसे में भला रेडियो की आवश्यकता और उपयोगिता भला क्या रह जायेगी? ज्यों-ज्यों टीवी की लोकप्रियता और कोने कोने में उसकी पहुँच बनती गयी, यह आशंका प्रबल होने लगी कि रेडियो के दिन अब लदने लगे हैं।

 

         फिर संचार माध्यम के इस शक्तिशाली और खूबसूरत साधन रेडियो के प्रति ऐसी धारणा सिर्फ हमारे देश में ही नहीं दुनिया के और भी कई देशों में बनने लगी थी, लेकिन बहुत से लोग चाहते थे कि रेडियो अतीत बनकर न रह जाए। रेडियो की प्रासंगिकता भी बनी रहे और उसके प्रति लोगों की दीवानगी भी। यही सोच कर स्पेन रेडियो की ओर से संयुक्त राष्ट्र संघ में यह प्रस्ताव आया कि वर्ष में एक दिन विश्व में रेडियो दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए।  स्पेन के इस प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र ने व्यापक स्तर पर एक सर्वेक्षण कराने के साथ बहुत से देशों के प्रसारण संस्थानों के विचार सुने तो 91 प्रतिशत लोगों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया। उसके बाद संयुक्त राष्ट्र ने अपनी 36वीं आम सभा में 13 फरवरी 2011 को विश्व रेडियो दिवस मनाने की घोषणा कर दी। इसके लिए 13 फरवरी की तारीख रखने का विशेष कारण यह था कि संयुक्त राष्ट्र संघ के अपने यू एन रेडियो की स्थापना 13 फरवरी 1946 को हुई थी।

 

      हालांकि प्रथम रेडियो दिवस जब 13 फरवरी 2012 को मनाया गया तब इसकी कोई थीम नहीं थी, लेकिन सन 2014 से इसके लिए एक विशेष थीम भी रखी जाने लगी है, जिससे प्रति वर्ष कोई नया सन्देश देने के साथ अधिक से अधिक लोगों को रेडियो से जोड़ा जा सके। पहली बार जो थीम रखी गयी वह थी-‘लिंग समानता और महिला सशक्तिकरण’, फिर 2015 में ‘युवा और रेडियो’ को थीम का विषय चुना गया तथा 2016 में ‘आपातकाल और आपदा’ विषय को थीम बनाया गया। इस वर्ष जो थीम है वह है-‘रेडियो आप ही हैं’। इस थीम को रखने का अभिप्राय एक बड़े वर्ग की रेडियो के साथ रेडियो प्रसारण की नीतियों और योजनाओं में भागीदारी बनाना है।

 

भारत में रेडियो

 

     भारत में रेडियो प्रसारण की पहली शुरुआत जून 1923 रेडियो क्लब मुंबई द्वारा हुई थी लेकिन इंडियन ब्रॉडकास्ट कंपनी के तहत देश के पहले रेडियो स्टेशन के रूप में बॉम्बे स्टेशन तब अस्तित्व में आया जब 23 जुलाई 1927 को वाइसराय लार्ड इरविन ने इसका उद्घाटन किया, लेकिन 8 जून 1936 को इंडियन स्टेट ब्राडकास्टिंग सर्विस को ‘ऑल  इंडिया रेडियो’ का नाम दे दिया गया जिस नाम से यह आज तक प्रचलित है।

 

      सन 1947 में देश के विभाजन के समय भारत में कुल 9 रेडियो स्टेशन थे, जिनमें पेशावर, लाहौर और ढाका तीन पाकिस्तान में चले गए, भारत में दिल्ली, बॉम्बे, कलकत्ता, मद्रास, तिरुचिरापल्ली और लखनऊ के 6 केंद्र रह गए, लेकिन आज देश में रेडियो के कुल 420  प्रसारण केंद्र हैं और आज देश की 99.20 प्रतिशत जनसँख्या तक आल इंडिया रेडियो का प्रसारण पहुँच रहा है, जो इस बात का प्रमाण है कि इन पिछले करीब 70 बरसों में रेडियो का विकास कितनी तीव्र गति से हुआ है।

 

        यूँ सन 1990 के बाद जब देश में दूरदर्शन के साथ कई समाचार और मनोरंजन चैनल्स ने अपने पाँव ज़माने तेज कर लिए तो रेडियो की लोकप्रियता धीरे धीरे कम होने लगी, तभी लगा कि यही हाल रहा तो रेडियो को लोग भूल ही जायेंगे। यह रेडियो के लिए निश्चय ही बड़ी चुनौती का समय था। एक ऐसी चुनौती, जहाँ करो या मरो जैसी परिस्थितियां बन गयीं थीं। अच्छी बात यह है कि रेडियो ने इस बात को समझते हुए एक साथ कई बड़े कदम उठाने आरम्भ कर दिए जिससे आज रेडियो का अस्तित्व के साथ इसकी अहमियत और लोकप्रियता भी बरक़रार है। समय के साथ कदम ताल मिलाते हुए रेडियो ने जहाँ अपने कार्यक्रमों में कई व्यापक बदलाव किये वहां देश में कई निजी एफ एम चैनल्स के साथ ऑल इंडिया रेडियो के अपने एफ एम गोल्ड और रेनबो जैसे आधुनिक चैनल्स भी शुरू कर दिये गए। इन एफ एम चैनल्स को जहाँ युवा पीढ़ी ने बहुत पसंद किया वहीं पुरानी पीढ़ी के लिए भी इन चैनल्स में उनके पसंद और महत्‍व के कई प्रसारण रखे गए।

 

     ऑल इंडिया रेडियो, दिल्ली केंद्र में उपमहानिदेशक राजीव कुमार शुक्ल बताते हैं- “रेडियो की उपयोगिता और इसका महत्व आज भी बरकरार है. प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ कार्यक्रम के बाद तो रेडियो की लोकप्रियता में एक साथ काफी बढ़ोतरी हुई है। रेडियो का आज भी कोई मुकाबला नहीं है, क्योंकि हमारे यहाँ रेडियो पर देश के हर क्षेत्र, हर वर्ग और हर भाषा के कार्यक्रम प्रसारण होते हैं। आल इंडिया रेडियो के प्रसारण देश के 92 प्रतिशत क्षेत्र तक पहुँच रहे हैं। फिर हम विभिन्न किस्म के कार्यक्रम प्रसारित करते हैं जिससे सूचना, शिक्षा और मनोरंजन सभी कुछ है। बच्चे हों, या युवा और महिलाएं, दंपत्ति हों या बुजुर्ग सभी के लिए रेडियो पर इतना कुछ है कि श्रोताओं को और कहीं जाने की जरुरत ही नहीं।

 

     श्री शुक्ल यह भी कहते हैं- “रेडियो लोक प्रसारक होने के कारण समाचार और सामायिक विषयों पर वार्ता के साथ गीत, संगीत, स्वास्थ्य, शिक्षा, करियर, खेल, साहित्य, सिनेमा और मनोरंजन सहित सभी विषयों पर विभिन्न कार्यक्रम प्रसारित करता है। साथ ही, रेडियो ने अपने नाटकों रूपकों की गौरवशाली परंपरा को भी रखा है। हमारे एम गोल्ड और रेनबो के साथ इन्द्रप्रस्थ और राजधानी चैनल्स के कितने ही कार्यक्रम काफी लोकप्रिय हैं, जिनमें युववाणी के महफ़िल जैसे कार्यक्रमों से लेकर शाम मस्तानी, गा मेरे मन गा, वो जो एक फिल्म थी और बहारें हमको ढूंढेंगी तक बहुत से कार्यक्रम हैं, जिनमें गुड मॉर्निंग इंडिया, हमकदम, दिल्लीनामा, संदेश टू सोल्जर, गाने सुहाने, महफिले कव्वाली, कलाकार बेमिसाल और दिल ही तो है जैसे कार्यक्रम भी हैं।

 

आपदा समय का साथी भी है रेडियो

 

     रेडियो आपदा समय में भी एक अच्छा और मदद्गार साथी बन सकता है, यह बात भी बताते हैं उपमहानिदेशक राजीव कुमार शुक्ल। वह कहते हैं कि आपदा के समय जैसे भूकंप, सुनामी या बाढ़ आदि में भी रेडियो काफी मददगार रहता है। ऐसे समय में जब बिजली आदि भी चली जाती है तो बैटरी चलित रेडियो के माध्यम से मुसीबत में फंसे लोग मार्गदर्शन के साथ सही सूचनाएं भी प्राप्त कर सकते हैं। सभी लोगों को शिक्षित करने के लिए अपने यहाँ आपदा प्रबंध पर नियमित रूप से हम विशेष कार्यक्रमों का प्रसारण भी करते हैं।”

 

विदेश प्रसारण सेवा

 

     इधर, इन पिछले बरसों में आल इंडिया रेडियो की विदेश प्रसारण सेवा ने भी लगभग पूरी दुनिया को अपने साथ जोड़ते हुए अपनी सफलता की उल्लेखनीय कहानी लिखी है। हालांकि विदेश प्रसारण के अधिकांश कार्यक्रमों का प्रसारण भारत में नहीं होता इसलिए देश का एक बड़ा वर्ग इस ऐतिहासिक प्रसारण सेवा से कुछ अनभिज्ञ सा है, लेकिन विश्व में बसे अनेकों अप्रवासी भारतीयों के लिए यह घर से दूर एक घर जैसा अहसास है, साथ ही उन अन्य विदेशी श्रोताओं के लिए तो यह सेवा एक वरदान जैसी है जो भारत को अधिक से अधिक जानने के लिए लगातार उत्सुक रहते हैं।

 

       भारत में विदेश प्रसारण सेवा का आरम्भ सन 1939 के उन दिनों में ही हो गया था जब द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था। इससे पहले सन 1938 में बीबीसी ने पहली विदेश प्रसारण सेवा अरबी भाषा में शुरू की थी। उस दौर में हिन्दुस्तान पर इंग्लैंड का राज था। उधर विश्व युद्ध के दौरान जर्मन रेडियो भारत और सहयोगी सेनाओं के विरुद्ध प्रचार कर रहा था। उस प्रचार के खंडन-प्रतिकार के लिए ऑल इंडिया रेडियो की भी विदेश प्रसारण सेवा शुरू कर दी गयी। इस सेवा का प्रथम प्रसारण 1 अक्तूबर 1939 को पश्तो भाषा में आरम्भ हुआ। पश्तो में इसलिए क्योंकि जर्मन रेडियो का यह प्रचार अफगानिस्तान में अधिक हो रहा था इसीलिए हमारे यहाँ से भी उसका जवाब अफगानिस्तान की भाषा में दिया गया.कुछ दिन बाद वहां की एक और भाषा दारी में भी यह सेवा शुरू की गयी. इस सेवा का उद्देश्य तब विरोधी देशों के गठबंधन दलों को प्रत्युत्तर देना ही था. इसलिए जैसे जैसे यह युद्ध जहां जहां फैलता गया वैसे वैसे ऑल इंडिया रेडियो उन उन भाषाओँ में भी अपना विदेश प्रसारण आरम्भ करता गया. इससे सन 1945 यानी द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक विदेश प्रसारण सेवा 42 भाषाओँ में पहुँच गयी. जिनमें चाइनीज,थाई,बलूची,बर्मीज जैसी भाषाएँ भी थीं.

आज ऑल इंडिया रेडियो का यह विदेश प्रसारण विभाग विश्व के 139 देशों में अपना प्रसारण कर रहा है. जिसमें 27 भाषाओँ में प्रतिदिन 72 घंटे का प्रसारण होता है.इन 27 भाषाओँ में 12 भारतीय भाषाएं हैं और 15 विदेशी भाषा. विदेश प्रसारण सेवा में हिंदी सेवा भी काफी अहम् है.ऑल इंडिया रेडियो ने विदेशों के लिए अपना हिंदी प्रसारण स्वतंत्रता पूर्व 1944 में ही आरम्भ कर दिया था.आज इसके 5 ट्रांसमिशंस पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया,अफ्रीका,पश्चिम यूरोप,गल्फ और ओसीनिया देशों के लिए प्रतिदिन 8 घंटे का प्रसारण कर रहे हैं.

 

विदेश प्रसारण सेवा की एक मुख्य सेवा उर्दू प्रसारण सेवा है.जहां हिंदी और इंग्लिश प्रसारण प्रतिदिन करीब 8 घंटे होता है वहां जून 2006 से उर्दू सेवा का प्रसारण पूरे 24 घंटे होने लगा है.साथ ही विदेश प्रसारण सेवा की उर्दू सेवा ही ऐसी है जिसके प्रसारण को भारत में भी सुना जा सकता है.

 

आल इंडिया रेडियो, विदेश प्रसारण सेवा के केंद्र निदेशक अम्लान्ज्योती मजूमदार बताते हैं- ‘”हमने विदेश प्रसारण सेवा के लिए नयी तकनीक से हाथ मिला लिया है और अब हम जहाँ एक ओर प्रसारण तकनीक में बदलाव कर रहे हैं.वहां अपने सभी भाषाओँ के प्रसारण को मल्टी मीडिया वेब साईट से जोड़ते जा रहे हैं. इनमें हमने रेडियो ऑन डिमांड,वीडियो,पिक्चर,लाइव स्ट्रीमिंग जैसे कई फीचर भी इसमें शामिल कर दिए हैं. इससे श्रोता अब प्रसारित हो चुके कार्यक्रमों को उनके प्रसारण के बाद भी सुन सकेंगे.इसके अतिरिक्त इस सेवा को विंडोज,एंड्राइड ओर आईओएस पर अपनी एप के साथ भी मौजूदगी दर्ज करायी है.साथ ही मार्च 2017 तक सभी 27 भाषाएँ वेब साइट्स से लिंक होकर डिजिटल हो जायेंगी. इससे उन देशों में भी इस प्रसारण सेवा की पहुँच हो जाएगी जहाँ इसके कार्यक्रमों का प्रसारण नहीं भी हो रहा.

 

13 feb

रेडियो आप हैं 

विश् रेडियो दिवस पर विशेष

                                                              

 

 

 *एफ. शहरयार

 

जब नील नदी की लहरों की कलकल सी गुनगुनाती ध्‍वनि ‘’मुझे छूती है, तुम्‍हें छूती है’’ तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे मधुर स्‍वरों में कोई कैरॉल गा रहा हो, ऐसे ही रेडियो की ध्‍वनि श्रोताओं के मन को स्‍पर्श करती है। दुर्गम भौगोलिक विभाजनों की सीमा से परे रेडियो अनगिनत ज़िन्‍दगियों को छूता है और इसके बावजूद भी परदे के पीछे बना रहता है। एक ऐसे अच्‍छे मित्र की तरह जो बुरे दिनों में सहायता के लिए हमेशा तत्‍पर रहता है लेकिन उसका प्रतिफल कभी नहीं चाहता। जैसे प्राकृतिक आपदाओं के आने पर दुनिया बार-बार इसे महसूस करती है। जब प्रकृति के इस रोष का सामना करने में सभी नये मीडिया माध्‍यम असफल हो जाते हैं तो ऐसे में एकमात्र रेडियो ही है जो लोगों से, ज़िन्‍दगियों से और आशाओं से जोड़ता है।

 रेडियो के लिए ये गौरव का विषय था जब संयुक्‍त राष्‍ट्र ने, रेडियो कैसे हमारे जीवन को एक नया आयाम देने में मदद कर सकता है, इस परिकल्‍पना के साथ वर्ष 2011 में 13 फरवरी को विश्‍व रेडियो दिवस मनाने की घोषणा की।

 यूनेस्‍को वेबसाइट से उद्धरण के अनुसार, ‘’अपने श्रोताओं को सुनते हुए और उनकी जरूरतों पर प्रतिक्रिया देने के लिए, रेडियो हम सबके सामने आने वाली चुनौतियों के आवश्‍यक समाधान की दिशा में विचारों और आवाज़ों की विविधता प्रदान करता है।‘’

 यह उन विकासशील समाजों के लिए सर्वाधिक प्रासंगिक है जो नवीनतम सूचना प्रौद्योगिकियों की पहुंच से वं‍ि‍चत हैं। वैश्विक स्‍तर पर अत्‍याधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी का बदलाव ग़रीबों की तुलना में अमीर राष्‍ट्रों को अनुचित लाभ पहुंचायेगा, इससे महसूस होता है कि तीसरी दुनिया का आधार रेडियो ही है। रेडियो का प्रसारण एकाकीपन और निरक्षरता की बाधाओं को पार करता है और यह प्रसारण एवं आदान करने का सबसे सस्‍ता इलैक्‍ट्रॉनिक माध्‍यम भी है। हालांकि विश्‍व रेडियो दिवस के शुभारंभ को मात्र छह वर्ष ही हुए हैं, लेकिन 1927 में बॉम्‍बे में इंडियन ब्रॉडकॉस्टिंग कंपनी के पहले रेडियो स्टेशन की स्थापना के साथ भारत में रेडियो की अपनी एक लंबी कहानी है, जो वास्‍तव में 90 वर्ष पुरानी है।

 रेडियो भारत में 1.25 अरब की आबादी के साथ जातीय-सामाजिक-भाषाई विविधता, साक्षरता स्‍तर, आर्थिक असमानता, लिंग असमानता, संसाधनों के वितरण में असमानता, ग्रामीण-शहरी अंतर और डिजिटल अंतर जैसी सर्वाधिक असंभव चुनौतियों का सामना करता है।

लोक सेवा रेडियो प्रसारक के रूप में, ऑल इंडिया रेडियो (आकाशवाणी) ने एक प्रज्ञता समाज/ज्ञानवान समुदाय के विकास सहित वैज्ञानिक विकास, महिलाओं के सशक्तीकरण, वंचितों को लाभ, अभिभावकता और कृषि नवाचार का प्रचार, ग्रामीण उत्‍थान, जन सांख्यिकीय लाभांश के लाभों को प्राप्‍त करने के लिए कौशल विकास, भारत की सांस्‍कृतिक, भाषीय और जातीय विविधता को मज़बूत बनाने और संरक्षण देने के साथ-साथ भारत की लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष परंपराओं एवं मूल्‍यों के विकास पर पूरी तरह से ध्‍यान केंद्रित करते हुए इस चुनौती का सराहनीय रूप से सामना करते हुए आगे कदम बढ़ाया है।

यही कारण है कि प्रख्‍यात कृषि वैज्ञानिक और हरित क्रांति के जनक एम.एस. स्‍वामीनाथन ने रेडियो के विकास की पहल की सराहना इन शब्‍दों में की है:

‘’ यहां तक की वे लोग जिन्‍हें प्रौद्योगिकीय परिवर्तन से बाहर रखा गया उन्‍हें इसमें इसलिए शामिल किया जा सका क्‍योंकि उन्‍होंने रेडियो के माध्‍यम से नई प्रौद्योगिकियों के बारे में सुना। वास्‍तव में मुझे 1967-68 की बात याद है जब उत्‍तर प्रदेश और बिहार के बहुत से किसानों ने चावल, गेंहू और अन्‍य फसलों की नई किस्‍मों का शुभारंभ किया जिसके बारे में उन्‍होंने रेडियो पर सुना था। यही कारण है कि मैं ऑल इंडिया रेडियो को हरित क्रांति के गुमनाम नायकों में से एक के तौर पर अपना सम्‍मान देना चाहूंगा।‘’

दुनिया के सबसे बड़े तेज़ी से बदलते मध्‍यम वर्ग समाज के लिए रेडियो के क्‍या मायने हैं?  नवीन रेडियो में इस खंड और परिवेश का निर्माण महसूस होता है।

स्मार्ट शहरों की अवधारणा के अनुरूप वैश्विक मध्यम वर्ग के नागरिकों के इनमें बसने के लिए तत्‍कालिक आवश्‍यकताएं क्‍या हैं, इनमें सर्वथा असंगतता से बचना, सर्वश्रेष्‍ठ राष्‍ट्रीय मूल्‍यों और संस्‍कृति के साथ आधुनिकता का परिवेश, (सिर्फ कुछ चयनित वर्ग के लिए) न होकर सभी के लिए समग्रता सुनिश्चित करना शामिल है और यही विशेषताएं राष्‍ट्रीय लोक प्रसारक, आकाशवाणी की भूमिका और महत्‍व के मामले में भी रेखांकित होती हैं। अपने आदर्श वाक्‍य  (बहुजन हिताय बहुजन सुखाय) और अपनी परिपाटी एवं नेटवर्कसे सुसज्जित, आकाशवाणी ही संभवत: एकमात्र ऐसा राष्‍ट्रीय मीडिया संस्‍थान है जिसने समाज के असंख्‍य वर्गों को संबोधित करने की दिशा में एक निष्‍पक्ष और संवेदनशील माध्‍यम के रूप में भूमिका निभाई है।

 भारत के दिग्‍भ्रमित और पथ से भटके युवाओं को सही दिशा दिखाने के मामले में आकाशवाणी ही एकमात्र ऐसा माध्‍यम रहा है जिसने युवाओं और भाषाई जुड़ाव के लिए वैचारिक संपन्‍नता का मंच प्रदान किया। देश के किसी भी शहर/ग्रामीण क्षेत्र में किए गए एक यादृच्छिक ऑडियो सर्वेक्षण में यह उजागर होगा कि भाषाई दिवालियापन के रूप में हमारे युवाओं को आंशिक रूप से इसमें शामिल किया जा रहा है। सार्वजनिक बोलचाल की भाषा हमारे निजी विद्यालयों के पाठ्यक्रमों का हिस्‍सा नहीं है। आकाशवाणी में अपने विशाल एएम नेटवर्क के साथ उन्‍हें आत्‍मविकास की मुख्‍यधारा में वापस लाने और इस प्रकार से सामूहिक रूप से राष्‍ट्र निर्माण में शामिल करने की क्षमता है।

आलोचकों का यह तर्क हो सकता है कि इस प्रकार के प्रयास से बहुत कम दूरी को धीरे- धीरे ही तय किया जा सकेगा, लेकिन वे इस बात को समझना नहीं चाहते कि राष्‍ट्र निर्माण का कार्य रेडियो पर विज्ञापन या उदघोषकों का कोई कार्यक्रम नहीं है जिसमें येन केन प्रकारेण दो या तीन कमरों के मकानों की बिक्री के प्रयास के लिये किया जाता है अपितु यह सभी घरों के भीतर मानवीय घटकों के सृजन और संरक्षण का कार्य ह

लोक सेवा रेडियो सर्वाधिक लोकतांत्रिक माध्‍यम से जानकारी का प्रसार करता है। यह आम जन की भाषा बोलता है और अंतिम व्‍यक्ति तक पहुंचता है। रेडियो किसी भी क्षेत्र को न छोड़ते हुए अपने विभिन्‍न स्‍वरूपों में नाटकों, समाचारों, टॉक शो, संगीत, रनिंग कमेंट्री और विशेष श्रोताओं के लिए विशेष कार्यक्रमों का प्रसारण करता है।

 रेडियो कल्‍पना का संसार है। रेडियो नेत्रहीनों के लिए थियेटर है। रेडियो अंतरंग कथा वाचन का एक माध्‍यम है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री का नागरिकों से अपने मन की बात कहने के लिए अन्‍य माध्‍यमों की अपेक्षा आकाशवाणी को चुना जाना एक आश्‍चर्य से कम नहीं है। किसी ने इस पर चुटकी भी ली है कि जब वे रेडियो पर आते हैं, तो सब लोग सुनने श्रोता उन्‍हें सुनने को उत्‍सुक हो उठते हैं! इससे बेहतर हमारे पास कोई उद्धरण नहीं हो सकता, जब प्रधानमंत्री स्‍वयं कहते हैं :‘जब हम उन सवालों को छूते हैं (सवाल जो कि हमारे दिलों को छूते हैं) तो हम आम आदमी तक पहुंचने में सक्षम हो जाएंगे।’ इसमें कोई आश्‍चर्य नहीं कि ‘मन की बात’ को त्‍वरित सफलता मिली, और यह यथार्थता के साथ एक विस्‍तृत घरेलू और वैश्विक दायरे तक पहुंचने का माध्‍यम भी बन चुका है।

आकाशवाणी देशभर में फैले अपने 422 स्‍टेशनों के साथ, यकीनन दुनिया के सबसे बड़े रेडियो नेटवर्कों में से एक है, जो आबादी के विभिन्‍न हिस्‍सों की सेवा करता है। देश के प्रधानमंत्री और लोगों के बीच विचारों के आदान-प्रदान के लिए आकाशवाणी से ज्‍यादा सक्षम माध्‍यम आपको नहीं मिल सकता। निश्‍चय ही, सार्वजनिक सेवा प्रसारण में मन की बात सभी के लिए सर्वश्रेष्‍ठ मिसाल बन गया है। 

रेडियो अनवरत चलने वाला एक गीत है, जो समय के साथ अपनी ताल बदलता है। वह 21वीं सदी के परिवर्तनों के अनुरूप अपने को ढाल कर परस्‍पर संवाद और भागीदारी के नए तरीकों को पेश कर रहा है। और ज्‍यादा-से-ज्‍यादा परस्‍पर संवादी बन रहा है। यह बखूबी बयान करता है कि विश्‍व रेडियो दिवस 2017 का विषय ‘’रेडियो आप है!’’ रेडियो प्रसारण की नीति और योजना में दर्शकों और समुदायों की विशाल भागीदारी के लिए आह्वान’’ क्‍यों है

यूनेस्‍को का उद्धरण एक बार पुन: देते हुए, ‘जहां सोशल मीडिया श्रोताओं में बिखराव का कार्य कर रहा हैं, ऐसे में रेडियो समुदायों को एकसूत्र में पिरोने और बदलाव के लिए सकारात्मक चर्चा को आगे बढ़ाने की दिशा में विशिष्‍ट रूप से कार्यरत है।

16 feb

गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस

खरीदारी व्यवस्थित हुई

 

 

*बिनय कुमार और ** एस राधा चौहान

 

सार्वजनिक खरीदारी सरकार की गतिविधियों का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है। सार्वजनिक खरीदारी में सुधार लाना वर्तमान सरकार की शीर्ष प्राथमिकताओं में से एक है। गवर्नेमेंट ई-मार्केटप्लेस (जीईएम - gem.gov.in) सरकार का एक बहुत साहसिक कदम है, जिसका उद्देश्य उन तरीकों में बदलाव लाना है जिनमें सरकारी मंत्रालयों और विभागोंसार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और केन्द्र सरकार के अन्य शीर्ष स्वायत्त निकायों द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं की खरीदारी की जाती है।

 

पृष्ठभूमि

गवर्नेमेंट ई-मार्केटप्लेस की उत्पत्ति प्रधानमंत्री द्वारा गठित सचिवों के दो समूहों की सिफारिशों के आधार पर की गयी है। सचिवों ने महानिदेशालय आपूर्ति एवं निपटान (डीजीएस एंड डी) में सुधार लाने के अलावा सरकार / सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा खरीदी जाने वाली या बेचीं वाली विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं के लिए एक समर्पित ई-बाजार की स्थापना की सिफारिश की थी। इसके बाद वित्त मंत्री ने वित्तीय वर्ष 2016-17 के अपने बजट भाषण में विभिन्न मंत्रालयों और सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीदी जाने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं में सहायता प्रदान करने के लिए प्रौद्योगिकी चालित मंच की स्थापना करने की योजना बनाई थी।

 

डीजीएसएंडडी ने इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तकनीकी राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस प्रभाग की तकनीकी मदद से उत्पादों और सेवाओं, दोनों की खरीदारी के लिए जीईएम पोर्टल विकसित किया है। इस पोर्टल का शुभारंभ वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री द्वारा 9 अगस्त, 2016 को किया गया था। जीईएम पर खरीदारी को सरकारी नियमों में आवश्यक परिवर्तन द्वारा सामान्य वित्तीय नियमावली के द्वारा अधिकृत किया गया है। वर्तमान में जीईएम के पीओसी पोर्टल पर 150 उत्पाद श्रेणियों में 7400 उत्पादों और परिवहन सेवाएं किराएं पर लेने की सुविधा उपलब्ध हैं। जीईएम के माध्यम से 140 करोड़ रुपये से अधिक के लेन-देन के मामले पहले से ही प्रोसेस किए जा चुके हैं।  

जीईएम पूरी तरह से कागज रहितकैशलेस और प्रणाली संचालित ई-मार्केटप्लेस है जो न्यूनतम मानव इंटरफेस के साथ आम उपयोग की वस्तुओं और सेवाओं की खरीदारी में सक्षम बनाता है।

 

जीईएम पारदर्शिता लाता है

जीईएम विक्रेता पंजीकरणखरीद आदि करने और भुगतान प्रोसेसिंग में मानव इंटरफेस को समाप्त करता है। एक खुला मंच होने के कारण जीईएम सरकार के साथ व्यापार की इच्छा रखने वाले वास्तविक आपूर्तिकर्ताओं के लिए कोई प्रवेश बाधा पैदा नहीं करता है। हर कदम पर खरीदार उसके संगठन के प्रमुख, भुगतान प्राधिकारियों के साथ-साथ विक्रेताओं को ई-मेल अधिसूचनाएं भेजी जाती हैं। पीएफएमएस और स्टेट बैंक ऑफ मल्टी ऑप्शन प्रणाली के साथ एकीकरण के माध्यम से जीईएम पर ऑनलाइन, कैशलेस और समयबद्ध भुगतान किया जाता है। रेलवेरक्षाप्रमुख सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और राज्य सरकारों को भुगतान प्रणाली के लिए वेब सेवाओं के एकीकरण का विस्तार किया जा रहा है। विक्रेताओं को निर्बाध प्रक्रियाओं और ऑनलाइन समयबद्ध भुगतान होने से उनमें आत्मविश्वास पैदा हुआ है। इस कार्य की जिम्मेदारी व्यय विभाग को सौंपी गयी है। इससे विक्रेताओं की समय पर भुगतान प्राप्त करने के लिए अधिकारियों को मनाने में आने वाली 'प्रशासनिकलागत कम हुई है।

 

 जीईएम क्षमता को बढ़ाता है

जीईएम पर सीधी खरीदारी मिनटों में की जा सकती है क्योंकि पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन है और उचित मूल्यों का पता लगाने के लिए ऑनलाइन उपकरणों के साथ पूरी तरह एकीकृत है। अधिक कीमत की खरीदारी के लिए बोली/ रिवर्स नीलामी (आरए) सुविधा सरकारी क्षेत्र में प्रचलित ई-खरीदारी प्रणालियों की तुलना में बहुत अधिक पारदर्शी और कुशल है। किसी बोली या आरए के सृजन के लिए खरीदार को अपने तकनीकी विनिर्देश तैयार करने की जरूरत नहीं है क्योंकि उन्हें जीईएम पर पहले ही मानकीकृत कर दिया गया है। बोली/ आरए को मिनटों में तैयार किया जा सकता है और इऩ्हें न्यूनतम 7 दिनों की अवधि में अंतिम रूप दिया जा सकता है। सभी पात्र आपूर्तिकर्ताओं को ई-मेल और एसएमएस के माध्यम से अधिसूचित किया जाता है। जीईएम पर ऑनलाइन पंजीकरण कराने के बाद नए आपूर्तिकर्ताओं को भी अधिसूचित किया जाता है और उन्हें प्रणाली द्वारा 'पात्रआपूर्तिकर्ता के रूप में माना जाता है। इसलिए जीईएम बोली/ आरए प्रतियोगितानिष्पक्षता और गति तथा दक्षता सुनिश्चित करके उचित मूल्य का पता लगाने में मदद करता है। दरों की तर्कसंगतता की शीर्ष ई-कॉमर्स पोर्टल पर बाजार मूल्यों के साथ ऑनलाइन तुलना करके पुष्टि की जा सकती है।

बहुत जल्द ही जीईएम अन्य सार्वजनिक खरीदारी पोर्टलों से जानकारी हासिल करना शुरू कर देगा जिससे यह सुनिश्चित हो जाएगा कि किसी अन्य सरकारी एजेंसी ने उसी या किसी अलग विक्रेता से वही वस्तु कम मूल्य में तो नहीं खरीदी है। मूल्यों की तर्कसंगतता वस्तु एवं सेवा कर नेटवर्क (जीएसटीएन) और भारतीय सीमा शुल्क और केंद्रीय उत्पाद शुल्क इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स / इलेक्ट्रॉनिक डाटा इंटरचेंज गेटवे (आईसीईजीएटीई) के एकीकरण के माध्यम से और मजबूत हो जाएगी। जिससे खरीदार को किसी फैक्ट्री गेट पर मौजूद किसी वस्तु के मूल्य या उसे देश में आयात करने पर आने वाले मूल्य का पता लगाने में मदद मिलेगी। इससे जीईएम सरकारी संगठनों के लिए योजना बनाने और खरीदारी करने के लिए एक बहुत सशक्त औजार बन जाएगा।

 जीईएम  बहुत सुरक्षित है

जीईएम पूरी तरह से एक सुरक्षित मंच है और इसके सभी दस्तावेजों पर खरीदारों और विक्रेताओं द्वारा विभिन्न चरणों में ई-हस्तक्षर किए जाते हैं। आपूर्तिकर्ताओं के पूर्ववृत्तों का एमसीए 21,  आधार और पैन डेटाबेस के माध्यम से ऑनलाइन सत्यापन होता है। इसके अलावा सेबी पैनलबद्ध क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों का भी आपूर्तिकर्ताओं की तृतीय पक्ष का मूल्यांकन कराने के लिए उपयोग किया जाता है। इससे जीईएम पर व्यापार करने के इच्छुक आपूर्तिकर्ताओं की सत्यत्ता के बारे में तत्परता और मजबूत होगी। जीईएम पर अधिक मूल्य की बोलियों / आरए के लिए ई-बैंक गारंटी भी शुरू की जा रही है।

जीईएम मौजूदा प्रणाली की तुलना में कहीं बेहतर प्रणाली है। मौजूदा प्रणाली में आपूर्तिकर्ताओं के अच्छे आचरण की गारंटी के लिए वित्तीय साधनों (भारी खरीदारी के लिए निविदाओं के मामले में बयाना जमा राशि) पर अधिक निर्भर रहना पड़ता है। मौजूदा प्रणाली में उन आपूर्तिकर्ताओं के पूर्ववृत्त की कम मूल्य की खरीदारी (1 लाख रुपये तक) के लिए जांच नहीं की जाती जिनका सरकारी संगठनों में भारी संचय मूल्य है। चाहे खरीदारी की कीमत कितनी भी कम या ज्यादा हो जीईएम सभी वेंडरों का शत-प्रतिशत ऑनलाइन सत्यापन करता है।

मेक इन इंडिया की सहायता करने की सामर्थ्य

जीईएम तरजीही बाजार पहुंच (पीएमए) अनुवर्ती पर मौजूद वस्तुओं और लघु उद्योगों (एसएसआई) द्वारा विनिर्मित वस्तुओं का चयन कर लेता है। इससे सरकारी खरीददार मेक इन इंडिया और लघु उद्योग द्वारा निर्मित वस्तुओं की आसानी से खरीदारी करने में समर्थ हो जाते हैं। आसानी से सुलभ एमआईएस, प्रशासकों और नीति निर्माताओं को पीएमए और एसएसआई आउटसोर्सिंग पर सरकारी नियमों को प्रभावी रूप से लागू करने में समर्थ बनाता है। जीईएम की शुरूआत के बाद यह पता चला है कि अनेक जानेमाने कंप्यूटर निर्माताओं ने जीईएम पर पीएमए अनुरूप उत्पाद रखे हैं।

सरकार की बचत

निविदा/दर अनुबंध और सीधी खरीदारी दरों की तुलना में जीईएम पोर्टल के उपयोग में पारदर्शितादक्षता और सरलता के कारण जीईएम पर मूल्यों में काफी कमी हुई है। जीईएम पर औसत मूल्य कम से कम 15-20 प्रतिशत कम हैं और कुछ मामलों में यह मूल्य 56 प्रतिशत तक कम पाए गए हैं। विनिर्देशों के मानकीकरण और जीईएम वस्तुओं के मानकीकरण के द्वारा मूल्यों में और कमी आने से मांग एकत्रीकरण और अधिक बढ़ने का अनुमान है। सामान्य उपयोग की अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं के लिए मांग एकत्रीकरण के परिणामस्वरूप 40,000 करोड़ रुपये की सालाना वार्षिक बचत होने का अनुमान है।

तार्किक निष्कर्ष पर पहुंचने पर जीईएम श्रेष्ठ वैश्विक प्रथाओं के साथ निश्चित रूप से एक राष्ट्रीय सार्वजनिक खरीदारी पोर्टल के रूप में उभरेगा। अधिकांश ओईसीडी देश, संयुक्त राज्य अमेरिकादक्षिण कोरियाब्रिटेनसिंगापुर आदि में एक ही एनपीपीपी है जिसके परिणामस्वरूप इऩ देशों में घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देने के साथ-साथ सार्वजनिक खरीदारी में अरबों डॉलर की वार्षिक बचत होती है।  

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20 feb

विश्‍व सामाजिक न्‍याय दिवस के अवसर पर भारत निष्‍पक्षता सुनिश्चित करने के लिए दृढ़ संकल्‍प

 

*शिवाजी सरकार

मार्टिन लूथर किंग ने कहा था कि जहां भी अन्‍याय होता है वहां न्‍याय को खतरा है। यह केवल वैधानिक न्‍याय के बारे में ही नहीं है। विवेकपूर्ण समाज से समावेशी प्रणाली के लिए रंग, नस्‍ल, वर्ग, जाति जैसी किसी भी प्रकार की सामाजिक बाधा से परे न्‍याय सुनिश्चित करने की उम्‍मीद की जाती है, ताकि कोई भी व्‍यक्ति न्‍याय से वंचित न हो।  

किसी को भी न्‍याय से वंचित रखना भी सामाजिक न्‍याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। समावेशी समाज से समान अवसर, निष्‍पक्ष कार्य और किसी को भी वंचित न रखना सुनिश्चित करने की उम्‍मीद की जाती है।

यह विश्‍व सामाजिक न्‍याय दिवस (डब्‍ल्‍यूडीएसजे) में अंतरनिहित है। सामाजिक विकास के लिए विश्‍व सम्‍मेलन के उद्देश्‍यों और लक्ष्‍यों के अनुरूप संयुक्‍त राष्‍ट्र आम सभा में प्रतिवर्ष 20, फरवरी को डब्‍ल्‍यूडीएसजे के तौर पर मनाये जाने का फैसला किया गया था। संयुक्‍त राष्‍ट्र ने 26 नवम्‍बर, 2007 को इस निर्णय को मंजूरी दे दी और 2009 से यह दिवस मनाया जाने लगा।

डब्‍ल्‍यूडीएसजे मनाने से गरीबी उन्‍मूलन, पूर्ण रोजगार और समुचित कार्य को बढ़ावा, लैंगिक समानता, सामाजिक कल्‍याण तक पहुंच और सभी के लिए न्‍याय के क्षेत्र में अंतर्राष्‍ट्रीय समुदाय के प्रयासों को सहायता मिलेगी।

यह दिवस गरीबी, बहिष्‍कार और बेरोजगारी जैसे मुद्दों से निपटने के प्रयासों को बढ़ावा देने की आवश्‍यकता को मान्‍यता देने का दिन होता है। हमने पाया कि नरेन्‍द्र मोदी सरकार इन सामाजिक बुराइयों को जड़ से समाप्‍त करने के लिए सक्रियतापूर्वक कई कार्य कर रही है। हाल  ही में वेतन भुगतान अधिनियम में संशोधन किया गया है, जिससे चेक द्वारा या बैंक खाते में सीधे वेतन ड़ालने के जरिये भुगतान सुनिश्चित किया जाता है। श्रमिकों के लिए तय किये गये वेतन का पूरा भुगतान सुनिश्चित करना इसका प्रत्‍यक्ष कारण बताया गया है।

संयुक्‍त राष्‍ट्र का कहना है कि देशों में और राष्‍ट्रों के बीच शांतिपूर्ण और समृद्ध सह अस्तित्‍व के लिए सामाजिक न्‍याय निहित सिद्धांत है। ‘लैंगिक समानता या स्‍वदेशी लोगों और प्रवासियों के अधिकारों को बढ़ावा देते समय हम सामाजिक न्‍याय के सिद्धांतों पर कायम रहते हैं। लिंग, आयु, जाति, नस्‍ल, धर्म, संस्‍कृति या विकलांगता के कारण लोगों द्वारा झेली जा रही असमानता की बाधा को दूर कर हम सामाजिक न्‍याय की ओर बढ़ सकते हैं।

नये अर्थशास्‍त्र की मान्‍यता है कि अर्थव्‍यवस्‍था समाज और संस्‍कृति में घुली-मिली होती है जो पारिस्थितिकी, जीवन रक्षक प्रणाली से जुड़ी होती है और इस अपरिमित ग्रह पर अर्थव्‍यवस्‍था हमेशा बढ़ नहीं सकती है।

भारतीय समाज वर्षों से समानता और न्‍याय सुनिश्चित करने के प्रयास कर रहा है। देश  के इतिहास में सामाजिक न्‍याय के क्षेत्र में सबसे समर्पित कुछ लोगों में चैतन्‍य महाप्रभु, स्‍वामी रविदास, स्‍वामी विवेकानन्‍द, एम जी रानाडे, वीर सावरकर, के एम मुंशी, महात्‍मा गांधी, बाबा साहेब अम्‍बेडकर, ताराबाई शिंदे, बहरामजी मलाबारी शामिल हैं। इन समाज सुधारकों के दृढ़ निश्‍चय और साहस के साथ ही लोगों के प्रबल समर्थन से उन्‍हें अन्‍याय के खिलाफ मजबूत कार्रवाई करने का बल मिला।

भारत सरकार सतत विकास, उचित काम और स्‍वच्‍छ नौकरी से संबंधित केवल परिवर्तन के लिए नीतिगत ढांचे को आगे बढ़ाने के अंतर्राष्‍ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के 2013 के संकल्‍प के अनुरूप कार्य कर रही है। आईएलओ के अनुसार महत्‍वपूर्ण नीतिगत क्षेत्र मेक्रो इक्‍नॉमिक्‍स और प्रगति नीतियां, औद्योगिक तथा क्षेत्रीय नीतियां, उद्यम नीतियां, कौशल विकास, व्‍यवसायिक सुरक्षा और स्‍वास्‍थ्‍य, सामाजिक सुरक्षा, श्रम बाजार नीतियां, अधिकार, सामाजिक संवाद और त्रिपक्षीय नीतियां हैं। 

देश के संविधान में सामाजिक न्‍याय शब्‍द का उपयोग व्‍यापक अर्थों में किया गया है जिसमें सामाजिक और आर्थिक न्‍याय दोनों ही शामिल हैं। जैसा कि पूर्व मुख्‍य न्‍यायाधीश पी बी गजेन्‍द्रगड़कर ने कहा ‘इस मायने में सामाजिक न्‍याय का उद्देश्‍य सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों के मामले में प्रत्‍येक नागरिक को समान अवसर उपलब्‍ध कराना और असमानता रोकना है।‘

67वीं संयुक्‍त राष्‍ट्र आम सभा की तीसरी समिति की बैठक में संसदीय कार्य मंत्री श्री अनन्‍त कुमार ने दोबारा कहा कि भारत संयुक्‍त राष्‍ट्र के प्रयासों का पूरा समर्थन करेगा। वह विशेष रूप से ‘संयुक्‍त राष्‍ट्र महिला’ का समर्थन करेगा, जिसने अपने गठन के दो वर्ष के भीतर ही महत्‍वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं। भारत सामाजिक न्‍याय सुनिश्चित करने में संयुक्‍त राष्‍ट्र की आम सभा के सभी प्रयासों में भी उनकी सहायता करेगा। गौरतलब है कि ‘संयुक्‍त राष्‍ट्र महिला’ लैंगिक समानता, विकास तथा मानक कायम करने के लिए काम करने तथा ऐसा माहौल तैयार करने में विश्‍व चैंपियन है जहां प्रत्‍येक महिला और लड़की अपने मानवाधिकार का प्रयोग कर सकती है और अपनी पूरी क्षमता से जी सकती है।

सामाजिक न्‍याय उपलब्‍ध कराने के उपाय के तौर पर भारत ने घरेलू हिंसा से महिला की सुरक्षा अधिनियम लागू किया है। जिसमें कहा गया है कि शारीरिक, आर्थिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक सहित कई रूपों में हिंसा हो सकती है। इस अधिनियम में महिलाओं को परिवार के भीतर-वैवाहिक और पारिवारिक दुर्व्‍यवहार जैसी हिंसा के खिलाफ लड़ाई लड़ने के वैधानिक प्रावधान है। कानून के अंतर्गत आश्रय, चिकित्‍सीय सहायता, रखरखाव के आदेश और बच्‍चों का अस्‍थायी संरक्षण के रूप में घरेलू हिंसा से पीडि़त महिलाओं की सहायता की जाती है।

काम का अधिकार सुनिश्चित करने के लिए मनरेगा सबसे बड़ा कार्यक्रम है। कंपनी अधिनियम में कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्‍मेदारी लाभ साझा करने में नया पहलू है।

केंद्र सरकार के आम बजट में सामाजिक न्‍याय और सशक्‍तीकरण मंत्रालय को किए गए  वर्ष 2016-17 के लिए बजटीय आवंटन में से लगभग 54 प्रतिशत अनुसूचित जाति (एससी) के लगभग 60 लाख लोगों और 53 लाख अन्‍य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की छात्रवृत्ति पर खर्च किया गया। सामाजिक न्‍याय मंत्री श्री थावरचंद गहलोत का कहना है कि ‘मंत्रालय का बजट 2014-15 के 54.52 करोड़ रूपये से लगातार बढ़ते हुए 2017-18 में 69.08 करोड़ रूपये हो गया है। उनका कहना है कि ‘अत्‍याचार’ की परिभाषा को और व्‍यापक किया गया है तथा अनुसूचित जाति की सुरक्षा के लिए जून 2016 में संशोधन किये गए हैं।

उन्‍होंने कहा ‘अत्‍याचार पीडि़तों के लिए मुआवजा बढ़ाया गया है और पिछले वर्ष 42,541 लोगों को 139 करोड़ रूपये का मुआवजा दिया गया था।‘

उन्‍होंने कहा ‘मंत्रालय के तीन निगमों- राष्‍ट्रीय अनुसूचित जाति वित्‍त विकास निगम (एनएसएफडीसी), राष्‍ट्रीय पिछड़ा वर्ग वित्‍त विकास निगम (एनबीसीएफडीसी) और राष्‍ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्‍त विकास निगम ने डिजिटल तरीके से लगभग दो लाख लाभार्थियों को करीबन 552 करोड़ रूपये वितरित किए।

लेकिन विश्‍व में स्थिति उतनी अच्‍छी नहीं है। संयुक्‍त राष्‍ट्र के आर्थिक मामला विभाग का कहना है कि वैश्विक प्रयासों के बावजूद अमीरों का अमीर होना और गरीबों का गरीब बने रहना एक सच्‍चाई है। इसके अलावा अत्‍यधिक कम आय पाने वाले अति या पूर्ण गरीब व्‍यापक पैमाने पर हैं।

अब समय आ गया है कि अवसरों के परिणामों पर चर्चा करने से आगे विकास की दिशा में बढा़ जाये और अवसरों के स्‍वतंत्र वातावरण की रूपरेखा तथा सुसंगत पुनर्वितरण नीतियां सुनिश्चित की जाये, ताकि वैश्विक समाज न्‍याय संगत बन सके।

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भारत में भाषा विविधता का संरक्षण

अंतर्राष्ट्रीय भाषा दिवस

21 फरवरी, 2017 पर विशेषलेख  

 

 

*पांडुरंग हेगड़े

भारत दुनिया के उन अनूठे देशों में से एक है जहां भाषाओं में विविधता की विरासत है। भारत के संविधान ने 22 आधिकारिक भाषाओं को मान्यता दी है। बहुभाषावाद भारत में जीवन का मार्ग है क्‍योंकि देश के विभिन्न भागों में लोग अपने जन्म से ही एक से अधिक भाषा बोलते हैं  और अपने जीवनकाल के दौरान अतिरिक्त भाषाओं को सीखते हैं।

हालांकि आधिकारिक तौर पर यहाँ 122 भाषाएं हैं, भारत के लोगों के  भाषाई सर्वेक्षण में 780 भाषाओं की पहचान की गई है, जिनमें से 50 पिछले पांच दशकों में विलुप्त हो चुकी हैं।

संविधान के द्वारा मान्यता प्राप्‍त बाईस भाषाओं में असमिया, बंगाली, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिन्दी, कश्मीरी, कन्नड़, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलुगू और उर्दू को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया है।

इनमें से तीनों भाषाओं संस्कृत, तमिल और कन्नड़ को भारत सरकार द्वारा विशेष दर्जा और श्रेष्‍ठ प्राचीन भाषा के रूप में मान्यता दी गई है। इन श्रेष्‍ठ प्राचीन भाषाओं का 1000 वर्ष से अधिक का लिखित और मौखिक इतिहास है। इन की तुलना में, अंग्रेजी काफी नवोदित है क्‍योंकि इसका मात्र 300 साल का इतिहास है।

इन अधिसूचित और प्राचीन भाषाओं के अलावा, भारत के संविधान में अल्पसंख्यक भाषाओं के संरक्षण के लिए मौलिक अधिकार के रूप में एक अनुच्‍छेद को शामिल किया गया है। इसमें कहा गया है कि "भारत के किसी भी क्षेत्र और किसी भी भाग में रहने वाले नागरिकों के किसी भी वर्ग की विशिष्ट भाषा, लिपि या अपनी स्‍वयं की संस्कृति को संरक्षित करने का अधिकार होगा।"

भारत की भाषा नीति भाषाई अल्पसंख्यकों की रक्षा की गारंटी प्रदान करती है। संविधान के प्रावधान के तहत अल्पसंख्यक समूहों द्वारा बोली जाने वाली भाषा के हितों की रक्षा की  एकमात्र जिम्मेदारियों के लिए भाषाई अल्पसंख्यक समुदाय हेतु विशेष अधिकारी की नियुक्ति की  जाती है।

औपनिवेशिक शासन के दौरान, पहली बार जॉर्ज ए ग्रियरसन द्वारा 1894 से 1928 के दौरान भाषाई सर्वेक्षण कराया गया था जिसमें 179 भाषाओं और 544 बोलियों की पहचान की गई थी। प्रशिक्षित भाषाविदों कर्मियों की कमी के कारण इस सर्वेक्षण में कई खामियां भी थीं।

स्‍वतंत्रता के बाद, मैसूर स्थित केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान (सीआईआईएल) को सूक्षमता के साथ भाषाओं के सर्वेक्षण का कार्य सौंपा गया था। हालांकि यह कार्य अभी भी अधूरा है।

1991 में भारत की जनगणना में 'अलग व्याकरण की संरचना के साथ 1576 सूचीबद्ध मातृभाषाएँ और 1796 भाषिक विविधता को अन्‍य मातृभाषाओं के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

भारत की एक और अनूठी विशेषता अपनी मातृभाषा में ही बुनियादी शिक्षा प्राप्त करने के लिए बच्चों के हितों की रक्षा करने की अवधारणा है। इसके लिए संविधान में भाषाई अल्पसंख्यक समूहों के बच्चों के लिए प्राथमिक स्तर पर शिक्षा प्रदान करने के लिए मातृभाषा में शिक्षण की पर्याप्त सुविधाएं प्रदान करने के लिए हर राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी अधिकारी के द्वारा इसका प्रयास किये जाने का प्रावधान किया गया है।

इस प्रकार, संयुक्त राष्ट्र के द्वारा (21 फरवरी) को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस घोषित करने से पूर्व ही भारतीय संविधान के संस्थापकों ने मातृभाषाओं में शिक्षण से बच्चे को अपनी पूरी क्षमता के साथ सक्षम बनाने और विकसित करने को शीर्ष प्राथमिकता दी हैं।

यह अवधारणा संयुक्त राष्ट्र के विश्व मातृभाषा दिवस 2017 के विषय के साथ पूरी तरह से साम्‍यता रखती है जिसके अंतर्गत शिक्षा, प्रशासनिक व्यवस्था, सांस्कृतिक अभिव्यक्ति और साइबर स्पेस में स्वीकार किये जाने के लिए बहुभाषी शिक्षा की क्षमता विकसित करना आवश्‍यक है।

1956 में भारत में राज्यों के पुनर्गठन में भाषाई सीमाओं का अपना महत्‍व था। तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्‍लभ भाई पटेल ने भाषायी विशेषताओं के आधार पर राज्यों के गठन और एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

भारत की भाषा नीति बहुलवादी रही है जिसमें प्रशासन, शिक्षा और जन संचार के अन्य क्षेत्रों में मातृभाषा के उपयोग को प्राथमिकता दी गई है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के भाषा ब्यूरो का गठन भाषा नीति को लागू करने और इसपर नजर रखने के लिए किया गया है।

साइबर स्पेस में भाषा विविधता को बढ़ावा और संरक्षण देने के कारण का समर्थन करते हुए, केन्‍द्रीय इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इंटरनेट प्रदाताओं को चेताया कि "इंटरनेट की भाषा अंग्रेजी और एकमात्र अंग्रेजी नहीं हो सकती। इसका स्थानीय भाषाओं और स्थानीय साधनों के साथ जुड़ाव होना चाहिए। मैं अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के लिए स्थानीय भाषाओं की उपलब्धता की अपील करता हूँ।"

उन्होंने कहा कि मंत्रालय ने भाषा बाधा के बिना मानव मशीन वार्तालाप, बहुभाषी ज्ञान संसाधनों के निर्माण और पहुँच की सुविधा के लिए सूचना प्रोसेसिंग उपकरणों और तकनीकों को विकसित करने के उद्देश्य के साथ भारतीय भाषाओं के लिए प्रौद्योगिकी विकास की पहल कर दी है।

भारत सरकार ने डिजिटल भारत की अभिकल्‍पना के तहत जुलाई 2017 से बेचे जाने वाले सभी मोबाइल फोनों में भारतीय भाषाओं की सुविधा को अनिवार्य कर दिया है। इससे न सिर्फ  डिजिटल अंतर को समाप्‍त किया जा सकेगा बल्‍कि भारत के ऐसे एक अरब लोग, जो अपनी भाषाओं में संपर्क करने में अंग्रेजी नहीं बोलते, को सशक्त बनाने की दिशा में मार्ग प्रशस्त होगा। इससे बड़ी संख्या में लोगों के ई-गवर्नेंस और ई-कॉमर्स का हिस्सा बनने से क्षमता में वृद्धि भी होगी।

केंद्र सरकार के इन प्रयासों के बावजूद, अल्‍पसंख्‍यक भाषाएं बहुत से कारणों से अपने अस्‍तित्‍व को बचाये रखने के लिए संघर्ष कर रही हैं। अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह में 7000 साल के इतिहास के साथ बो भाषा के अंतिम वक्ता की मृत्‍यु होने पर यह विलुप्त हो गई।

हाल के वर्षों में भाषा विविधता खतरे में है क्‍योंकि विविध भाषाओं के वक्‍ता दुर्लभ होते जा रहे हैं और अपनी मातृभाषाओं को छोड़ने के बाद वे प्रमुख भाषाओं को अपना रहे हैं। इस समस्या का समाधान सामाजिक स्तर पर किए जाने की आवश्‍यकता है जिसमें समुदायों को भाषा विविधता के संरक्षण में शामिल होना होगा जो हमारी सांस्कृतिक संपदा का एक अंग हैं।

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गैर-संचारी रोगों की रोकथाम 


 

 

* संतोष जैन पासी

** आकांक्षा जैन

 

"हर इंसान का स्वास्थ्य या बीमारी स्वयं उसके हाथ में ही है"

                                                                                                                           - भगवान बुद्ध

 

 

हमारा देश बीमारी के दोहरे भार से ग्रस्त है। गैर – संचारी रोग (एनएसडी) एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियां पैदा कर रहे हैं। एक ओर गरीबीअभाव और पर्यावरण की घटिया स्थिति से जुड़ी हुई पोषक तत्वों की कमी / संक्रामक रोगों की भरमार है जबकी दूसरी ओर भोजन की अधिकता / असंतुलन और चयापचय गड़बड़ियों के कारण होने वाली गैर – संचारी बीमारियां मौजूद हैं। गैर – संचारी रोगों की महामारी मुख्य रूप से आधुनिकीकरण, शहरीकरणनिष्क्रिय जीवन शैली और लंबी आयु की देन हैं। शरीर का अधिक वजन /  मोटापे, हृदय रोग की बीमारियां और टाइप-2 मधुमेह, कैंसरसांस की बीमारियों और मानसिक बीमारियों में लगातार वृद्धि हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने यह तथ्य उजागर किया है कि अगर यह स्थिति इसी तरह जारी रही तो 2030 तक विश्व स्तर पर एनसीडी के कारण होने वाली वार्षिक मृत्यु दर 55 मिलियन के स्तर को छू लेगी।

 

 

 

डब्ल्यूएचओ की 2015 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में एनसीडी के कारण 60 प्रतिशत लोगों की मृत्यु होती है और हर 4 में एक व्यक्ति को एनसीडी के कारण 70 साल की उम्र से पहले मरने का खतरा मंडरा रहा है। डॉ. पूनम खेत्रपाल सिंह, क्षेत्रीय निदेशक, डब्ल्यूएचओ-एसईएआर ने यह टिप्पणी की है कि एनसीडी युवा पीढ़ियों को भी प्रभावित कर रही है जिसके कारण सामाजिक आर्थिक विकास बाधित हो रहा है। संभावनाओं से पूर्ण उत्पादक वर्षों (34 से 64 वर्ष तक) की हानि के कारण घरबार, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारी नुकसान हो रहा है।

 

 

 

 

एनसीडी बोझ को उचित निवारक और उपचारात्मक कार्रवाई के माध्यम से बहुत कम किया जा सकता है। स्वास्थ्य वर्धक भोजन, शारीरिक गतिविधियों में वृद्धि, वजन प्रबंधन और तंबाकू / नशीले पदार्थ और शराब का उपयोग न करना इन बीमारियों की रोकथाम और प्रबंधन में  महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। 80 प्रतिशत से अधिक सीवीडी और टी2डीएम तथा 33 प्रतिशत कैंसर को जीवन शैली में बदलाव लाकर रोका जा सकता है। पोषक और संतुलित आहार लेना इन बीमारियों की रोकथाम में बहुत महत्वपूर्ण है।

 

आदर्श शरीर भार बनाए रखने, ली जाने वाली कुल ऊर्जा और ऊर्जा की कुल खपत को संतुलित किये जाने की जरूरत है। आहार में प्रोटीन पर्याप्त होना चाहिए। आहार में वसा और गुणवत्ता / मात्रा तथा एनसीडी के मध्य बहुत गहरा संबंध है। आहार में वसा / तेल, विशेष रूप से संतृप्त वसा के अधिक प्रयोग से सीएचडीकैंसर, टी2डीएम और उच्च रक्तचाप का अधिक खतरा हो जाता है। संतृप्त वसा की जगह पीयूएफए युक्त तेलों के उपयोग से सीएचडी दरों को कम किया जा सकता है। खाने में वसा की मात्रा ग्लूकोज टोलरेंस और इंसुलिन के प्रति संवेदनशीलता पर भी प्रभाव डालती है। जैतूनसरसों और मूंगफली के तेलों जैसे पीयूएफए युक्त तेलों का उपयोग करने से सीएचडी और फेफड़ों / गले / स्तन और कोलोरेक्टल कैंसर के खतरों को कम किया जा सकता है। इसके विपरीत ट्रांस वसा सीरम लिपिड पर अवांछनीय प्रभाव के माध्यम से सीएचडी जोखिम को कम किया जा सकता है।

 

एनसीडी की रोकथाम / प्रबंधन के लिए सब्जियों (एक दिन में दो – तीन बार) और फलों (एक दिन में दो बार) का अधिक प्रयोग करने से खाने में फाइबरफाइटोकेमिकल्सएंटीऑक्सिडेंट और विभिन्न विटामिन / खनिज की पर्याप्त मात्रा शरीर को उपलब्ध कराना आवश्यक है। खाने में फाइबर की उचित मात्रा मेदार्बुदजनक लिपो प्रोटीनरक्तचाप और थ्रोंबोजेनेसिस पर उचित प्रभाव डालकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। फाइबर युक्त खाने के नियमित सेवन से न केवल वजन प्रबंधन में मदद मिलती है बल्कि सीरम लिपिड को कम करनेग्लूकोज चयापचय में सुधार लानेरक्तचाप को नियमित करने और ऊतकों की कष्टदायी सूजन को कम करने में मदद मिलती है। इसके अलावा प्रोबायोटिक्स,प्रिबायोटिक्स और सिमबियोटिक्स से लिपिड प्रोफाइल और ग्लाइसेमिक नियंत्रण में सुधार होता है और कोलोरेक्टल कैंसर को भी रोका जा सकता है।

 

 

सभी प्रकार के तंबाकू और शराब के प्रयोग से एनसीडी, विशेष रूप से क्रोनिक प्रतिरोधी फेफड़े की बीमारी के लिए प्रमुख जोखिम कारक हैं। शारीरिक निष्क्रियता वैश्विक मृत्यु दर ( 6 प्रतिशत) और एनसीडी में मुख्य योगदान करती है। मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कारक और भावनात्मक तनाव (अवसादचिंता और पुराने तनाव) भी एनसीडी के रोगजनन में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।

 

2012 में विश्व स्वास्थ्य सभा ने 2025 तक 25 प्रतिशत एनसीडी मृत्यु दर घटाने के उद्देश्य से महत्वपूर्ण 25 तक 25 का लक्ष्य का समर्थन किया था। भारत ने इस लक्ष्य पर पहुंचने के लिए सबसे पहले निर्दिष्ट राष्ट्रीय लक्ष्य / संकेतकों को विकसित करने की पहल की है और एनसीडी से संबंधित समय से पहले होने वाली मौतों की संख्या को कम करने के लक्ष्य पर पहुंचा है।

 

लगातार बढ़ रहे एनसीडी बोझ को नियंत्रित करने के लिए हमारी सरकार ने राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण कार्यक्रम, राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम और कैंसरमधुमेहसीवीडी और हृदयघात की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीडीसीएस) सहित अनेक कार्यक्रमों की शुरूआत की है। एनपीडीसीएस का मुख्य उद्देश्य एनसीडी का जल्दी पता लगाना और नियंत्रण करना, जीवन शैली में परिवर्तनों पर जागरूकता पैदा करना, मौजूदा स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली का क्षमता निर्माण और उसे मजबूती प्रदान करना है। एनएचएम के तहत एनसीडी क्लीनिक, जिला अस्पतालों / सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में सीसीयू के माध्यम से निदान  चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराई जायेंगी।

 

मार्च 2017 के अंत (पहला चरण) तक, 100 जिलों (32 राज्‍यों/केंद्र शासित प्रदेशों) में जनसंख्‍या आ‍धारित स्‍क्रीनिंग की जाएगी; मधुमेह, उच्‍च रक्‍तचाप और आम कैंसर के लिए परिचालनात्‍मक स्‍क्रीनिंग दिशानिर्देश जारी किए गए हैं। जोखिम की अवस्‍था वाले लोगों के परामर्श के लिए डेटा एकत्र किए जाएंगे। इसके बाद प्रतिरोधी सांस की पुरानी बीमारियां भी इसमें शामिल की जाएंगी और इस प्रोग्राम को आगे बढ़ाया जाएगा। 

 

आयुष मंत्रालय ने योग प्रोटोकोल तैयार करने के लिए विशेषज्ञ पैनल का गठन किया है और उसकी अनुसंधान संस्‍थाओं (केंद्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद, केंद्रीय होम्योपैथी अनुसंधान परिषद और केंद्रीय यूनानी चिकित्सा अनुसंधान परिषद) ने एनपीडीसीएस के साथ आयुर्वेदिक, होम्‍योपैथी और यूनानी के एकीकरण के लिए पहल शुरू कर दी है। इसके बाद, लोगों में आहार संबंधी स्‍वस्‍थ आदतें/जीवनशैली के प्रति जागरूकता पैदा करने, उसे अपनाने के लिए प्रोत्‍साहित करने के लिए एक मोबाइल एप्लिकेशन - 'mDiabetes' शुरू किया गया है। एनसीडी संबंधित अनुसंधान/प्रशिक्षण गतिविधियों में सहायता के लिए विभिन्‍न क्षेत्रों के वैज्ञानिकों को आपस में जोड़ने के लिए भारतीय एनसीडी नेटवर्क बनाया गया है।

मौजूदा समग्र स्‍वास्‍थ्‍य बजट (2017-18) को 39,879 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 48, 878 करोड़ रुपए कर दिया गया है, जोकि कुल बजट का 2.27 प्रतिशत है।

 

ऐसी उम्‍मीद है कि निरोधी स्‍वास्‍थ्‍य वाले नजरिए को अपनाने से संबंधित जागरूकता पैदा करने के लिए पर्याप्‍त संसाधन प्रदान किए गए हैं। एनसीडी के प्राथमिक, गौण और तृतीय स्‍तर पर रोकथाम के लिए, जीवनशैली को बेहतर बनाने के उद्देश्‍य से आहार संबंधी व्‍यवहारों को सुधारने और शारीरिक सक्रियता पर जोर दिया जाएगा। साथ ही धुम्रपान/ तंबाकू के सेवन को खत्‍म करने, शराब पर रोक लगाने और उचित तनाव प्रबंधन पर भी जोर दिया जाएगा। यह संतोषजनक बात है कि सरकार ने इस दिशा में विभिन्‍न कदम उठाएं हैं, जिससे लोग जीवंतता के साथ स्‍वस्‍थ जिंदगी जी सकते हैं।  

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22 feb

राष्ट्रीय स्वास्थ् मिशन 

विशेष लेख

    

 

 

 

*वी श्रीनिवास

 राष्ट्रीय स्वास्थ् मिशन राज् सरकारों को लचीला वित् पोषण उपलब्  कराकर ग्रामीण और शहरी स्वास्थ् क्षेत्र को पुर्नजीवित करने का सरकार का स्वास्थ् क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्यक्रम है। राष्ट्रीय स्वास्थ् मिशन में चार घटक शामिल हैं। जिनके नाम हैं- राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ् मिशन, राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्  मिशन, तृतीयक देखभाल कार्यक्रम और स्वास्थ् तथा चिकित्सा शिक्षा के लिए मानव संसाधन।

 राष्ट्रीय स्वास्थ् मिशन प्रजनन और बच्चों के स्वास्थ् से परे ध्यान केंद्रित कर स्वास्थ् सेवाओं का विस्तार करने के सरकार के प्रयास को दर्शाता है। इसलिए इसके तहत संक्रामक और गैर-संक्रामक बीमारियों के दोहरे बोझ से निपटने के साथ ही जिला और उप जिला स्तर पर बुनियादी ढांचा सुविधाओं में सुधार किया गया है। राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ् मिशन के बेहतर कार्यान्वयन के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ् मिशन की सीख को राष्ट्रीय स्वास्थ् मिशन में समन्वित किया गया है। वर्ष 2017-18 के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ् मिशन के वास्ते 26,690 करोड़ रूपये आवंटित किए गए हैं, जो भारत सरकार की केंद्र प्रायोजित सबसे बड़ी योजनाओं में से एक है।

 राष्ट्रीय स्वास्थ् मिशन (एनएचएम) में स्वास्थ् और परिवार कल्याण के दो विभागों को राष्ट्रीय स्तर पर एकीकृत किया गया है। इस एकीकरण के परिणाम से देश के ग्रामीण स्वास्थ् प्रणाली को पुर्नजीवित करने के लिए स्वास्थ् क्षेत्र में आवंटन बढ़ाने और कार्यक्रम कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण समन्वय देखा गया है। इसी प्रकार का एकीकरण राज् स्तर पर भी किया गया था। इसके अलावा एनएचएम से राज् वित् विभागों के अधिकार क्षेत्र से बाहर राज् स्वास्थ् समितियों को केंद्रीय वित्तीय सहायताओं के हस्तांतरण में क्रांतिकारी बदलाव आया है। दूसरा प्रमुख बदलाव रोग नियंत्रण कार्यक्रमों को एनएचएम ढांचे में शामिल करना है।    

 एनएचएम से देश के स्वास्थ् क्षेत्र के कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में नवीनता आई है। इनमें लचीला वित् पोषण, भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ् मानकों का पालन करने के लिए संस्थानों की निगरानी, कार्यक्रम प्रबंधन इकाइयों में प्रबंधन विशेषज्ञों को शामिल कर राज्, जिला और पंचायत समिति स्तर पर क्षमता निर्माण तथा स्वास्थ् एवं परिवार कल्याण के राज् संस्थानों के जरिए समय पर भर्ती के लिए सरल मानव संसाधन तरीके शामिल है। अन् महत्वपूर्ण नवाचार राष्ट्रीय स्वास्थ् प्रणाली संसाधन केंद्र (एनएचएसआरसी) की स्थापना है। इससे विभिन् पहलों का खाका तैयार कर उसे पूर्ण योजना बनाने में मदद मिलेगी। कुछ राज्यों में भी राज् स्वास्थ् प्रणाली संसाधन केंद्र की स्थापना की गई है।

 स्वास्थ् और परिवार कल्याण मंत्रालय वार्षिक आधार पर राज् स्वास्थ् समितियों के कार्यक्रम कार्यान्वयन योजनाओं को मंजूरी देता है। इसके लिए आरसीएच फ्लेक्सी पूल, एनआरएचएम फ्लेक्सी पूल, संक्रामक रोगों और गैर संक्रामक रोगों के लिए फ्लेक्सी पूल के अंतर्गत विशेष संसाधन का आवंटन किया गया है। इसके साथ ही बुनियादी ढांचा सुदृढ़ करने के लिए भी वित्तीय सहायता उपलब् कराई गई है। प्रशिक्षण कार्यक्रमों और क्षमता निर्माण के लिए महत्वपूर्ण संसाधन आवंटित किए गए है। राज् स्वास्थ् समितियों को विभिन् प्रमुख कार्यक्रमों के लिए दोबारा उचित संसाधन और जिला अस्पतालों, सामुदायिक स्वास्थ् केंद्रों और प्राथमिक स्वास्थ् केंद्रों को वित्तीय सहायता के हस्तांतरण करने में काफी स्वायतत्ता है।

 एनएचएम का प्राथमिकता प्रजनन और बच्चों के स्वास्थ् पर केंद्रित है। जननी सुरक्षा योजना (जेएसवाई) और मान्यता प्राप् सामाजिक स्वास्थ् कार्यकर्ता (आशा) कार्यक्रमों के सफल कार्यान्वयन के महत्वपूर्ण प्रभाव से लोगों के व्यवहार में बदलाव आया है और बड़ी संख्या में गर्भवती महिलाओं को सार्वजनिक स्वास्थ्  संस्थानों में लाया गया है। बड़ी संख्या में आने वाली गर्भवती महिलाओं की समस्याओं को दूर करने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ् संस्थानों में उचित बुनियादी ढांचा तैयार करने के वास्ते एनआरएचएम फ्लेक्सी पूल संसाधनों का उपयोग किया गया है। गर्भवती महिलाओं को सार्वजनिक स्वास्थ् संस्थानों में लाने और आपातकालीन सेवाओं के लिए एंबुलेंस सेवा शुरू की गई है। देश के कई राज्यों में 108 एंबुलेंस सेवा की सफलता की दास्तां दर्ज है।

 एनएचएम द्वारा स्वास्थ् संस्थानों में प्रसव करवाने को उच् प्राथमिकता देने का महत्वपूर्ण प्रभाव मातृत् मृत्यु दर (एमएमआर) और पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर (अंडर 5 एमआर) पर पड़ा है। देश में सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों (एमडीजी) 4 और 5 को हासिल करने में पर्याप् प्रगति हुई है। देश ने एमडीजी 6 लक्ष् को पहले ही हासिल कर लिया है और तपेदिक, मलेरिया तथा एचआईवी के प्रसार को कम कर दिया है। देखभाल या जीवन चक्र दृष्टिकोण अपनाकर एनएचएम ने बढिया प्रदर्शन किया है, जैसा कि महत्वपूर्ण स्वास्थ् संकेतकों में सुधार से प्रदर्शित होता है।

 स्वास्थ् और परिवार कल्याण मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्वास्थ् मिशन के अंतर्गत अपनी गतिविधियों में दो नए कार्यक्रम शामिल किए हैं। पहला मिशन है, इंद्रधनुष जिसके तहत केवल एक वर्ष के अंदर ही 5 प्रतिशत से अधिक टीकाकरण कवरेज कर अच्छी प्रगति दर्ज की गई है। दूसरा है एनएचएम के अंतर्गत 2016 में शुरू की गई पहल कायाकल् है। इसका उद्देश् सार्वजनिक स्वास्थ् सुविधाओं में साफ सफाई की आदत डालने, स्वच्छता, प्रभावी अपशिष् प्रबंधन और संक्रमण नियंत्रण है। कायाकल् के तहत प्रतिस्पर्धा के लिए पुरस्कार देना शुरू किया गया है, जिसे सभी राज्यों ने बेहतर तरीके से लिया है और स्वच्छता मानकों में महत्वपूर्ण सुधार देखे जा रहे हैं।

           

 एनएचम ने स्वास्थ् देखभाल के लिए जनआंदोलन शुरू किया है। सरकार ने लगभग दस लाख मान्यता प्राप् सामाजिक स्वास्थ् सेवा (आशा) कार्यकर्ता तैनात किए हैं, जो परिवर्तन एजेंट के रूप में प्रतिनिधित् कर रहे हैं। आशा कार्यकर्ता संस्थागत प्रसव कराने, नवजात शिशु और बच्चों की बीमारियों के एकीकृत प्रबंधन पर ध्यान देने और घर में नवजात शिशु की देखभाल करने के बारे में परामर्श देते हैं। एनएचएम ने ग्रामीण स्वास्थ् योजनाएं तैयार करने और आशा कार्यकर्ताओं के पर्यवेक्षण का निरीक्षण करने के लिए ग्रामीण स्वास्थ् और स्वच्छता समितियों के जरिए लोगों को भी सशक् बनाया है। रोगी अनुकूल संस्थान बनाने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ् सुविधाओं की प्रणाली गठित करने के लिए प्राथमिक स्वास्थ् केंद्र (पीएचसी) और सामुदायिक स्वास्थ् केंद्र (सीएचसी) स्तर पर रोगी कल्याण समितियों को सक्रिय किया गया है। ग्रामीण क्षेत्रों के अलावा राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ् मिशन के शुभांरभ के साथ ही शहरी झुग्गी बस्तियों पर भी ध्यान दिया जा रहा है।

सरकार का महत्वपूर्ण स्वास्थ् क्षेत्र का कार्यक्रम राष्ट्रीय स्वास्थ् मिशन सभी के लिए स्वास्थ् परिकल्पना को साकार कर रहा है। इसकी सहज सफलता में भविष् का स्वस् भारत निहित है।   

 

*लेखक वरिष् लोक सेवक, 1989 बैच के आईएएस अधिकारी हैं और वे वर्तमान में नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्) में उप निदेशक, प्रशासन के पद पर कार्यरत है।                                

           

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24 feb

कृषि क्षेत्र दहाई के आंकड़े में वृद्धि की ओर

पिछड़ेपन से निपटने के लिए ग्रामीण बुनियादी ढांचे के निर्माण और प्रोत्‍साहन का विचार

 

विशेष लेख

 

      

*डॉ आर बालाशंकर

राजग सरकार का कृषि क्षेत्र पर नए सिरे से बल देना, गरीबी को पूरी तरह से समाप्‍त करने और देश की विकास गाथा में ग्रामीण गरीबों को अभिन्‍न अंग बनाने की सोची समझी कार्यनीति है। दरअसल इस प्रकार के व्‍यय से जमीनी हकीकत में कोई बदलाव नहीं आया और यह अस्‍थायी राहत साबित हुआ। लेकिन अनुभव के आधार पर सरकार ने लोगों को एक व्‍यवहार्य कैरियर विकल्‍प के रूप में कृषि को अपनाने के लिए प्रोत्‍साहित करने के वास्‍ते स्‍थायी ग्रामीण बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए योजनाएं शुरू की है।

     यह अतीत से आगे बढ़ने का दिलचस्‍प बिंदु है। सरकार की योजना देश के सबसे पिछड़े जिलों में बदलाव कर इसे भारत में परिवर्तन का मॉडल बनाना है। इसमें कच्‍छ में गुजरात प्रयोग उपयोगी साबित हो रहा है। इस समय ध्‍यान देश के 100 सबसे पिछडे जिलों पर है, जिनमें से अधिकतर तीन राज्‍यों - बिहार, उत्‍तर प्रदेश और मध्‍य प्रदेश में है। इन तीन राज्‍यों में ही पूरे देश के 70 सबसे अधिक पिछड़े जिले हैं। दुख की बात यह है कि देश के सबसे विकसित जिलों में से एक भी जिला इन राज्‍यों में नहीं है। कुछ लोगों का मानना है कि पिछड़े जिलों के मामले में कुछ भी नहीं किया जा सकता है। लेकिन हाल ही में पिछड़ेपन और देश के कुछ क्षेत्रों में विकास न होने पर टिप्‍प्‍णी करते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने कहा है कि उन्‍हें प्रथम स्‍थान पर लाया जा सकता है।

     योजना बनाने वाले लंबे समय से क्षेत्रीय असमानता के मुद्दे पर ढ़कोसला कर रहे हैं। पूर्ववर्ती सरकारों ने कई योजनाएं विशेष रूप से सबसे पिछड़े जिलों के लिए शुरू की। वे शायद इसलिए असफल रही, क्‍योंकि उनमें अधिक ध्‍यान गरीबी उन्‍मूलन और अस्‍थायी रोजगार सृजन पर दिया गया था। उन्‍होंने ग्रामीण बुनियादी ढांचा तैयार नहीं किया था और सड़क‍ सिंचाई तथा संपर्क के अभाव में कृषि क्षेत्रों को भी लाभदायक नहीं बना सके।

     प्रधानमंत्री बनने से पहले मुख्‍यमंत्री के तौर पर श्री नरेन्‍द्र मोदी ने भूकंप से तबाह हुए और निराश कच्‍छ के रन को आशावादी भूमि में परिवर्तित कर दिया। श्री नरेन्‍द्र मोदी ने 2003 से 2014 तक गुजरात में दहाई के आंकड़े की कृषि वृद्धि का युग बनाने का नाबाद रिकॉर्ड कायम किया है, जबकि उस समय राष्‍ट्रीय औसत दो प्रतिशत से कम पर था। श्री मोदी ने अगले चार वर्षों में भारतीय किसानों की आय को दोगुना करने की भी प्रतिज्ञा ली है। गुजरात के कृषि क्षेत्र की इस सफल दास्‍तां से प्रेरित होकर मध्‍य प्रदेश छत्‍तीसगढ़ और महाराष्‍ट्र जैसे कई अन्‍य राज्‍यों ने एक ऐसे राज्‍य की तकनीकों को अपनाया है, जिसे कभी भी कृषि प्रधान राज्‍य नहीं माना जाता था। इसका सबसे बड़ा कारण राज्‍य का विशाल सौराष्‍ट्र क्षेत्र है जहां प्रतिवर्ष सूखा पड़ने से लोगों और जानवरों का पलायन होता था। कृषि क्षेत्र की वृद्धि की कार्यनीति बेहतर सिंचाई, खेती के आधुनिक उपकरण, किफायती कृषि ऋण की आसानी से उपलब्‍धता 24 घंटे बिजली और कृषि उत्‍पादों का तकनीक अनुकूल विपणन पर तैयार की गई थी। इन प्रत्‍येक पहलों में बड़ी संख्‍या में नवीन योजनाएं बनाई और उनका कार्यान्‍वयन किया गया था। केंद्र की राजग सरकार उनके अनुभव को पूरे देश में दोहराने की कोशिश कर रही है।

     कृषि भूमि की स्‍वास्‍थ्‍य स्थिति का पता लगाने के लिए मृदा जांच कृषि क्रांति की दिशा में एक प्रमुख कदम है, जबकि नीम लेपित यूरिया दूसरा कदम है। इस दिशा में अन्‍य कदम बांध निर्माण, जलाशयों और अन्‍य जल संरक्षण विधियों के जरिए जल संरक्षण, भू-जल स्‍तर बढ़ाना, टपक सिंचाई को बढ़ावा देकर पानी की बर्बादी कम करना, मृदा की उर्वरकता का अध्‍ययन कर फसलों के तरीकों में बदलाव करना, पानी की उपलब्‍धता और बाजार की स्थिति है। विद्युतीकरण, पंचायतों में कंप्‍यूटरीकरण, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के जरिए सड़क निर्माण के माध्‍यम से प्रौद्योगिकी उपलब्‍ध कराने से जमीनी स्‍तर पर विकास सुनिश्चित होगा। सड़क निर्माण से प्रत्‍येक गांव के लिए बाजार और इंटरनेट संपर्क उपलब्‍ध कराने में भी मदद मिलेगी।

     पहली बार देश के इतनी अधिक संख्‍या में गरीब बैंक खाताधारक बने है। जनधन योजना के अंतर्गत लगभग 30 करोड़ नए खाते खोले गए है। यह वित्‍तीय समावेशन गतिशील कृषि अर्थव्‍यवस्‍था का केंद्र है। वित्‍तीय वर्ष में सरकार ने सीधे नकद हस्‍तांतरण के जरिए 50,000 करोड़ रूपये की बचत की है। 50 मिलियन गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों के लिए नि:शुल्‍क रसोई गैस प्रदान करने से लाखों परिवारों के जीवन में बदलाव आ रहा है। सबसे अधिक वार्षिक आवंटन और कृषि श्रमिकों की उपलब्‍धता सुनिश्चित कर             ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को दोबारा तैयार किया गया है। इनसे श्रमिकों द्वारा अपनी पारंपरिक कृषि श्रम को छोड़कर शहरों की ओर पलायन भी कम होगा।

     कृषि क्षेत्र लाभदायक कैसे बन सकता है? इस दशक के अंत तक कृ‍षकों की आय दोगुनी कैसे हो सकती है? क्‍या इससे ग्रामीण ऋणग्रस्‍तता और किसानों की आत्‍म हत्‍या को  रोकना सुनिश्चित किया जा सकता है?  हां ये सब संभव हो सकता है अगर प्रधानमंत्री ने जो गुजरात में हासिल किया है उसे राष्‍ट्रीय स्‍तर पर दोहराने में सक्षम होते है तो। श्री मोदी ने आम आदमी को अपने आर्थिक गाथा में महत्‍वपूर्ण स्‍थान पर रखा है। उन्‍होंने भारतीय किसानों के प्रति काफी विश्‍वास व्‍यक्‍त किया है और अपनी वृद्धि की परिकल्‍पना में कृषि को केंद्रीय मंच पर लाये हैं। कृषि क्षेत्र में परिवर्तन के लिए आवंटन की नई योजनाओं से इस आकर्षक कहानी का पता लगता है। कृषि और उससे जुड़े क्षेत्रों के लिए अगले वर्ष 1.87 लाख करोड़ रूपये का आवंटन किया गया है। इसके लिए प्रमुख क्षेत्र मनरेगा तथा सरल कृषि ऋण और बेहतर सिंचाई की उपलब्‍धता है। सिंचाई कोष और डेयरी कोष में काफी वृद्धि की गई है। कृषि ऋण योजना के साथ फसल बीमा योजना के अंतर्गत फसल बीमा के लिए दस लाख करोड़ दिए गए है जो पिछले वर्षों की तुलना में काफी अधिक है। अधिक ऋण से कृषि निवेश को बढ़ावा मिलेगा और खाद्य प्रसंस्‍करण औद्योगिकीकरण के लिए प्रेरणा मिलेगी। इससे किसानों को स्‍थायीत्‍व और बेहतर लाभ प्राप्‍त होगा। इससे ग्रामीण भारत  में रोजगार के अवसर भी बढ़ेगे।

      इस मौसम में रबी की आठ प्रतिशत से अधिक फसल लगाई गई है। खबरों में कहा गया है कि बेहतर वर्षा के कारण इस बार खरीफ की फसल रिकॉर्ड 297 मिलियन टन हो सकती है। बेहतर सड़क निर्माण, 2000 किलेामीटर की तटीय संपर्क सड़क और भारत नेट के अंतर्गत 130,000 पंचायतों को उच्‍च गति के ब्राडबैंड प्राप्‍त होने से निश्चित रूप से कृषि उत्‍पादों की मार्केटिंग में सुधार और बेहतर कीमतें मिलेंगी, जिसके कारण यह एक लाभदायक कैरियर विकल्‍प हो सकता है। इन नीति संचालित, लक्ष्‍य आधारित उपायों के कार्यान्‍वयन से कृषि उत्‍पादन में काफी उछाल आयेगा और सभी के लिए भोजन तथा देश से गरीबी पूर्ण रूप से समाप्‍त करने का सपना साकार होगा।

25 feb

रिकार्ड फसल उत्‍पादन होना तय : भारतीय किसान खाद्य और अच्‍छी प्रेरणा उपलब्‍ध कराते हैं

 

विशेष लेख

 

                                                               http://pibphoto.nic.in/documents/rlink/2017/feb/i201722201.jpg

*प्रकाश चावला

भारत 2016-17 में खाद्यानों का रिकार्ड उत्‍पादन दर्ज कराएगा। दाल कृषि उत्‍पादन क्षेत्र में  देश की उपलब्धियों का एक उच्‍च बिन्‍दु होगा और इसके लिए प्रेरणादायक साबित होगा कि किस प्रकार नीतिगत युक्तियां और किसानों तक पहुंच उन्‍हें भयंकर कमी की स्थिति से निकालकर लगभग आत्‍मनिर्भरता की स्थिति तक पहुंचने के लिए प्रोत्‍साहित कर सकती है।

देश के किसान विभिन्‍न फसलों की बदलती उत्‍पादन, उपभोग एवं मूल्‍य निर्धारण पद्धति के प्रति ग्रहणशील रहे हैं और नये मीडिया के माध्‍यम से उन्‍हें वास्‍तविक समय की सूचना भी उपलब्‍ध होती रही है और इन सबकी बदौलत वे एक बार फिर से देश की उम्‍मीदों पर खरे  उतरे हैं। द्वितीय अग्रिम आकलनों के अनुसार, वे 2016-17 में 271.98 मिलियन टन खाद्यान का उत्‍पादन करेंगे और 2013-14 के 265.57 मिलियन टन के पिछले रिकार्ड को ध्‍वस्‍त करेंगे। वर्ष दर वर्ष के आधार पर कुल खाद्यान उत्‍पादन पिछले वर्ष के 251.56 मिलियन टन की तुलना में 2016-17 के दौरान 8.1 प्रतिशत की आकर्षक वृद्धि दर दर्ज कराएगा।

अगर हम 2013-14 के पिछले सर्वश्रेष्‍ठ वर्ष और 2016-17 के नये रिकार्ड को तोड़ने वाले वर्ष के बीच तुलना करें तो किसानों ने बेहतर रिटर्न और केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य के लिए सकारात्‍मक संकेतों को ग्रहण किया और दालों के रकबा क्षेत्र में बढ़ोतरी की। पिछले तीन वर्षों के दौरान दालों के लिए रकबा क्षेत्र 252.18 लाख हेक्‍टेयर से बढ़कर 288.58 लाख हेक्‍टेयर तक पहुंच गया, जबकि उपज 19.78 मिलियन टन से बढ़कर 22.14 मिलियन टन तक पहुंच गई। यह प्रोटीन समृ‍द्ध मसूर की दाल के लिए देश की मांग के निकट होगी और इसके उपभोग से ग्रामीण और शहरी दोनों परिवार की औसत आय में वृद्धि होना तय है। निश्चित रूप से दालों का उत्‍पादन बढ़ाने तथा स्‍व निर्भरता अर्जित करने के लिए एक सतत प्रयास किया जा रहा है।  

वर्तमान में दालों के मूल्‍य को लेकर स्थिति में उल्‍लेखनीय सुधार हुआ है। अब आसमान छूती कीमतों को लेकर दालों की खबरें मीडिया की सुर्खियों में नहीं आ रही है, जिनकी थोक मंडियों में कीमत 4200 से 5500 रुपये प्रति क्विंटल तक नीचे आ चुकी हैं। उपभोक्‍ता मूल्‍य सूचकांक द्वारा मापित दालों एवं उत्‍पादों के लिए खुदरा वार्षिक मुद्रास्‍फीति दर जनवरी 2017 में नकारात्‍मक 6.62 प्रतिशत थी। दालों के मामले में आत्‍मनिर्भरता के निकट पहुंचने का श्रेय किसानों और कुछ हद तक सरकार द्वारा उठाए गए प्रभा‍वी कदमों को दिया जा सकता है।

इससे संबंधित कार्य नीति में महाराष्‍ट्र, मध्‍य प्रदेश, राजस्‍थान, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश , तेलंगाना, उत्‍तर प्रदेश एवं तमिलनाडू में वर्षापूरित क्षेत्रों के तहत दालों में उच्‍चतर रकबा अर्जित करना शामिल था। 2016 में हुई पर्याप्‍त वर्षा ने भी किसानों की सहायता की जिन्‍हें उनकी उपज के लिए बोनस के साथ न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (एमएसपी) प्राप्‍त होने का भरोसा था। चूंकि दालों के उत्‍पादन में मौसम की अनिश्चितताओं का जोखिम शामिल होता है, उन्‍नत फसल बीमा स्‍कीम प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) ने भी किसानों को काफी प्रोत्‍साहित किया। 2016-17 के लिए पीएमएफबीवाई पर अनुमानित सरकारी व्‍यय 13240 करोड़ रुपये आंका जा रहा है।

दालों के मामले में एक उच्‍च बिन्‍दु बहुकोणीय कार्यनीति के माध्‍यम से उत्‍पादन में तेजी लाने के लिए मिशन में पूर्वोत्‍तर राज्‍यों को शामिल करने से संबंधित रहा है। इस कार्य योजना में राज्‍यों एवं केंद्र की विस्‍तार मशीनरी द्वारा प्रौद्योगिकियों के कलस्‍टर प्रदर्शन के जरिये चावल अजोत भूमि, अनाजों, तिलहनों एवं वाणिज्यिक फसलों के साथ  अंत:फसलीकरण, खेतों के मेड़ पर अरहर की खेती, गुणवत्‍तापूर्ण बीजों के लिए बीज केंद्रों का निर्माण एवं किसानों को नि:शुल्‍क बीज मिनी किटों का वितरण शामिल है।  

 इसके अतिरिक्‍त, राष्‍ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के दाल संघटक को वर्तमान 468 से बढ़ाकर पूर्वोत्‍तर राज्‍यों के सभी जिलों एवं हिमाचल प्रदेश, जम्‍मू-कश्‍मीर एवं उत्‍तराखंड जैसे पहाड़ी राज्‍यों के सभी जिलों समेत 29 राज्‍यों के 638 जिलों तक विस्‍तारित कर दिया गया है।

 मौसम की मदद एवं नीतिगत युक्तियों के सहयोग से रिकार्ड खाद्यान उत्‍पादन की बदौलत भारतीय कृषि का 4 प्रतिशत से अधिक की प्रभावशाली वृद्धि दर अर्जित करना तय है। इसका प्रभाव बाजार में सब्जियों समेत खाद्य उत्‍पादों की उपलब्‍धता एवं मूल्‍यों पर व्‍यापक रूप से देखा जा रहा है। तथापि, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि खुदरा मुद्रास्‍फीति के एक मामूली स्‍तर और उत्‍पादकों को लाभकारी मूल्‍यों के बीच एक अच्‍छा संतुलन अर्जित किया जाए। आखिरकार एक व्‍यवसाय के रूप में खेती देश के लिए एक प्राथमिकता बनी रहनी चाहिए जो किसानों के कल्‍याण एवं राष्‍ट्रीय खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने, दोनों के लिए जरूरी है।

2015-16 की तुलना में चालू फसल वर्ष में क्रमश: 4.26 प्रतिशत एवं 4.71 प्रतिशत की दर से फसल के उगने से चावल और गेहूं के भी पर्याप्‍त मात्रा में उपलब्‍ध होने की उम्‍मीद है। 2016-17 के लिए चावल उत्‍पादन के 108.86 मिलियन टन के अब तक के सर्वाधिक रिकार्ड स्‍तर पर पहुंचने की उम्‍मीद है।

दूसरी तरफ, 2016-17 में गेहूं उत्‍पादन के बढ़कर 96.64 मिलियन टन पहुंचने की उम्‍मीद है जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 4.71 प्रतिशत अधिक है।

चावल एवं गेहूं के मामले में एक उल्‍लेखनीय विशेषता यह है पिछले तीन वर्षों के दौरान उपज में बढ़ोतरी हुई है जबकि रकबा में गिरावट आई है, यह बेहतर कृषि उत्‍पादकता की ओर इंगित करती है, जिसमें बेशक और वृद्धि किए जाने की आवश्‍यकता है। 2013-14 में चावल की खेती के तहत क्षेत्र 441.36 लाख हेक्‍टेयर था जिसमें 106.65 मिलियन टन उत्‍पादन हुआ था। 2016-17 में रकबा घटकर 427.44 लाख हेक्‍टेयर जबकि उत्‍पादन के 108.86 मिलियन टन तक रहने का अनुमान है।

गेहू के लिए भी ऐसी ही तस्‍वीर उभर कर सामने आई है। 2013-14 में गेंहूं की खेती के तहत क्षेत्र 304.73 लाख हेक्‍टेयर था,जबकि उत्‍पादन 95.85 मिलियन टन का हुआ था। 2016-17 के लिए तुलनात्‍मक संख्‍या 302.31 लाख हेक्‍टेयर है, जबकि उत्‍पादन के 96.64 मिलियन टन रहने का अनुमान है। इसमें कोई संदेह नहीं कि देश के किसानों की उनके प्रयासों के लिए सराहना की जानी चाहिए। हमें उम्‍मीद करनी चाहिए कि सरकार द्वारा उठाए गए नये कदमों की बदौलत वह दिन दूर नहीं जब हमारे देश के किसान भी खुशहाल हो जाएंगे।  जैसा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने कहा है, इस देश के किसानों को पानी दीजिए और देखिए कि वे कैसा चमत्‍कार कर सकते हैं। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के माध्‍यम से यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि देश के प्रत्‍येक गांवों में पानी उपलब्‍ध हो सके।प्रधानमंत्री ने यह भी कहा है कि उनकी सरकार का लक्ष्‍य 2022 तक किसानों की आय को दो गुनी कर देने का है।

 

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